विकास में क्षेत्रीय असमानता (Regional Disparity in Development) | Current Affairs | Vision IAS
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    विकास में क्षेत्रीय असमानता (Regional Disparity in Development)

    Posted 01 Jan 2025

    Updated 28 Nov 2025

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा "भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन: 1960-61 से 2023-24" शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया गया। इसमें भारतीय राज्यों में असमान विकास को रेखांकित किया गया है।

    वर्किंग पेपर में रेखांकित मुख्य ट्रेंड्स पर एक नज़र

    • सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय में असमानता:
      • भारत के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्र इस मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली, तेलंगाना, कर्नाटक और हरियाणा में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है।
        • दिल्ली की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 250.8% (2.5 गुना अधिक) है।
      • पश्चिम बंगाल में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट: एक समय पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 27% अधिक (1960-61 में सर्वोच्च तीसरा) थी, अब यह राष्ट्रीय औसत का 83.7% रह गई है।
      • ओडिशा में सुधार: ओडिशा ने अपनी सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय में सुधार किया है और यह राष्ट्रीय औसत के 55.8% (2000-01) से बढ़कर 2023-24 में 88.5% हो गई।
    • भारत की GDP में दक्षिणी राज्यों का प्रभुत्व: कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु ने 2023-24 में भारत की GDP में 30% से अधिक का योगदान दिया।
      • पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी 1960-61 में 10.5% (तीसरी सबसे अधिक हिस्सेदारी) थी, जो घटकर 2023-24 में केवल 5.6% रह गई।
    • कुल मिलाकर समुद्र तटीय राज्यों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी समुद्र तटीय राज्यों ने अन्य राज्यों की तुलना में स्पष्ट रूप से बेहतर प्रदर्शन किए हैं।
    • पंजाब और हरियाणा अलग-अलग राह पर: राष्ट्रीय आय के सापेक्ष पंजाब की प्रति व्यक्ति आय 1960-61 की 119.6% से गिरकर 2023-24 में 106.7% हो गई, जबकि हरियाणा की सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय 106.9% (1960-61) से बढ़कर 176.8 (2023-24) हो गई है।
      • उपर्युक्त डेटा के विश्लेषण से यह प्रश्न उठता है कि क्या पंजाब का कृषि पर ही अधिक ध्यान केंद्रित करना 'डच डिजीज' का कारण बन रहा है और इसका औद्योगीकरण बाधित हो रहा है?
    • पूर्वी क्षेत्र के राज्य चिंता का विषय बने हुए हैं: पिछले कई दशकों में, पश्चिम बंगाल का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन कमजोर हुआ है। वहीं बिहार की सापेक्ष स्थिति पिछले दो दशकों में स्थिर बनी हुई है, फिर भी यह अन्य राज्यों से काफी पीछे है।

    क्षेत्रीय असमानता के लिए जिम्मेदार कारक

    • ऐतिहासिक: ब्रिटिश नीतियों में संसाधन संपन्न क्षेत्रों (जैसे- कोलकाता, मुंबई और चेन्नई) को अधिक तरजीह दी गई थी। इससे भारत में आर्थिक असमानता एवं क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हुआ और यह आज भी बना हुआ है।
      • ऐतिहासिक रूप से, विकसित राज्यों में दक्ष शासन प्रणाली विद्यमान है, जिसे आसानी से अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं किया सका है।
    • भौगोलिक: दुर्गम भू-भाग (जैसे- पूर्वोत्तर राज्य) वाले क्षेत्रों में प्रशासन और परियोजना क्रियान्वयन की लागत बढ़ जाती है। बिहार और असम में बार-बार बाढ़ आने से वहां का विकास धीमा हो जाता है।
    • आर्थिक:
      • प्राथमिक क्षेत्रक का आर्थिक गतिविधियों का प्रभुत्व: कृषि पर निर्भर अधिक आबादी वाले राज्यों की तुलना में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक में अधिक कार्यरत आबादी वाले राज्यों की प्रति व्यक्ति आय अधिक है।
        • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों की प्रति व्यक्ति आय बिहार और उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय से अधिक है।
      • खराब अवसंरचना का प्रभाव: खराब परिवहन अवसंरचना और बैंकिंग सेवाएं पिछड़े क्षेत्रों में विकास को सीमित करती हैं।
    • गवर्नेंस:
      • राजनीतिक अस्थिरता: अस्थिर सरकारें तथा कानून और व्यवस्था से जुड़ी चिंताएं निवेश को हतोत्साहित करती हैं और पूंजी के बहिर्वाह यानी बाहर जाने को बढ़ावा देती हैं।
      • सरकारी योजनाओं की विफलता: उद्योग ऐसे स्थानों पर अधिक स्थापित किए जाते हैं, जहां आधारभूत संसाधन (जैसे कि बिजली और जल की निरंतर आपूर्ति, बेहतर सड़क और रेलवे अवसंरचना, कुशल श्रम आदि) पहले से उपलब्ध होते हैं।

