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हाइपरलूप (HYPERLOOP)

04 Feb 2025
33 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, IIT मद्रास की 'आविष्कार हाइपरलूप टीम' ने TuTr नमक स्टार्टअप के साथ सहयोग से 410 मीटर का हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक पूरा किया है। यह भारत में हाइपरलूप तकनीक के संबंध में पहला प्रयोग है।

हाइपरलूप तकनीक क्या है?

  • अवधारणा: 2013 में, स्पेसएक्स के CEO एलन मस्क ने हाइपरलूप नामक अल्ट्रा-हाई-स्पीड रेल (UHSR) की अवधारणा को ओपन-सोर्स के रूप में प्रस्तुत किया था। 
  • हाइपरलूप: यह एक उच्च गति वाली परिवहन प्रणाली है। इसमें सील्ड और मानव के लिए आवश्यक वायुमंडलीय दबाव से युक्त पॉड्स निम्न दबाव वाली ट्यूब्स में अत्यधिक तीव्र गति से चलते हैं।
    • यह प्रौद्योगिकी काफी हद तक एक बहुत पहले व्यक्त किए गए विचार पर आधारित है, जिसे "ग्रेविटी वैक्यूम ट्यूब", "ग्रेविटी वैक्यूम ट्रांजिट" या "हाई स्पीड ट्यूब ट्रांसपोर्टेशन" के रूप में जाना जाता है। यह विचार मूल रूप से 1865 में व्यक्त किया गया था।
  • यह कैसे कार्य करता है?
    • हाइपरलूप मूलतः एक चुंबकीय उत्तोलन (मैग्नेटिक लेविटेशन या मैग्लेव) ट्रेन प्रणाली है। इसमें चुम्बकों का एक सेट पॉड्स को ट्रैक से कुछ ऊपर बनाए रखते हैं, इसे होवर स्थिति कहते हैं। चुम्बकों के दूसरे सेट का उपयोग पॉड्स को ट्रैक पर आगे धकेलने के लिए किया जाता है।
    • हाइपरलूप प्रौद्योगिकी में यात्रा निम्न दबाव वाली स्टील ट्यूब जैसे संरचना के अंतर्गत होती है। इस ट्यूब में से सारी वायु निकाल कर लगभग निर्वात (Vacuum) की स्थिति बनाई जाती है। 
    • इस अवधारणा के अनुसार, ट्यूब में पॉड 1,200 किमी/ घंटा की सैद्धांतिक गति से यात्रा कर सकते है। 
  • सुगम्यता: हाइपरलूप तकनीकी का उद्देश्य यात्रा के समय को काफी कम करना है, जिससे लोग लंबी दूरी को भी बहुत तेजी से और कम समय में तय कर सकें। इससे लोग काफी दूर-दूर स्थित शहरों के मध्य भी काफी तेजी से आ-जा सकेंगे। 

हाइपरलूप के घटक

  • ट्यूब: दो स्टील ट्यूब को एक साथ वेल्ड किया जाता है, ताकि कैप्सूल या पॉड्स दोनों दिशाओं में यात्रा कर सकें। ट्यूब के अंदर अपेक्षित वायु दबाव लगभग 100Pa बनाए रखा जाता है। 
  • कैप्सूल या पॉड: कैप्सूल या पॉड्स में यात्री बैठते हैं। कैप्सूल को गति देने के लिए मैग्नेटिक लीनियर एक्सीलरेटर का उपयोग किया जाता है। 
  • कंप्रेसर: यह कैप्सूल के सामने की ओर होता है और कैप्सूल को ट्यूब की दीवारों एवं कैप्सूल के बीच यात्रा करने वाले वायु प्रवाह को बाधित किए बिना कम दबाव वाली ट्यूब से गुजरने में सक्षम बनाता है। 
  • निलंबन: विश्वसनीयता और सुरक्षा के उद्देश्य से इसमें एयर बेयरिंग सस्पेंशन का उपयोग किया जाता है।
  • प्रणोदन: कैप्सूल को गति देने और धीमा करने के लिए स्थायी मेग्नेट मोटर की जगह लीनियर इंडक्शन मोटर का उपयोग किया जाता है। इससे सामग्री की लागत कम हो जाती है तथा कैप्सूल का वजन भी कम बना रहता है।

