केंद्र सरकार द्वारा घोषित इस फंड का इस्तेमाल डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को अपने कौशल को बेहतर बनाने, अपने प्रोडक्शन को अपग्रेड करने और वैश्विक बाजारों में विस्तार करने में सक्षम बनाने के लिए किया जाएगा।
- क्रिएटिव और डिजिटल टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता को बढ़ावा देने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव टेक्नोलॉजी (IICT) की स्थापना के लिए भी धन आवंटित किया गया है।
क्रिएटर इकोनॉमी क्या है?
- यह एक तेजी से संवृद्धि करने वाला क्षेत्रक है। इसमें कलाकार, शिक्षक, गेमिंग स्ट्रीमर, वीडियो निर्माता, पॉडकास्टर और अन्य रचनात्मक लोग शामिल होते हैं। ये सभी लोग यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने क्रिएटिव कंटेंट्स से आय अर्जित करते हैं।
- वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर क्रिएटर्स इकोनॉमी का आकार 250 बिलियन डॉलर था। 2027 में इसका आकार दोगुना (480 बिलियन डॉलर) होने की उम्मीद है।
- यह ‘ऑरेंज इकोनॉमी’ (या ‘क्रिएटिव इकोनॉमी’) के अंतर्गत एक उभरता हुआ क्षेत्रक है। ऑरेंज इकोनॉमी में एडवरटाइजिंग, आर्किटेक्चर, कला, संगीत, फिल्म निर्माण आदि शामिल हैं।
भारत के लिए क्रिएटर्स इकोनॉमी का महत्त्व
- GDP में योगदान: उदाहरण के लिए- अकेले यूट्यूब के इकोसिस्टम ने 2022 में भारत के GDP में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान दिया था।
- वर्ष 2024 में भारत की ऑरेंज इकोनॉमी का मूल्य 30 बिलियन डॉलर था, जिसने भारत की GDP में लगभग 2.5% का योगदान दिया है।
- रोजगार सृजन: यह ब्रांड कोलैबोरेशन, प्रायोजित कंटेंट, व्यापारिक बिक्री आदि के माध्यम से लाखों क्रिएटर्स, इन्फ्लुएंसर्स और ज्ञान पेशेवरों को आजीविका प्रदान करता है।
- सॉफ्ट पावर: संगीत, नृत्य, शिक्षा जैसे क्षेत्रकों में तैयार होने वाले कंटेंट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना एवं ख्याति प्राप्त की है। इससे भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ी है एवं विदेशी राजस्व प्राप्त हुआ है।
भारत की क्रिएटर्स इकोनॉमी के समक्ष मौजूद चुनौतियां
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