सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation: CDSCO) ने दुर्लभ रोगों के लिए पहली एंटी-कंप्लीमेंट थेरेपी को मंजूरी दी है।
अन्य संबंधित तथ्य

- इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत में दुर्लभ रोगों के लिए उपचार संबंधी अवसंरचना सुधार लाने और आवश्यक वित्त-पोषण के उद्देश्य से केंद्र सरकार को कई निर्देश दिए थे।
- इसके अलावा, मास्टर अर्नेश शॉ बनाम भारत संघ और अन्य वाद में, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस संबंध में निर्णय दिया था। कोर्ट ने कहा था कि दुर्लभ रोगों से पीड़ित रोगियों, विशेषकर बच्चों को केवल महंगी दवाओं या इलाज की अत्यधिक लागत की वजह से उपचार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
- कोर्ट ने आगे यह दोहराया था कि स्वास्थ्य का अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा है। इसे सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाना चाहिए, जिसमें दुर्लभ रोगों से पीड़ित लोग भी शामिल हैं।
दुर्लभ रोग क्या हैं?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुर्लभ रोग प्रति 1000 लोगों में से 1 में या उससे भी कम लोगों में पाया जाता है। यह रोग ऐसी बीमारी या विकार होता है जो आजीवन बना रह सकता है और व्यक्ति को कमजोर बना सकता है। उदाहरण के लिए, फैनकोनी एनीमिया, ऑस्टियोपेट्रोसिस आदि।
- हालांकि, देशों की अपनी जरूरतों, जनसंख्या, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और संसाधनों के अनुसार दुर्लभ रोगों की अपनी-अपनी परिभाषाएं हैं।
- वर्तमान में, 63 दुर्लभ रोगों को राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021 {National Policy for Rare Disease (NPRD), 2021} के तहत सूचीबद्ध किया गया है। इन्हें 3 समूहों के तहत वर्गीकृत किया गया है (इन्फोग्राफिक देखें)।
- वैज्ञानिक प्रगति और केंद्रीय तकनीकी समिति द्वारा दुर्लभ रोगों के लिए की गई सिफारिशों के आधार पर इन समूहों में रोगों की सूची को समय-समय पर अपडेट किया जाता है।
भारत में दुर्लभ रोगों का वर्गीकरण (NPRD 2021 के अनुसार) | ||
समूह 1 एक बार के रोगनिरोधी उपचार योग्य। | समूह 2 अपेक्षाकृत कम लागत और प्रमाणित लाभों के साथ दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता वाले रोग। | समूह 3 ऐसे रोग जिनका निश्चित उपचार उपलब्ध है, लेकिन उच्च लागत, आजीवन उपचार की आवश्यकता और उपयुक्त रोगियों के चयन की चुनौती बनी रहती है। |
उदाहरण के लिए- अंग प्रत्यारोपण के कारण होने वाले विकार, जैसे- यूरिया चक्र विकार, फैब्री रोग आदि। | उदाहरण के लिए- विशेष आहार माध्यमों से प्रबंधित विकार, जैसे- फेनिलकेटोनुरिया, होमोसिस्टीनुरिया, आदि। | उदाहरण के लिए- गौचर रोग, पोम्पे रोग आदि। |
दुर्लभ रोगों से निपटने के लिए की गई पहलें
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भारत में दुर्लभ रोगों के प्रबंधन से जुड़ी समस्याएं
- उच्च प्रसार दर: वैश्विक स्तर पर दुर्लभ रोगों से पीड़ित एक-तिहाई लोग भारत में ही हैं और अब तक 450 से अधिक दुर्लभ बीमारियों की पहचान की जा चुकी है।
- सीमित क्लीनिकल ट्रायल्स: दुनिया भर में दुर्लभ रोगों के लिए 8000 से अधिक क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। इनमें से केवल 80 ट्रायल्स भारत में किए जा रहे हैं, जो इनके प्रतिशत के मामले में 0.1% से भी कम है।
- परिभाषा का अभाव: भारत में अभी तक दुर्लभ रोगों के लिए एक मानक परिभाषा नहीं है। साथ ही, इसके लिए पर्याप्त महामारी विज्ञान (Epidemiological) संबंधी डेटा की भी कमी है।
- कम बजटीय सहायता: 2023-24 के बजट में दुर्लभ रोगों के लिए 93 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, जो कि निरंतर वृद्धि के बावजूद अभी भी कम है।
