सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री ने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (Development of the North-Eastern Region: DoNER) द्वारा आयोजित राइजिंग नॉर्थ ईस्ट समिट 2025 का उद्घाटन किया।
अन्य संबंधित तथ्य
- प्रधान मंत्री ने पूर्वोत्तर भारत की रणनीतिक (भौगोलिक) अवस्थिति के महत्व को रेखांकित करते हुए, इस क्षेत्र के लिए एक नीतिगत फ्रेमवर्क के रूप में EAST (एम्पॉवर, एक्ट, स्ट्रेंथन, एंड ट्रांसफॉर्म/ Empower, Act, Strengthen, and Transform) के विजन को प्रस्तुत किया।
- प्रधान मंत्री ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों को 'अष्ट-लक्ष्मी' (देवी लक्ष्मी के आठ रूप) की संज्ञा दी। साथ ही, उन्होंने बायो-इकोनॉमी, बांस, चाय उत्पादन, पेट्रोलियम, खेल, इको-टूरिज्म जैसे सेक्टर्स में पूर्वोत्तर को उभरता हुआ हब बताया।
राइजिंग नॉर्थ ईस्ट समिट 2025 में पूर्वोत्तर के फोकस क्षेत्रकों की मुख्य विशेषताएं
क्षेत्रक (सेक्टर्स) | मुख्य बिंदु |
वस्त्र, हथकरघा एवं हस्तशिल्प |
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नवीकरणीय ऊर्जा |
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सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और IT-सक्षम सेवाएं (IT & ITeS) |
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इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स |
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पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी |
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शिक्षा |
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स्वास्थ्य |
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कृषि |
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खेल |
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'विकास का अग्रदूत' बनने में पूर्वोत्तर क्षेत्र की क्षमता

- भू-रणनीतिक: पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई राज्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सीमा साझा करते हैं। यह क्षेत्र भारत की 'एक्ट ईस्ट नीति' में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस नीति का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना है।
- ऊर्जा: कोयला, यूरेनियम, तेल, प्राकृतिक गैस और जलविद्युत जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध, पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के लिए एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत बनने की क्षमता रखता है।
- विविध सांस्कृतिक विरासत: पूर्वोत्तर क्षेत्र में विशिष्ट नृजातीय समुदाय और परंपराएं मौजूद हैं जो पर्यटन व हस्तशिल्प के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करती हैं।
- कम लागत वाला विनिर्माण हब: भारत और विश्व के अन्य हिस्सों की तुलना में पूर्वोत्तर क्षेत्र में कम लागत पर श्रमिक उपलब्ध हैं।
- भारत का ग्रीन हब: घने वन, जैव-विविधता और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र इस क्षेत्र को इको-टूरिज्म और कृषि-आधारित उद्योगों के लिए आदर्श जगह बनाते हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में चुनौतियां
- बेहतर कनेक्टिविटी नहीं होना: भारत की मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर क्षेत्र से जोड़ने वाला एकमात्र भूमि मार्ग संकीर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर (या चिकन नेक) है। यह कॉरिडोर पूर्वोत्तर क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। एकमात्र भू-संपर्क मार्ग होने की वजह से आवागमन और लॉजिस्टिक्स की आपूर्ति प्रभावित होती है।
- विद्रोही समूह और सशस्त्र संघर्ष: पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्वायत्तता या जनजातीय अधिकारों की मांग के कारण लंबे समय से विद्रोही समूह सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, NSCN-IM (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड - इसाक-मुइवा) 'ग्रेटर नागालिम' की मांग कर रहा है, मणिपुर में कूकी-मेइती संघर्ष,आदि।
- नार्को आतंकवाद (Narco terrorism): पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो "गोल्डन ट्रायंगल" (म्यांमार, लाओस, थाईलैंड) के निकट स्थित है, हेरोइन और सिंथेटिक ड्रग्स के लिए ट्रांजिट मार्ग के रूप में कार्य करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में स्थित अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की पूरी बाड़बंदी नहीं की गई है और इनकी समुचित निगरानी भी नहीं की जाती है।
- मानवाधिकार हनन: सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission: NHRC) आदि ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA), 1958 के तहत सुरक्षा बलों की जवाबदेही तय नहीं करने को लेकर चिंता व्यक्त की है। नागालैंड और मणिपुर में लंबे समय तक AFSPA के लागू रहने के कारण अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा मिला है।
- प्राकृतिक आपदाओं का खतरा: पूर्वोत्तर क्षेत्र को प्रायः बाढ़, भूस्खलन और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, हर साल ब्रह्मपुत्र में आने वाली बाढ़ के कारण असम में लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ता है और इससे फसलों को भी भारी नुकसान पहुँचता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिए शुरू की गई पहलें
भारतीय स्तर पर | अंतर्राष्ट्रीय उद्देश्यों को ध्यान में रखकर |
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आगे की राह
- पूर्वोत्तर क्षेत्र तक पहुंचने के लिए अलग-अलग मार्गों का विकास: उदाहरण के लिए, हिली–महेंद्रगंज ट्रांसनेशनल कॉरिडोर- यह प्रस्तावित कॉरिडोर हिली (पश्चिम बंगाल) को बांग्लादेश से होते हुए महेंद्रगंज (मेघालय) से जोड़ेगा, जिससे सिलीगुड़ी मार्ग का विकल्प मिल जाएगा।
- विद्रोही गतिविधियों को कम करना: पुनर्वास प्रयासों और स्थानीय शासन तंत्र को मजबूत करके त्रिपुरा ने शांति स्थापित की है, जो नागालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल है।
- ब्रू जनजाति का त्रिपुरा में पुनर्वास किया गया है। इस जनजाति को 1990 के दशक के अंत और 2009 में मिज़ोरम में हुए नृजातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा था।
- अवैध प्रवासियों से निपटना और सीमा सुरक्षा बढ़ाना: इसमें हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर (HHTI), नाइट विजन डिवाइस (NVD), UAVs, CCTV/ PTZ कैमरे, इंफ्रारेड सेंसर जैसे सर्विलांस उपकरणों का उपयोग और समग्र एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (Comprehensive Integrated Border Management System: CIBMS) शामिल हैं।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र को शेष भारत के साथ एकीकृत करना: बेजबरुआ समिति की सिफारिशों के आधार पर भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों के खिलाफ भेदभाव और नृजातीय हमलों को रोकने के लिए कानूनी उपाय करने चाहिए और मीडिया जागरूकता अभियान संचालित करना चाहिए, आदि।
निष्कर्ष
अपनी विशिष्ट रणनीतिक अवस्थिति, समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों की वजह से भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र असीम संभावनाओं वाला क्षेत्र है। इनमें नवीकरणीय ऊर्जा से लेकर पर्यटन जैसे क्षेत्रक शामिल हैं। कनेक्टिविटी की कमी को दूर करके, शांति सुनिश्चित करके, और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के साथ एकीकरण सुनिश्चित करके पूर्वोत्तर क्षेत्र को समावेशी और संधारणीय विकास का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है।