    विकास में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए शुरू की गई पहलें

    • आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP): इसका उद्देश्य देश भर के 112 सबसे कम विकसित जिलों में तीव्र सुधार लाना है।
    • आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP): इसका उद्देश्य भारत के सबसे दुर्गम और अपेक्षाकृत अविकसित ब्लॉक्स (27 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों के 500 ब्लॉक) में नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए गवर्नेंस में सुधार करना है।
    • जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए 'वोकल फॉर लोकल' पहल: इसे आकांक्षी ब्लॉक के लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना को प्रोत्साहित करने और उन्हें सतत विकास व समृद्धि की ओर अग्रसर करने के लिए ABP के तहत शुरू किया गया है।
    • मानव संसाधन विकास: उदाहरण के लिए, प्रसव के लिए अस्पताल का कम उपयोग करने वाले राज्यों में जननी सुरक्षा योजना के तहत लाभार्थी और आशा कार्यकर्ताओं को अधिक प्रोत्साहन दिया जाता है। इससे प्रसव हेतु अस्पताल सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। 
    • सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP): इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास स्थित दूर-दराज और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की विकास संबंधी विशेष जरूरतों को पूरा कर उनके कल्याण को बढ़ावा देना है।

    विकास में क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए आगे की राह

    • अप्रोच में सुधार: उदाहरण के लिए, सभी क्षेत्रों के लिए एक जैसी योजना बनाने और लागू करने के बजाय, अलग-अलग क्षेत्रों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर योजना बनाई जानी चाहिए। जैसे कि पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ी क्षेत्र विकास तथा शुष्क क्षेत्रों में सूखा प्रवण क्षेत्र विकास जैसे कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
    • प्रदर्शन के आधार पर वित्त-पोषण: वित्त-पोषण प्रदान करने के तरीके को विकास मानक लक्ष्यों को पूरा करने से जोड़ा जाना चाहिए। साथ ही, आवश्यकता और औद्योगिक पिछड़ेपन के आधार पर प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
    • पिछड़े राज्यों में सुशासन को बढ़ावा देना: प्रभावी प्रशासन से विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में राज्यों को राजस्व बढ़ाने, निवेश आकर्षित करने तथा संसाधनों के उपयोग में सुधार करने में मदद मिलती है।
    • संतुलित अवसंरचना विकास: अविकसित राज्यों में अवसंरचना (बिजली, परिवहन, दूरसंचार, सिंचाई) में सुधार, निवेश और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देने की कुंजी है।
    • क्षेत्रीय निवेश:
      • विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज पर ध्यान केंद्रित करके कृषि में निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
      • सेवा क्षेत्रक विकास प्रक्रिया का नया प्रेरक है। इसलिए पिछड़े क्षेत्रों में विकास को गति देने के लिए बैंकिंग और बीमा क्षेत्रक तथा अवसंरचना को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष

    सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए, ऐसे अनुकूल माहौल बनाने पर ध्यान देना चाहिए जो नवाचार को बढ़ावा दे, निवेश को आकर्षित करे और संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग सुनिश्चित करे। गवर्नेंस और अवसंरचना में सुधार तथा सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के जरिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना अन्य आवश्यक कदम हो सकते हैं।

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