- उत्कृष्टता केंद्रों द्वारा निधियों का कम उपयोग: 11 उत्कृष्टता केंद्रों को वित्तीय सहायता के लिए 71 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। हालांकि, इसमें से 47 करोड़ रुपये से अधिक का उपयोग नहीं किया गया है।
दुर्लभ रोगों से जुड़ी अन्य चुनौतियां | |||
निदान में देरी/ गलत निदान | उपचार के सीमित विकल्प | सीमित अनुसंधान एवं विकास | रोगियों पर प्रभाव |
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आगे की राह
- दिल्ली हाई कोर्ट के हालिया निर्णय के प्रमुख निर्देशों को लागू करना:
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (National Fund for Rare Diseases: NFRD) की स्थापना: इसमें वित्त वर्ष 2024-25 और 2025-26 के लिए 974 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाना है।
- आवंटित फंड को बिना उपयोग किए वापस नहीं किया जा सकेगा या यह व्यपगत भी नहीं होगा।
- NFRD का संचालन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoH&FW) में एक या अधिक नोडल अधिकारियों से युक्त राष्ट्रीय दुर्लभ रोग प्रकोष्ठ (National rare disease cel) द्वारा किया जाएगा।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति (National Rare Diseases Committee: NRDC) 2023 में गठित की गई थी। यह समिति भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research: ICMR) के महानिदेशक की अध्यक्षता में अपना कार्य अगले पांच वर्षों तक जारी रखेगी।
- रोगियों, डॉक्टरों और आम जनता के लिए केंद्रीकृत राष्ट्रीय दुर्लभ रोग सूचना पोर्टल 3 महीने के भीतर विकसित और संचालित किया जाना चाहिए। इसमें रोगियों की रजिस्ट्री, उपलब्ध उपचार जैसी सुविधाएं प्रदान की जाएगी।
- भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) को स्थानीय और वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल्स की निगरानी करते हुए निर्देश दिया जाए ताकि अधिक-से-अधिक रोगियों को इन ट्रायल्स में शामिल किया जा सके।
- दुर्लभ रोगों की दवाओं और उपचार के लिए समर्पित फास्ट ट्रैक अनुमोदन प्रक्रिया बनाई जाएगी।
- दुर्लभ रोग उपचारों का आयात करने वाली दवा कंपनियों को भारत में स्थानीय विनिर्माण/वितरण सुविधाएं स्थापित करने के लिए 90 दिनों के भीतर MoH&FW और राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति (National Rare Disease Committee: NRDC) के समक्ष विस्तृत योजना प्रस्तुत करनी होगी।
- कंपनी अधिनियम की अनुसूची VII में दुर्लभ बीमारियों के लिए दान को शामिल करके सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों सहित कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility: CSR) के जरिए योगदान को संभव बनाना चाहिए।
- NRDC की सिफारिश के अनुसार, समूह 3 श्रेणी में दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD), 2021 के तहत 50 लाख रुपये की ऊपरी सीमा में बदलाव करना चाहिए।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (National Fund for Rare Diseases: NFRD) की स्थापना: इसमें वित्त वर्ष 2024-25 और 2025-26 के लिए 974 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाना है।
- उठाये जाने योग्य अन्य कदम
- दुर्लभ रोगों की परिभाषा निर्धारित करने के लिए महामारी विज्ञान और इन रोगों के प्रसार संबंधी डेटा अनुसंधान को मजबूत करना चाहिए।
- राष्ट्रीय रजिस्ट्री का निर्माण करना: पूरे भारत में दुर्लभ रोगों पर महामारी विज्ञान डेटा एकत्र करने के लिए अस्पताल-आधारित राष्ट्रीय रजिस्ट्री शुरू की जानी चाहिए। इससे आवश्यक डेटा की कमी को दूर किया जा सकेगा।
- विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं बहुत कम हैं वहां पर उत्कृष्टता केन्द्रों (CoEs) का विस्तार करना चाहिए। इससे रोगियों का समय पर निदान होगा और उपचार तक बेहतर सुविधा मिलेगी।
- उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना के तहत संबंधित दवाओं के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देना चाहिए।