भारत ने “वैश्विक कार्रवाई के लिए पांच सूत्रीय आह्वान” (Five-point call for Global Action) नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित पहले सागरमाथा संवाद में प्रस्तुत किया। यह संवाद ‘जलवायु परिवर्तन, पर्वत और मानवता का भविष्य’ थीम पर आयोजित किया गया था।
- इस 'संवाद' का नाम विश्व की सबसे ऊँची चोटी सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) के नाम पर रखा गया है।
- भारत ने इस संवाद में हिमालय और अन्य पर्वतीय पारिस्थितिकी-तंत्रों के संरक्षण हेतु सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।
हिमालयी पारिस्थितिकी-तंत्र के संरक्षण की आवश्यकता क्यों हैं?
- हिमालय लगभग 1.3 अरब लोगों को आजीविका प्रदान करता है,
- यह वन आवरण प्रदान करता है,
- हिमालय बारहमासी नदियों के जल का स्रोत है,
- यह जैव विविधता के संरक्षण में योगदान देता है, आदि।
हिमालयी पारिस्थितिकी-तंत्र की साझी चुनौतियों से निपटने के लिए ‘वैश्विक कार्रवाई के पांच सूत्रीय आह्वान’ में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वैज्ञानिक सहयोग में वृद्धि: इसमें अनुसंधान में सहयोग, क्रायोस्फेरिक (हिमावरण) में परिवर्तनों की निगरानी, जलचक्र की निगरानी और जैव विविधता संरक्षण क्षेत्र में सहयोग शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलना: इसमें हिमनदीय झील के टूटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) जैसी आपदाओं के लिए प्रारंभिक-चेतावनी प्रणाली में निवेश, पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु-अनुकूल अवसंरचनाओं का विकास आदि शामिल हैं।
- पर्वतीय समुदायों को सशक्त बनाना: इसमें स्थानीय समुदायों की भलाई, उनकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को नीतिगत निर्णयों के केंद्र में रखना तथा साथ ही, उन्हें हरित आजीविका के अवसर प्रदान करना एवं संधारणीय पर्यटन का लाभ दिलाना शामिल हैं।
- ग्रीन-फाइनेंस उपलब्ध कराना: जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन और शमन रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्वतीय देशों को UNFCCC तथा पेरिस समझौते के तहत जलवायु वित्त-पोषण उपलब्ध कराना चाहिए।
- पर्वतीय स्थिति के नजरिए को स्वीकार करना: पर्वतीय पारिस्थितिकी-तंत्रों के विशिष्ट योगदानों और संकटों को वैश्विक जलवायु वार्ताओं एवं सतत विकास एजेंडा में उचित स्थान दिलाना चाहिए।
हिमालय पर्वतीय पारिस्थितिकी-तंत्र के संरक्षण हेतु उठाए गए कदम:
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