सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR), 2023 जारी की।
भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) के बारे में

- पृष्ठभूमि
- इसे भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा तैयार किया जाता है।
- इसे 1987 से हर दो साल में प्रकाशित किया जाता है।
- आकलन की पद्धति
- इसमें उपग्रह से प्राप्त डेटा का उपयोग किया जाता है।
- इसमें राष्ट्रीय वन सूची के डेटा का उपयोग किया जाता है।
- इसमें जमीनी स्तर पर सत्यापन (Field verification) किया जाता है।
- 2023 के संस्करण में 751 जिलों को कवर किया गया है। गौरतलब है कि पिछली रिपोर्ट में 636 जिलों को कवर किया गया था।
ISFR, 2023 में उपयोग की गई मुख्य परिभाषाएं

- वृक्ष आवरण (Tree Cover): इसमें वन क्षेत्र के बाहर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मौजूद एक हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले ऐसे सभी वृक्ष क्षेत्र शामिल हैं, जो वन आवरण के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- वन आवरण (Forest Cover): इसमें एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की ऐसी सभी भूमियां शामिल होती हैं, जिनका वृक्ष वितान घनत्व 10% या उससे ज्यादा होता है। इसमें सभी बागान, बांस और ताड़ के वृक्ष भी शामिल होते हैं, चाहे उस भूमि का मालिकाना हक, कानूनी दर्जा और उपयोग कुछ भी हो। ऐसी भूमि का रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (Recorded Forest Area: RFA) में दर्ज होना जरूरी नहीं है।
- वन क्षेत्र (Forest Area): इसे रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (RFA) के रूप में भी जाना जाता है। इसे ऐसी सभी भूमियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिन्हें किसी भी सरकारी अधिनियम या नियमों के तहत वन के रूप में अधिसूचित किया गया है या सरकारी रिकॉर्ड में 'वन' के रूप में दर्ज किया गया है।
- इस प्रकार, 'वन क्षेत्र' शब्द सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भूमि के संबंध में कानूनी स्थिति को दर्शाता है।
- वहीं, 'वन आवरण' शब्द किसी भी भूमि पर वृक्षों की उपस्थिति को दर्शाता है।

निष्कर्ष
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 भारत के वनों और हरित क्षेत्रों की निगरानी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह वनों के संसाधनों को ट्रैक और प्रबंधित करने के प्रयासों को उजागर करती है। हालांकि, रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई "वन आवरण" की व्यापक परिभाषा को लेकर कुछ चिंताएं भी व्यक्त की जा रही हैं। इस परिभाषा में शहरी हरित क्षेत्र और वृक्ष आवरण को शामिल किया गया है, जो कुल वन क्षेत्र के आंकड़ों को बढ़ा सकते हैं। ये क्षेत्र भले ही हरित आवरण में योगदान देते हों, लेकिन ये प्राकृतिक वनों को नहीं दर्शाते हैं। इसके अलावा, यह रिपोर्ट वनों के आंतरिक क्षरण, जैसे- जैव विविधता की हानि, वृक्षों के घनत्व में कमी या मौजूदा वनों में पारिस्थितिक असंतुलन को नहीं दर्शाती है। इससे प्रस्तुत आंकड़ों की विश्वसनीयता और सटीकता पर सवाल उठ सकते हैं। इस स्थिति में, अधिक सटीक वन मूल्यांकन मानदंड की आवश्यकता है, ताकि प्राकृतिक वनों और मानव निर्मित हरित क्षेत्रों के बीच अंतर स्पष्ट हो सके और देश के वनों की वास्तविक स्थिति का बेहतर आकलन हो सके।