सुर्ख़ियों में क्यों?
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" की व्यवस्था को लागू करने से संबंधित दो विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेजा गया है। ये दो विधेयक हैं-
- 29वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक 2024; और
- केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024
विधेयकों के मुख्य प्रावधानों पर एक नज़र
129वें संविधान (संशोधन) विधेयक 2024 के तहत लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने हेतु संशोधन और नए अनुच्छेद शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है।
संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन | संविधान में अनुच्छेद 82A जोड़ा जाएगा |
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- केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024: इसके जरिए केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963; राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। ये संशोधन विधान सभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों की विधान सभाओं के कार्यकाल को एक साथ चुनाव के तहत लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल के अनुरूप करने के लिए प्रस्तावित हैं।
एक साथ चुनावों के बारे में
- एक साथ चुनाव को एक राष्ट्र एक चुनाव के रूप में भी जाना जाता है। भारत में इसका आशय लोक सभा, राज्य विधान सभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को एक साथ संपन्न कराए जाने से है। ऐसा होने पर किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता इन सभी चुनावों के लिए एक ही दिन मतदान कर सकेंगे।
- हालांकि, स्थानीय निकायों से संबंधित संशोधन इस विधेयक में शामिल नहीं हैं।
- एक साथ चुनाव का आशय यह नहीं है कि संपूर्ण देश में इन सभी चुनावों के लिए एक ही दिन मतदान हो।
- ज्ञातव्य है कि पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने संसद, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव करवाने का रोडमैप प्रस्तुत किया था।

एक साथ चुनाव की आवश्यकता क्यों?
- आर्थिक बोझ को कम करना: एक साथ चुनाव करवाने से अलग-अलग चुनाव प्रक्रियाओं से जुड़ी वित्तीय लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- इस मॉडल को अपनाने से अलग-अलग चुनावों के संचालन में लगने वाले संसाधन जैसे मानवशक्ति, उपकरणों और सुरक्षा पर खर्च में कमी होगी।
- आर्थिक प्रभाव: अलग-अलग समय पर बार-बार होने वाले चुनावों के कारण प्रशासनिक कार्यों में अनिश्चितता और अस्थिरता उत्पन्न होती है। इससे आपूर्ति श्रृंखला, व्यापार, निवेश और आर्थिक संवृद्धि बाधित होते हैं।
- शासन व्यवस्था में व्यवधान और नीतिगत पंगुता: बार-बार लागू होने वाली आचार संहिता (Model Code of Conduct: MCC) के कारण नीतिगत पंगुता (Policy paralysis) की स्थिति उत्पन्न होती है और विकासात्मक कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है।
- मतदाताओं की भागीदारी से जुड़ी चुनौतियां: बार-बार चुनावों के कारण 'मतदाताओं में थकान' (Voter Fatigue) की स्थिति उत्पन्न होती है और उनकी पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है।
- प्रक्रियात्मक दक्षता और संसाधनों का समुचित उपयोग: एक-साथ चुनावों से चुनाव संबंधी अपराध एवं विवाद कम होंगे तथा अदालतों पर बोझ घटेगा।
एक साथ चुनाव से जुड़ी समस्याएं
- संवैधानिक चुनौतियां: राज्यों की विधान सभाओं के कार्यकाल में एकरूपता लाने के लिए राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग किया जा सकता है।
- लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियां: 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार भारत के 96 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए 1 मिलियन से अधिक मतदान केंद्रों और व्यापक सुरक्षा संसाधनों की आवश्यकता होगी।
- एक साथ चुनाव करवाने से प्रशासनिक क्षमता पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है।
- संघवाद पर प्रभाव: अनुच्छेद 172 के तहत राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल में संशोधन करने के लिए राज्यों की अभिपुष्टि की आवश्यकता नहीं है।
- इससे राज्यों की राय सीमित हो जाएगी।
- मतदाता व्यवहार पर प्रभाव: एक साथ चुनाव करवाने से स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दों को वरीयता मिल सकती है। इससे मतदाता क्षेत्रीय समस्याओं की अनदेखी करके राष्ट्रीय दलों को प्राथमिकता दे सकते हैं। यह छोटे दलों की अभिव्यक्ति को कमजोर कर सकता है।
- कानूनी और संसदीय आवश्यकताएं: अनुच्छेद 83, 172, 327 जैसे कई संवैधानिक प्रावधानों तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- राजनीतिक जवाबदेही: बार-बार आयोजित होने वाले चुनाव जन-प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाए रखते हैं। वहीं, निर्धारित समयावधि पर एक साथ चुनाव करवाने से स्थिरता तो मिलती है, लेकिन प्रदर्शन की समीक्षा के बिना स्थिरता लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती दे सकती है।
निष्कर्ष
एक साथ चुनाव, संभावित लाभ और चुनौतियां दोनों प्रस्तुत करते हैं। यह व्यवस्था राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, चुनावी खर्चों को कम कर सकती है और शासन में सुधार कर सकती है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में लॉजिस्टिक संबंधी कठिनाइयों, राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना, और क्षेत्रीय दलों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव, क्षेत्रीय मुद्दों के गौण होने जैसी चिंताएं बनी हुई हैं। अतः इसे लागू करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने और एक मजबूत लोकतांत्रिक फ्रेमवर्क की आवश्यकता होगी।