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नदी जोड़ो परियोजना (RIVER LINKING PROJECT)

04 Feb 2025
26 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, प्रधान मंत्री ने केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना की आधारशिला रखी। 

केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के बारे में

  • पृष्ठभूमि: यह भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (National River Linking Project: NRLP) का हिस्सा है। इसका उद्देश्य केन बेसिन से अधिशेष जल को बेतवा बेसिन के जल अभावग्रस्तता वाले क्षेत्रों में पहुंचना है। इसे 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • स्थान: यह मुख्य रूप से सूखा प्रवण बुंदेलखंड क्षेत्र पर केंद्रित मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विस्तृत है।
  • मुख्य घटक: 
    • चरण I:
      • सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व में दौधन बांध (77 मीटर ऊंचा)। 
  • केन-बेतवा लिंक नहर (221 किमी) से जल स्थानांतरित किया जाएगा। 
  • चरण II:
    • बेतवा बेसिन में पानी की कमी को दूर करने के लिए लोअर ओर्र बांध (Lower Orr dam), बीना कॉम्प्लेक्स और कोटा बैराज का निर्माण किया जाएगा। 

राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) के बारे में 

  • पृष्ठभूमि: 
    • नदियों को आपस में जोड़ने का विचार सबसे पहले 1850 के दशक में सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। तत्पश्चात इसे पुनः 1972 में तत्कालीन भारत के बिजली और सिंचाई मंत्री के.एल. राव ने उठाया था।
    • इसकी शुरुआत 1980 के दशक में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan: NPP) के तहत की गई थी। वर्ष 1982 में नदियों को आपस में जोड़ने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई थी। 
      • 2021 में, केंद्र ने NPP के लिए सर्वोच्च कार्यान्वयन निकाय के रूप में और NWDA को प्रतिस्थापित करने के लिए राष्ट्रीय नदी इंटरलिंकिंग प्राधिकरण (National Interlinking of Rivers Authority: NIRA) का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। 
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य जल की अधिकता वाले क्षेत्रों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल को स्थानांतरित करना है। इससे संभावित रूप से 30 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी तथा 20,000-25,000 मेगावाट बिजली उत्पन्न होगी। 
    • इसे बाढ़ और सूखे का शमन करने, ग्रामीण आय बढ़ाने और अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के रूप में देखा जा रहा है। 
  • राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने निम्नलिखित घटकों की पहचान की है:
    • हिमालयी नदियों का विकास: इसमें गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी उत्तरी नदियों पर 14 रिवर लिंक की पहचान की गई है। 
    • प्रायद्वीपीय नदी विकास: इसमें केन-बेतवा लिंक सहित 16 रिवर लिंक की पहचान की गई है।
    • अंतर्राज्यीय लिंक: राज्य के भीतर जल प्रबंधन के लिए। 

नदी जोड़ो परियोजनाओं के समक्ष चुनौतियां

  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • वन्यजीव पर्यावासों में व्यापक व्यवधान: केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना जैसी परियोजनाओं के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व का 98 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न हो गया है। इससे बाघ, घड़ियाल और विभिन्न प्रजातियों के समक्ष खतरा पैदा हो गया है।
    • वनों की व्यापक कटाई के कारण स्थानीय जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
    • IIT-बॉम्बे द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, जल स्थानांतरण के कारण वर्षा की कमी हो सकती है।
  • आर्थिक चिंताएं:
    • उच्च कार्यान्वयन लागत इन परियोजनाओं की व्यवहार्यता पर सवाल उठा रही है। जैसे- केन-बेतवा परियोजना की लागत 44,605 करोड़ रुपये है। 
    • रखरखाव संबंधी अत्यधिक लागत के कारण वित्तीय बोझ बढ़ सकता है।
  • सामाजिक निहितार्थ:
    • स्थानीय आबादी का बड़े पैमाने पर विस्थापन।
    • पुनर्वास और मुआवजे जैसी जटिल चुनौतियां समुदायों को प्रभावित करती हैं।
    • परंपरागत आजीविका और सामाजिक संरचनाओं में व्यवधान पैदा हो सकता है।
  • तकनीकी चुनौतियां:
    • विशेषकर गैर-बारहमासी नदियों में जल की उपलब्धता के बारे में अनिश्चितता बरकरार है।
    • नदी प्रणालियों के बीच जल के स्थानांतरण के दौरान जल की गुणवत्ता संबंधी चिंताएं भी मौजूद हैं।
    • यह वर्षा जल संचयन जैसे संधारणीय विकल्पों बनाम बड़े पैमाने पर रिवर लिंकिंग के मध्य बहस का मुद्दा बना हुआ है।

क्षेत्रीय जल असमानता को दूर करने के लिए आगे की राह

  • अंतर्राज्यीय सहयोग:
    • राज्यों के बीच जल के बंटवारे के लिए स्पष्ट फ्रेमवर्क होना चाहिए।
    • प्रभावी विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना चाहिए।
    • विलंब को रोकने के लिए नियमित तौर पर अंतर्राज्यीय परामर्श सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 
  • हितधारक सहभागिता: 
    • ऐसी परियोजनाओं की योजना बनाने और उनके कार्यान्वयन में सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही, स्थानीय आबादी के साथ संबंधित जानकारी का पारदर्शी संचार किया जाना चाहिए। 
    • जल प्रबंधन में देशज ज्ञान को शामिल करना चाहिए।
  • तकनीकी एकीकरण: 
    • स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों और रियल टाइम में निगरानी करने वाले साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए।
    • उन्नत जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • मंगल टरबाइन जैसे संधारणीय समाधानों को शामिल किया जाना चाहिए। 
      • मंगल टरबाइन का आविष्कार बुंदेलखंड के किसान मंगल सिंह ने 1987 में किया था। यह टरबाइन डीजल या बिजली का उपयोग किए बिना बहते पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके सिंचाई के लिए पानी को लिफ्ट करता है। 
  • पर्यावरण संरक्षण: 
    • व्यापक जल विज्ञान अध्ययनों के साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment: EIA) को मजबूत बनाना चाहिए। 
    • पारिस्थितिक क्षति के लिए प्रभावी क्षतिपूर्ति उपायों को लागू किया जाना चाहिए। 
    • पर्यावरणीय परिवर्तनों पर नजर रखने के लिए निगरानी प्रणालियां विकसित करनी चाहिए।

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