सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के CE20 क्रायोजेनिक इंजन ने सामान्य वायुमंडलीय दबाव पर किए गए परीक्षण (Sea-level Test) को सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह इसकी प्रणोदन (Propulsion) प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
अन्य संबंधित तथ्य

- सी लेवल टेस्ट में नोजल के भीतर फ्लो सेपरेशन जैसी समस्याओं को मैनेज करने के लिए 'नोजल प्रोटेक्शन सिस्टम' को शामिल किया गया। फ्लो सेपरेशन जैसी समस्याएं कंपन, ओवर हीटिंग और नोजल में क्षति का कारण बन सकती है। सी लेवल टेस्ट के तहत समुद्री सतह पर पड़ने वाले सामान्य वायुमंडलीय दबाव पर इंजन को परखा जाता है।
- इसरो भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, गगनयान के लिए इस इंजन पर काम कर रहा है।
- परीक्षण स्थल: तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में स्थित इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स।
- इस परीक्षण में नवीन 'नोजल प्रोटेक्शन सिस्टम' को शामिल किया गया है, ताकि इंजन को रीस्टार्ट करने की क्षमता के समक्ष तकनीकी चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
- इससे पहले, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने 2023 में बेंगलुरु में एकीकृत क्रायोजेनिक इंजन विनिर्माण सुविधा भी स्थापित की है।
क्रायोजेनिक इंजन कैसे काम करता है?
- कार्य-प्रणाली संबंधी सिद्धांत: इसमें थ्रस्ट आंतरिक दहन/ दबाव अंतर द्वारा उत्पन्न होता है।
- इसमें न्यूटन का 'गति का तीसरा नियम' लागू होता है - "प्रत्येक क्रिया की एक समान किंतु विपरीत प्रतिक्रिया होती है"।
- उपयोग: क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान जैसे रॉकेट के अंतिम चरण (या अपर स्टेज) में किया जाता है।
- क्रायोजेनिक इंजन में क्रायोजेनिक ईंधन और ऑक्सिडाइजर दोनों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें बहुत कम तापमान पर द्रव या तरल में रूपांतरित किया जाता है।
- ईंधन: क्रायोजेनिक इंजन में प्रयुक्त ईंधन और ऑक्सिडाइजर तरलीकृत (Liquefied) गैसें हैं, जिन्हें अत्यंत निम्न तापमान पर भंडारित किया जाता है
- सामान्यतः -253° सेल्सियस पर तरलीकृत हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है, तथा -183° सेल्सियस पर तरलीकृत ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सिडाइजर के रूप में किया जाता है।
नोट: सेमी-क्रायोजेनिक इंजन में तरल हाइड्रोजन के स्थान पर परिष्कृत केरोसिन का उपयोग किया जाता है। परिष्कृत केरोसिन का वजन तुलनात्मक रूप से कम होता है और इसे सामान्य तापमान पर स्टोर किया जाता है।
क्रायोजेनिक इंजन के लाभ
- दक्षता और थ्रस्ट: सॉलिड और अर्थ-स्टोरेबल लिक्विड प्रोपेलेंट रॉकेट स्टेज की तुलना में, क्रायोजेनिक प्रणोदन काफी अधिक थ्रस्ट उत्पन्न करता है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि इसमें ईंधन के रूप में उपयोग होने वाले तरल ऑक्सीजन (LOX) और तरल हाइड्रोजन (LH2) अधिकतम ऊर्जा प्रदान करते हैं और केवल जलवाष्प उत्सर्जित करते हैं।
- ईंधन दक्षता: क्रायोजेनिक इंजन कम ईंधन का उपयोग करते हैं। इसरो का PSLV विकास इंजन प्रति सेकंड 3.4 किलोग्राम ईंधन का दहन करता है, जबकि क्रायोजेनिक इंजन को समान थ्रस्ट उत्पन्न करने के लिए प्रति सेकंड केवल 2 किलोग्राम ईंधन की आवश्यकता होती है। क्रायोजेनिक इंजन का विशिष्ट आवेग (Specific impulse) 450 सेकंड तक होता है, जबकि ठोस प्रणोदकों का विशिष्ट आवेग 260 सेकंड तक ही जाता है।
- पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी: हाइड्रोजन-ऑक्सीजन के दहन से केवल जल वाष्प उत्सर्जित होती है, जिससे क्रायोजेनिक प्रणोदन एक स्वच्छ, कार्बन मुक्त विकल्प बन जाता है।
- भारी पेलोड और अंतरिक्ष मिशन: क्रायोजेनिक ईंधन की उच्च दक्षता इसे भारी पेलोड और गगनयान एवं चंद्रयान जैसे लंबी अवधि के मिशनों के लिए आदर्श बनाते हैं।
क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी के समक्ष कुछ चुनौतियां
- जटिल प्रौद्योगिकी: इसमें रॉकेट के ठोस या अन्य द्रव प्रणोदक चरणों की तुलना में अत्यंत निम्न तापमान पर भंडारित प्रणोदकों का उपयोग किया जाता है, जिसके चलते तापीय एवं संरचनात्मक समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत एडवांस्ड इंजीनियरिंग उपायों की जरूरत होती है।
