PRS रिपोर्ट में राज्य विधान-सभाओं के कामकाज में तीव्र गिरावट का उल्लेख किया गया | Current Affairs | Vision IAS
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PRS रिपोर्ट में राज्य विधान-सभाओं के कामकाज में तीव्र गिरावट का उल्लेख किया गया

Posted 17 May 2025

9 min read

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • बैठकों के औसत दिनों में गिरावट: 2017 में औसतन 28 बैठकें होती थीं, जो 2024 में घटकर 20 रह गई। 11 राज्यों ने अनुच्छेद 174 के अंतर्गत 1 या 2 दिन तक चलने वाले छोटे सत्रों के माध्यम से औपचारिकता पूरी की है।
    • अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्य विधान-मंडल की बैठक 6 महीनों में कम-से-कम एक बार होना आवश्यक है।
    • संविधान समीक्षा समिति ने सुझाव दिया था कि छोटे विधान-मंडलों (70 से कम सदस्य) के लिए साल में कम-से-कम 50 और बड़े विधान-मंडलों के लिए 90 बैठकें होनी चाहिए।
  • सीमित चर्चाएं: 2024 में राज्यों ने औसतन 17 विधेयक पारित किए थे। इनमें से 51% विधेयक उसी दिन पारित कर दिए गए जिस दिन पेश किए गए थे।
    • 2024 में पारित विधेयकों में से केवल 4% को ही विस्तृत जांच के लिए समिति के पास भेजा गया था। 
  • अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति (अनुच्छेद 178): अप्रैल 2025 तक, 8 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की विधान-सभा में कोई उपाध्यक्ष नहीं था। झारखंड विधान-सभा में 20 से अधिक वर्षों से उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ है।
  • विधेयकों पर स्वीकृति में देरी: 2024 में, 18% विधेयकों को स्वीकृति मिलने में 3 महीनों से अधिक का समय लगा था। उदाहरण के लिए- हिमाचल प्रदेश में 72% विधेयक विलंबित हुए थे।
    • अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधेयकों पर बिना अनावश्यक देरी के सहमति देने, पुनर्विचार हेतु लौटाने या राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान किया गया है।

परिणाम

  • जल्दबाजी में कानून बनाना: चर्चा की कमी से कमजोर, अस्पष्ट या खराब तरीके से लागू होने वाले कानून बनते हैं।
  • लोकतांत्रिक कमी: पारदर्शिता की कमी और सीमित चर्चा से लोगों का विधायी संस्थाओं एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर विश्वास कमजोर हो सकता है।
  • शासन संबंधी खामियां: विधेयकों में देरी या कमजोर कानूनों से नीतियों में असंगतता, भ्रम और सेवा वितरण में समस्या उत्पन्न हो सकती हैं।
  • Tags :
  • PRS
  • विधान-सभा
  • राज्य विधान-सभा के कामकाज में गिरावट
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