हाल ही में जारी EAT-लैंसेट आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भले ही वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके स्वच्छ ऊर्जा अपना लिया जाए, फिर भी खाद्य प्रणालियों के कारण वैश्विक तापमान पेरिस समझौते के 1.5°C लक्ष्य से अधिक हो सकता है।
- ‘खाद्य प्रणालियां’ उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण, उपभोग और निपटान में शामिल सभी गतिविधियों को संदर्भित करती हैं। साथ ही, इनके आर्थिक, स्वास्थ्य संबंधी, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी इनमें शामिल होते हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- खाद्य प्रणालियां पांच ग्रहीय सीमाओं को पार करने के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- भूमि प्रणाली परिवर्तन; जैवमंडल की अखंडता; ताजे जल में परिवर्तन; जैव-भू-रासायनिक प्रवाह और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs)।
- कृषि और खाद्य प्रणालियां कुल GHGs का लगभग 30% उत्सर्जित करती हैं।
- खाद्य प्रणालियों में असमानताएं: विश्व की 30% सबसे धनी आबादी खाद्य प्रणालियों से होने वाले कुल पर्यावरणीय दबावों के 70% से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
- भारत का मामला: आर्थिक योगदान में कमी के बावजूद, कृषि 2050 तक GDP और रोजगार का बड़ा स्रोत बनी रहेगी। इसलिए, व्यापक श्रम बल के कारण खाद्य प्रणालियों का पुनर्गठन अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।
खाद्य प्रणालियों को बदलने के लिए मुख्य सिफारिशें
- ग्रह के अनुकूल आहार (PHD): यह अधिकांश मौजूदा आहारों के पर्यावरणीय प्रभाव और पोषण संबंधी कमियों को दूर करेगा।
- यह आहार पादप आधारित होता है। इसमें साबुत अनाज, फल, सब्जियां, मेवे और दालें प्रमुख हैं, जबकि मछली, डेयरी उत्पाद और मांस का सेवन सीमित या मध्यम मात्रा में किया जाता है।
- संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture): यह सतत और पारिस्थितिक गहनता कार्य-पद्धतियों की संपूरकता है, जिसमें-
- मृदा में कम हस्तक्षेप,
- मृदा को लगातार ढके रखना, तथा
- फसल विविधीकरण शामिल हैं।
- नीतिगत लक्ष्यों के साथ खाद्य प्रणालियों का एकीकरण: इसमें पेरिस समझौता, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क, राष्ट्र-विशिष्ट खाद्य-आधारित आहार संबंधी दिशा-निर्देश आदि शामिल हैं।