सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP) वित्त नेटवर्क में शामिल हुआ। भारत के इस कदम का उद्देश्य क्रिटिकल मिनरल्स (महत्वपूर्ण खनिजों) की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाना है।
खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) के बारे में
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अन्य संबंधित तथ्य
- खनिज सुरक्षा भागीदारी वित्त नेटवर्क में भारत की भागीदारी क्रिटिकल खनिजों की आपूर्ति के लिए कई स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने और आपूर्ति को सुरक्षित बनाने की व्यापक योजना का हिस्सा है।
- इसका उद्देश्य क्रिटिकल खनिजों के मामले में चीन पर निर्भरता को कम करना भी है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में वैश्विक क्रिटिकल खनिज आपूर्ति श्रृंखला पर चीन का प्रभुत्व है।
"खनिज सुरक्षा भागीदारी वित्त नेटवर्क" क्या है?
- यह "खनिज सुरक्षा भागीदारी" की एक पहल है। यह दुनिया भर में क्रिटिकल खनिज परियोजनाओं का वित्त-पोषण करने के लिए डिज़ाइन की गई एक संयुक्त वित्त-पोषण संस्था है।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य क्रिटिकल खनिजों के लिए विविध, सुरक्षित और सतत आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हिंद-प्रशांत क्षेत्र और यूरोप के संस्थानों को एकजुट करना, उनके बीच सहयोग को मजबूत करना, भाग लेने वाले संस्थानों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान और सह-वित्तपोषण को बढ़ावा देना है।
- यह वैश्विक क्रिटिकल खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं में सतत निवेश को भी बढ़ावा देगा, जिसमें उत्पादन, खनन, प्रसंस्करण, पुनर्चक्रण और पुनर्प्राप्ति परियोजनाओं में निजी क्षेत्रक से पूंजी जुटाना शामिल है।
- सदस्य: भारत सहित कुल 14 देश और यूरोपीय आयोग इसके सदस्य हैं।
- इसमें US इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन (DFC), यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (EIB), जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (JICA) जैसे कुछ अन्य संगठन भी शामिल हैं।
क्रिटिकल मिनरल्स क्या हैं?
- ये खनिज वर्तमान में कई नवीन प्रौद्योगिकियों के उत्पादन और विकास के लिए अति महत्वपूर्ण घटक हैं। चूंकि, वैश्विक स्तर पर इन खनिजों का उत्पादन बहुत कम होता है, इसलिए भू-राजनीतिक वजहों से इनकी आपूर्ति में व्यवधान का खतरा बना रहता है।
- क्रिटिकल मिनरल्स के कुछ उदाहरण हैं- लिथियम, कोबाल्ट, निकल, तांबा, रेयर अर्थ एलिमेंट्स, आदि।
- भारत सरकार ने भारत के लिए 30 क्रिटिकल मिनरल्स की सूची जारी की है।
- ये खनिज हैं- एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, तांबा, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हाफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नियोबियम, निकल, PGE, फास्फोरस, पोटाश, रेयर अर्थ एलिमेंट्स, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, जिरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम।

भारत के लिए क्रिटिकल मिनरल्स की सुरक्षित आपूर्ति करने में कौन-सी चुनौतियां मौजूद हैं?
- सीमित घरेलू भंडार: भारत में कई क्रिटिकल मिनरल्स के पर्याप्त भंडार मौजूद नहीं हैं। इस वजह से इन खनिजों के लिए आयात पर अधिक निर्भरता बनी हुई है। जाहिर है वैश्विक संकटों की स्थिति में इनकी आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न होने का खतरा बना रहेगा।
- निजी निवेश में कमी, तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव और नए कानून भी क्रिटिकल मिनरल्स के घरेलू उत्पादन में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- भू-राजनीतिक तनाव: उदाहरण के लिए- डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो दुनिया के लगभग 70% कोबाल्ट की आपूर्ति करता है, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता की वजह से वहां से इसकी आपूर्ति प्रभावित हुई है। इससे बैटरी और मिश्र धातुओं के लिए कोबाल्ट पर निर्भर उद्योगों पर बुरा असर पड़ा है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा और आपूर्ति श्रृंखला में निहित कमियां: उदाहरण के लिए- वैश्विक रेयर अर्थ एलिमेंट्स की लगभग 85% प्रोसेसिंग क्षमता और वैश्विक क्रिटिकल मिनरल्स के लगभग 60% उत्पादन पर चीन का प्रभुत्व है। इस वजह से उच्च तकनीक पर आधारित विनिर्माण से जुड़े क्रिटिकल मिनरल्स पर चीन का एकाधिकार बना हुआ है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएं: क्रिटिकल मिनरल्स के खनन और प्रोसेसिंग से अक्सर पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे स्थानीय आबादी और पर्यावरण समूह क्रिटिकल मिनरल्स के खनन से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करते हैं।
- रीसाइक्लिंग अवसंरचना की कमी: इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट और उपयोग कर ली गई प्रौद्योगिकियों से क्रिटिकल मिनरल्स की रीसाइक्लिंग का कार्य अविकसित है। यह क्षेत्र काफी हद तक असंगठित है और इसमें अकुशल श्रमिकों की बहुलता है।

आगे की राह
- क्रिटिकल मिनरल्स पर राष्ट्रीय संस्थान/ उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना: ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन (CSIRO) की तर्ज पर खान मंत्रालय के तहत क्रिटिकल मिनरल्स के लिए उत्कृष्टता केंद्र (CECM) की स्थापना की जानी चाहिए। इसे क्रिटिकल मिनरल्स पर शोध, अन्वेषण और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने का कार्य सौंपा जाना चाहिए।

- घरेलू प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ावा देना: क्रिटिकल मिनरल्स के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन पर केंद्रित विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) की स्थापना की जानी चाहिए।
- क्रिटिकल मिनरल्स से जुड़ी परियोजनाओं को शीघ्र मंजूरी देने के लिए एक "ग्रीन चैनल" शुरू करना चाहिए। इसमें सख्त लेकिन दक्ष पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आकलन प्रक्रिया की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- क्रिटिकल मिनरल्स की पुनर्प्राप्ति के लिए सर्कुलर इकॉनमी को बढ़ावा देना: शहरी केंद्रों में अत्याधुनिक ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग सुविधाएं स्थापित करना, ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग, अर्बन माइनिंग के क्षेत्र में जन जागरूकता और जन भागीदारी बढ़ाने के लिए "रीसायकल फॉर रिसोर्सेस" नाम से राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना चाहिए।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सतत और विविध स्रोत आधारित मूल्य श्रृंखला स्थापित करने तथा भारत के हरित ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) और खनन कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित किए जाने चाहिए।