पवित्र उपवन (SACRED GROVES) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

पवित्र उपवन (SACRED GROVES)

04 Feb 2025
29 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को टी.एन. गोदावर्मन निर्णय (1996) के अनुपालन में ओरण जैसे पवित्र उपवनों की पहचान करने के लिए निर्देश दिए हैं।

पवित्र उपवन के बारे में

  • पवित्र उपवन वनों या प्राकृतिक वनस्पतियों के ऐसे क्षेत्र होते हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिए गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखते हैं। 
  • ये स्थान स्थानीय समुदायों द्वारा उनकी धार्मिक मान्यताओं और पारंपरिक अनुष्ठानों के कारण संरक्षित किए जाते हैं। 
  • IUCN के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 100,000 से 150,000 पवित्र उपवन हैं। 
  • मेघालय का पवित्र उपवन लिविंग रूट ब्रिज (जिंग कींग ज्री) यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश/ सुझाव

  • पवित्र उपवन को कानूनी संरक्षण: पवित्र उपवनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत विशेष रूप से धारा 36(c) के तहत सामुदायिक रिजर्व घोषित करके संरक्षण प्रदान करना चाहिए।
  • व्यापक नीति: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) पवित्र उपवनों के प्रशासन एवं प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति तैयार करेगा। 
  • सर्वेक्षण: पर्यावरण मंत्रालय पवित्र उपवनों के राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के लिए एक योजना भी विकसित करेगा, जिसमें उपवनों के क्षेत्र और विस्तार की पहचान की जाएगी। 
  • सामुदायिक भागीदारी: पर्यावरण मंत्रालय को ऐसी नीतियां और कार्यक्रम बनाने चाहिए, जो संबंधित समुदायों के अधिकारों का संरक्षण करें और उन्हें पवित्र उपवनों एवं वनों के संरक्षण में शामिल भी करें। 
    • सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत पारंपरिक समुदायों को संरक्षक के रूप में मान्यता दे कर उन्हें सशक्त बनाने का सुझाव भी दिया है। 
  • पिपलांत्री गांव जैसे मॉडल का प्रचार: सरकारों को संधारणीय विकास और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए पिपलांत्री मॉडल जैसी पहल को अन्य क्षेत्रों में लागू करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
    • पिपलांत्री गांव राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। इसे अपने अनोखे मॉडल के लिए अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है। इस मॉडल के तहत गांव में हर लड़की के जन्म पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं।

पवित्र उपवनों को संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?

  • सांस्कृतिक: पवित्र उपवन सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से जुड़े होते हैं। इन्हें अक्सर उन देवी-देवताओं के साथ जोड़ा जाता है, जिन्हें स्थानीय समुदाय इसलिए पूजते हैं कि ये देवी-देवता संबंधित समुदाय और उपवनों की रक्षा करते हैं। इन उपवनों की भूमिका त्यौहारों, शादियों और युवाओं के मेलजोल में भी महत्वपूर्ण होती है।
    • जैसे- केरल में सबरीमाला और गढ़वाल में हरियाली।
  • जैव विविधता का संरक्षण: ये उपवन अक्सर क्षेत्र की दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियों के लिए अंतिम शरणस्थली के रूप में काम करते हैं।
    • उदाहरण के लिए- मेघालय की कम-से-कम 50 दुर्लभ और लुप्तप्राय पादपों की प्रजातियां केवल पवित्र उपवनों में ही पाई जाती हैं। 
  • मृदा संरक्षण: पवित्र उपवनों का वनस्पति आवरण मृदा की स्थिरता को बढ़ाता है। इससे क्षेत्र में मृदा अपरदन भी कम होता है।
    • उच्चभूमि के उपवन (जैसे- पश्चिमी घाट और हिमालयी क्षेत्र) मृदा संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। 
  • आर्थिक और औषधीय लाभ: पवित्र उपवनों से स्थानीय समुदायों को खाद्य फल, पत्ते, रेशे, गोंद, रेजिन और औषधीय गुण वाले पौधे भी प्राप्त होते हैं। इस प्रकार पवित्र उपवन कई आयुर्वेदिक और पारंपरिक औषधियों की नर्सरी व भंडारगृह के रूप में होते हैं। 
  • पशुधन आधारित अर्थव्यवस्था का विकास: राजस्थान के बाड़मेर जिले में लगभग 41% पशुधन पवित्र उपवनों "ओरण" पर निर्भर हैं।

पवित्र उपवनों के समक्ष खतरे और चुनौतियां

  • पारंपरिक आस्था का लुप्त होना: पवित्र उपवनों के लिए आधारभूत रहीं पारंपरिक आस्था  धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। अब ऐसी प्रथाओं और अनुष्ठानों को अंधविश्वास माना जाने लगा है।
  • विकासात्मक गतिविधियां: सड़क, रेलवे, बांध और वाणिज्यिक वानिकी सहित तेजी से शहरीकरण एवं विकासात्मक परियोजनाओं के कारण देश के कई हिस्सों में पवित्र उपवनों का विनाश हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए- पश्चिमी घाट में एम्बी वैली टाउनशिप परियोजना जैसी विकास परियोजनाओं ने स्थानीय समुदाय के स्वामित्व वाली कई एकड़ भूमि को नष्ट कर दिया है। 
    • अतिक्रमण के कारण शुष्क पर्णपाती और प्रकाश प्रिय प्रजातियां इस क्षेत्र में पहुंच रही  रही हैं। इससे पुष्प संरचना के साथ-साथ सूक्ष्म-जलवायु (Microclimate) में भी बदलाव हो रहे हैं।
  • पशुधन: पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई और उनके खुरों से मृदा अपरदन होता है। चरने वाले पशु स्थानीय शाकाहारी पशुओं के लिए आहार संबंधी संसाधनों की कमी पैदा कर सकते हैं। इससे स्थानीय पशुओं के समक्ष अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो सकता है।
    • पंजाब में अत्यधिक चराई और कृषि विस्तार के कारण पवित्र उपवनों का क्षेत्रफल काफी कम हो गया है। 
  • आक्रामक प्रजातियां: विदेशी खरपतवारों का आक्रमण, वृक्षों की स्थानिक प्रजातियों के समक्ष एक गंभीर खतरा है।
    • यूपेटोरियम ओडोरेटम, लैंटाना कैमरा और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा ने देशज जैव विविधता के समक्ष खतरा पैदा कर दिया है।

आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम दिशा-निर्देशों के साथ, निम्नलिखित कदम भी उठाए जा सकते हैं: 

  • निगरानी: 'जैव-विविधता निगरानी समितियों' के माध्यम से पवित्र उपवनों की निगरानी की जानी चाहिए। 
  • सुरक्षा: पवित्र उपवनों के चारों ओर बाड़ लगाकर तथा "बफर जोन" स्थापित करके उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। 
  • सामुदायिक भागीदारी: ग्रामीण समुदायों द्वारा युवाओं को वन की पवित्रता को बनाए रखने के लिए शिक्षित और निर्देशित किया जा सकता है। साथ ही, वन संरक्षण कार्यक्रमों में युवाओं के लिए छोटे-छोटे प्रोत्साहनों के प्रावधान भी शामिल किए जा सकते हैं।
  • पवित्र उपवनों का जीर्णोद्धार: जीर्णोद्धार गतिविधियों में देशी प्रजातियों का रोपण; अंकुरित पादपों और पौध की सुरक्षा करना; दुर्लभ व स्थानिक पादपों के लिए नर्सरी की स्थापना करना; मृदा व जल संरक्षण के उपाय करना आदि शामिल किए जा सकते हैं।
Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features