हाइपरलूप प्रौद्योगिकी से जुड़ी कुछ समस्याएं

  • लागत: नासा द्वारा हाइपरलूप की व्यावसायिक व्यवहार्यता पर एक रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें बताया गया है कि भूमि अधिग्रहण को छोड़कर, केवल प्रौद्योगिकी के लिए प्रति मील लागत 25-27 मिलियन डॉलर आएगी। 
  • हाइपरलूप संबंधी सुरक्षा: इसमें सुरक्षा संबंधी चिंताएं जैसे आग लगना, कैप्सूल में संचार प्रणाली संबंधी चुनौतियां आदि शामिल हैं। 
    • यद्यपि निम्न दबाव की स्थिति ट्यूब्स में आग लगने से रोकती है, लेकिन पॉड्स के अंदर आग लगना एक वास्तविक खतरा है।
    • किसी दुर्घटना की स्थिति में हाइपरलूप प्रणाली से बाहर निकलना कठिन है, क्योंकि ट्यूब्स में सीमित संख्या में निकास द्वार होते हैं।
  • ट्यूब में निर्वात को बनाए रखने की चुनौती: सैकड़ों किलोमीटर तक ट्यूब में निर्वात बनाए रखना काफी कठिन है और ट्यूब को डिप्रेशराइज्ड करने में भी बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। 
  • त्वरण का व्यापक प्रभाव: पार्श्व या ऊर्ध्वाधर दिशा में 2 m/s2 से अधिक का कोई भी त्वरण (Accelerations) मनुष्यों के लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप घबराहट और उल्टी आने जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
    • हाइपरलूप का वर्तमान त्वरण जापान की शिंकानसेन बुलेट ट्रेन प्रणाली के अधिकतम त्वरण से सात गुना अधिक है। 
    • ट्यूब का निर्माण यथा संभव एक सीध में करना: कम-से-कम मोड़ के साथ लम्बी दूरी तक उच्च गति को बनाए रखने और किसी भी दुर्घटना को रोकने के लिए सम्पूर्ण मार्ग में एक स्थिर और मजबूत अवसंरचना के निर्माण की आवश्यकता होती है।

अन्य उभरती आधुनिक परिवहन प्रणालियां

  • ऑटोनोमस हेलीकॉप्टर: 
    • विकास: एयरबस ने अपने 'वाहना इलेक्ट्रिक वर्टिकल टेक-ऑफ एंड लैंडिंग' (eVTOL) का उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है। 
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य eVTOL विमानों का एक बेड़ा तैयार करना तथा उन्हें प्रमुख शहरों में इमारतों की छतों पर तैनात करना है। इससे यात्रियों को घनी आबादी वाले उन क्षेत्रों में जाने में सुविधा होगी, जहां सड़क यातायात अवरुद्ध रहता है। 
  • स्मार्ट सड़कें 
    • यूरोपीय संघ द्वारा सह-वित्तपोषित पुर्तगाल की इस योजना के तहत देश में लगभग 1,000 किलोमीटर स्मार्ट सड़कें बनाई जाएंगी। 
    • इस पहल के तहत मार्ग पर अत्याधुनिक परिवहन प्रौद्योगिकियों की एक श्रृंखला स्थापित की जाएगी। इससे सड़क-आधारित अवसंरचना के नोड्स और स्मार्ट कारों के बीच वायरलेस संचार की सुविधा मिलेगी। 
    • स्वीडन ने हाल ही में एक पायलट परियोजना पूरी की है, जिसके तहत दो किलोमीटर सड़क को विद्युतीकृत ट्रैक में परिवर्तित किया गया है। यह विद्युत चालित कारों और ट्रकों जैसे परिवहन के साधनों को चलाते समय रिचार्ज करने की सुविधा प्रदान करती है। 
  • भारत की बुलेट ट्रेन परियोजना: 
    • मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (MAHSR) भारत की पहली हाई स्पीड ट्रेन परियोजना है। 
    • भारत मुंबई और अहमदाबाद के बीच अपनी पहली बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जापानी शिंकानसेन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहा है। 
    • राष्ट्रीय हाई-स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NHSRCL) की स्थापना भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत की गई है। 

आगे की राह

  • निजी कंपनियों और सरकारों से पर्याप्त वित्तीय सहायता: ट्यूब्स को कुशलतापूर्वक डिप्रेशराइज्ड करने जैसे समाधान खोजने के लिए अनुसंधान और विकास हेतु काफी अधिक मात्रा में वित्तीय सहायता आवश्यक है। 
    • हाइपरलूप प्रौद्योगिकी बाजार का आकार 2023 में 2.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। यह 2031 तक 36.6% के चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 24.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। 
  • निरंतर अनुसंधान एवं विकास: विशेष रूप से कुशल प्रणोदन के लिए लीनियर इंडक्शन मोटर्स (LIMs) जैसे क्षेत्रों में निरंतर अनुसंधान एवं विकास आवश्यक है। 
  • बुनियादी अवसंरचना: न केवल पॉड संबंधी अवसंरचना बल्कि हाइपरलूप स्टेशनों से संबंधित अवसंरचना की भी आवश्यकता है। इसके लिए कई परियोजनाओं की आवश्यकता होगी और इसे सड़कों, रेल प्रणालियों और एविएशन नेटवर्क में भी जोड़ना होगा। 
  • मानकों और सुरक्षा के लिए विनियमन की आवश्यकता: भारत यूरोपीय देशों की तर्ज पर नीति तैयार कर सकता है। 2020 में यूरोपीय देश एक साथ आए और हाइपरलूप के संबंध में JTC 20 नामक एक संयुक्त तकनीकी समिति (JTC) बनाने पर सहमत हुए।

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