- उच्च तापीय प्रवणता और तापीय तनाव: इसके चलते इंजन के डाइवर्जेंट आउटर में दरारें, ईंधन के प्रवाह मार्ग में व्यवधान और नोज़ल के आकर में गड़बड़ी आ सकती है। साथ ही, इंजन के रोटेट होते पार्ट्स के अचानक रुक जाने से इंजन की दक्षता भी प्रभावित हो सकती है।
- उच्च परिचालन दबाव: क्रायोजेनिक इंजन में थ्रस्ट चैंबर के कूलेंट सर्किट और थ्रस्ट से जुड़े दबावों को झेलने के लिए हाई-स्ट्रेंथ सुपर अलॉय का उपयोग किया जाता है, जो अत्यधिक महंगे होते हैं। यह इंजन के कुल वजन को भी बढ़ा देता है, जिससे इसे हल्का और अधिक कुशल बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- निम्न तापमान बनाए रखना: क्रायोजेनिक ईंधन को अत्यंत कम तापमान (-253°C तक) पर रखा जाता है। सबसे बड़ी चुनौती थ्रस्ट चैंबर के प्रदर्शन को थर्मल क्षमता के साथ संतुलित बनाए रखना है। डीप थ्रॉटल पर इंजन का संचालन करना मुश्किल होता है क्योंकि इस दौरान कूलेंट फ्लो कम हो जाता है, जिससे इंजन अधिक गर्म हो सकता है। अगर सही संतुलन नहीं रखा गया तो यह इंजन की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- क्रायोजेनिक इंजन के विकास की उच्च लागत: 1994 में क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS) परियोजना का बजट 300 करोड़ रुपये था।
CE20 के बारे में
- विकासकर्ता: इसे केरल के वलियामाला में स्थित द्रव प्रणोदन प्रणाली केंद्र (LPSC) द्वारा विकसित किया गया है।
- आउटपुट: इसे 20 टन का थ्रस्ट उत्पन्न करने के लिए अपग्रेड किया गया है। इसके अलावा, यह भविष्य में C32 स्टेज के लिए 22 टन थ्रस्ट उत्पन्न करने में भी सक्षम है।
- C32 एक नया और भारी क्रायोजेनिक अपर स्टेज है। यह C20 इंजन का एक प्रकार है, जो कम क्षमता वाले C25 स्टेज का स्थान लेगा।
- सफल मिशन: इसने चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और दो वाणिज्यिक वनवेब मिशनों सहित लगातार छह LVM3 मिशनों का सफलतापूर्वक संचालन करके अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।
- LVM3 (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk III) तीन चरणों वाला यान है, जो 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को ले जाने में सक्षम है।
क्रायोजेनिक इंजन की अन्य इंजनों से तुलना
विशेषताएं | क्रायोजेनिक इंजन | जेट इंजन | ठोस प्रणोदक इंजन | द्रव प्रणोदक इंजन |
एयर इनटेक | इसमें एयर इनटेक की आवश्यकता नहीं होती है। | इसमें एयर इनटेक आवश्यक होता है। | इसमें ऑक्सिडाइजर के रूप में एयर इनटेक आवश्यक होता है। | इसमें ऑक्सिडाइजर के रूप में एयर इनटेक आवश्यक होता है। |
ईंधन | इसमने सामान्यतः सुपर कूल्ड हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग होता है। | इसमें (जेट A-1, केरोसीन), केरोसीन-गैसोलीन का मिश्रण, एविएशन गैसोलीन (avgas), बायो-केरोसीन का उपयोग होता है। | इसमें मिश्रित प्रणोदकों के लिए ईंधन के रूप में मेटैलिक पाउडर का इस्तेमाल होता है, जिनमें एल्यूमीनियम सबसे आम है। | इसमें हाइड्राजीन, मोनो-मिथाइल हाइड्राजिन (MMH), अनसिमेट्रिकल डाई-मिथाइल हाइड्राजिन (UDMH) आदि का उपयोग होता है। |
ईंधन का तापमान | ईंधन का तापमान बहुत कम होना चाहिए। | इसमें ईंधन भंडारण के लिए कम तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। | इसमें ईंधन भंडारण के लिए कम तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। | इसमें ईंधन भंडारण के लिए कम तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। |
दक्ष कार्य-प्रणाली | यह तब दक्षता से कार्य करता है, जब निम्न तापमान पर भंडारित ईंधन एक दम सटीक तरीके से रूपांतरित और मिश्रित होकर प्रज्वलित होता है। | यह सुपरसोनिक गति पर दक्षतापूर्वक कार्य करता है। सुपरसोनिक गति पर दहन से पहले हवा (एयर इनटेक) अत्यंत संपीडित हो जाती है। | यह तभी दक्षतापूर्वक कार्य करता है, जब ईंधन को पर्याप्त ऑक्सिडाइजर उपलब्ध होता है। | यह तभी दक्षतापूर्वक कार्य करता है, जब ईंधन को पर्याप्त ऑक्सिडाइजर उपलब्ध होता है। |
उद्देश्य | रॉकेट के तीसरा चरण या स्टेज/ अंतिम चरण में उपयोग करना। | हवाई जहाज आदि में उपयोग किया जाता है। | प्रारंभिक लिफ्टऑफ में बूस्टर के रूप में उपयोग किया जाता है। | बूस्टर के अलग होने के बाद रॉकेट के मुख्य चरण के रूप में कार्य करना। |
निष्कर्ष
CE20 क्रायोजेनिक इंजन, ISRO की क्रायोजेनिक तकनीक में प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। आगे बढ़ते हुए, ISRO, ट्राई-इथाइल-एल्युमिनियम और ट्राई-इथाइल-बोरॉन जैसे स्टार्ट फ्यूल एम्प्यूल्स का उपयोग कर सकता है, ताकि इग्निशन की विश्वसनीयता और दक्षता को बढ़ाया जा सके।