2024-25 के लिए हस्तांतरणीय अधिशेष राशि को केंद्रीय बोर्ड द्वारा अनुमोदित संशोधित आर्थिक पूंजीगत फ्रेमवर्क (ECF) के आधार पर तय किया गया है।
- RBI की आय के प्रमुख स्रोत: सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज की वसूली से आय, तरलता प्रबंधन साधनों (जैसे- लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी) से निवल ब्याज आय, ऋण, विदेशी मुद्रा निवेश पर अर्जित ब्याज आदि।
आर्थिक पूंजीगत फ्रेमवर्क (ECF) के बारे में
- उत्पत्ति: ECF को RBI द्वारा 2019 में बिमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर अपनाया गया था।
- ECF एंटरप्राइज़-वाइड रिस्क मैनेजमेंट (ERM) फ्रेमवर्क (2012) का एक अभिन्न अंग है।
- अवधारणा: ECF, रिस्क प्रोविजनिंग के उचित स्तर को निर्धारित करने और RBI अधिनियम, 1934 की धारा 47 के तहत किए जाने वाले लाभ वितरण के लिए एक पद्धति प्रदान करता है।
- रिस्क प्रोविजनिंग के तहत RBI को अपनी बैलेंस शीट का कुछ प्रतिशत हिस्सा आकस्मिक जोखिम बफर (Contingent Risk Buffer) के रूप में अलग रखना होता है, ताकि वह भविष्य के किसी जोखिमों से निपट सके।
- इसलिए, किसी भी अप्रत्याशित घटना से उत्पन्न होने वाले जोखिमों से निपटने के लिए आर्थिक पूंजी के रूप में पर्याप्त राशि अपने पास सुरक्षित रखनी होती है।
- ECF के तहत आर्थिक पूंजी के घटक:
- रियलाइज़्ड इक्विटी (Realized Equity): इसमें RBI की पूंजी, आरक्षित निधि, आकस्मिकता निधि (CF) और संपत्ति विकास निधि (ADF) शामिल हैं।
- आकस्मिक जोखिम बफर (Contingent Risk Buffer - CRB): मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता, ऋण और परिचालन संबंधी जोखिमों के लिए प्रावधान करने हेतु RBI की रियलाइज़्ड इक्विटी का घटक।
- पुनर्मूल्यांकन शेष (Revaluation Balances): इनमें वे अप्राप्त लाभ (Unrealised gains) या निवल हानियाँ होती हैं जो विनिमय दर, सोने की कीमत या ब्याज दर में बदलाव के कारण उत्पन्न होती हैं।
- रियलाइज़्ड इक्विटी (Realized Equity): इसमें RBI की पूंजी, आरक्षित निधि, आकस्मिकता निधि (CF) और संपत्ति विकास निधि (ADF) शामिल हैं।
- फ्रेमवर्क की अवधि: समिति ने हर 5 साल में इस फ्रेमवर्क की समीक्षा करने की सिफारिश की है।
ECF में प्रमुख संशोधन
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