विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय समुद्री बंदरगाह (VIZHINJAM INTERNATIONAL SEAPORT) | Current Affairs | Vision IAS
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विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय समुद्री बंदरगाह (VIZHINJAM INTERNATIONAL SEAPORT)

Posted 01 Jul 2025

Updated 24 Jun 2025

43 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री ने केरल में विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट डीप वाटर बहुउद्देशीय समुद्री बंदरगाह का उद्घाटन किया।

विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय समुद्री बंदरगाह के बारे में

  • यह भारत का पहला डीप वाटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है। यह महत्वाकांक्षी परियोजना केरल सरकार द्वारा संचालित की जा रही है।
  • उद्देश्य: इस बंदरगाह का निर्माण मुख्य रूप से कंटेनर ट्रांसशिपमेंट के उद्देश्य से किया जाना है। साथ ही, यह बंदरगाह बहुउद्देशीय और ब्रेक-बल्क कार्गो को भी संभाल सकेगा।
  • विकास मॉडल: इस बंदरगाह का विकास 'लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल' के अंतर्गत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना को 'डिज़ाइन, निर्माण, वित्तपोषण, संचालन और हस्तांतरण' (Design, Build, Finance, Operate, and Transfer: DBFOT) के आधार पर विकसित किया जा रहा है।
  • विझिंजम बंदरगाह की प्रमुख विशेषताएं/ उससे लाभ
    • रणनीतिक स्थिति: यह व्यस्त अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग रूट (जो यूरोप, फारस की खाड़ी और फार ईस्ट को जोड़ता है) से केवल 10 नॉटिकल मील की दूरी पर स्थित है। 
    • प्राकृतिक लाभ: विझिंजम बंदरगाह के पास जल की प्राकृतिक गहराई इसे नेक्स्ट जनरेशन के बड़े कंटेनर जहाजों (20 मीटर से अधिक ड्राफ्ट वाले) को संभालने में सक्षम बनाती है।
    • भविष्य की जरूरत को पूरा करने वाली अवसंरचना: यह बंदरगाह 18,000 से अधिक TEU (ट्वेंटी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट) क्षमता वाले जहाजों को संभाल सकता है। इसकी अवसंरचना भविष्य में कार्गो में वृद्धि को भी संभाल सकती है। साथ ही, इस बंदरगाह को कुछ इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि बहुत कम तलछट का जमाव हो सके। 

ट्रांसशिपमेंट क्या है?

  • इस प्रक्रिया में कार्गो या कंटेनर को एक जहाज से दूसरे जहाज में स्थानांतरित किया जाता है, जब तक कि वह कार्गो अपने अंतिम गंतव्य बंदरगाह तक न पहुंच जाए। 
  • मौजूदा समुद्री नेटवर्क में किसी ट्रांसशिपमेंट हब को शामिल करने के निम्नलिखित तीन प्राथमिक तरीके हैं:
    • हब-एंड-स्पोक मॉडल: यह कम दूरी की फीडर लाइनों को लंबी दूरी की डीप-सी लाइनों से जोड़ता है। यह क्षेत्रीय और वैश्विक शिपिंग नेटवर्क के बीच सेतु का कार्य करता है।
    • इंटरसेक्शन: इंटरसेक्शन के स्थान पर आमतौर पर बड़े जहाजों के बीच कार्गो का आदान-प्रदान ट्रांसशिपमेंट या शिप-टू-शिप (STS) ट्रांसफर के माध्यम से होता है। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई जाती है क्योंकि डीप-सी मार्ग मुख्यतः बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के बीच संचालित होते हैं, और इन मार्गों पर बड़े जहाज चलते हैं।
    • रिले: जहां ट्रांसशिपमेंट हब एक ही क्षेत्र के अलग-अलग बंदरगाहों के बीच शिपिंग मार्गों को जोड़ता है।  

भारत को ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विकसित करने की आवश्यकता क्यों है?

  • विदेशी ट्रांसशिपमेंट हब पर अत्यधिक निर्भरता: वर्तमान में भारत के लगभग 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो को भारत के बाहर के बंदरगाहों पर संभाला जाता है। 
    • कोलंबो (श्रीलंका), सिंगापुर और क्लांग (मलेशिया) बंदरगाह भारत के ट्रांसशिपमेंट कार्गो का 85% से अधिक संभालते हैं।
  • प्रमुख व्यापार मार्ग से निकटता: ट्रांसशिपमेंट पोर्ट का चयन करते समय जहाज (लाइनर्स) आमतौर पर अपने मार्ग से न्यूनतम विचलन को प्राथमिकता देते हैं। गौरतलब है कि पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग (मलक्का जलडमरूमध्य और स्वेज नहर के माध्यम से फार-ईस्ट से यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका तक) एक वैश्विक समुद्री व्यापार मार्ग है।
    • इस मामले में भारत के विझिंजम और गलाथिया बे बंदरगाह भौगोलिक रूप से बेहतर जगह पर स्थित हैं। वास्तव में ये स्वेज नहर को जोड़ने वाले प्रमुख समुद्री मार्ग से महज लगभग 6-10 नॉटिकल मील की दूरी (0.2-1 घंटे) पर स्थित हैं।
  • राजस्व की हानि: किसी अन्य देश के बंदरगाहों पर अपने ट्रांसशिपमेंट कार्गो की हैंडलिंग के कारण भारत को प्रतिवर्ष लगभग 200-220 मिलियन डॉलर का राजस्व नुकसान उठाना पड़ता है। 
  • डीप ड्राफ्ट वाले बंदरगाहों की कमी: कोचीन और वी. ओ. चिदंबरनार जैसे मौजूदा बंदरगाहों की ड्राफ्ट क्षमता क्रमश: 14.2 मीटर और 14.5 मीटर है, जबकि वैश्विक ट्रांसशिपमेंट हब में कम से कम 18 मीटर का ड्राफ्ट होता है। 
  • अवसंरचना: वैश्विक बंदरगाहों के अनुरूप, भारत को विश्व-स्तरीय अवसंरचना और डेडिकेटेड सुपरस्ट्रक्चर विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • प्रति घंटे लगभग 200 मूव्स की उत्पादकता स्तर के अंतर्राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने हेतु एक जहाज को संभालने के लिए 6 क्रेन तक की आवश्यकता हो सकती है।  

भारत को ट्रांसशिपमेंट हब बनाने में विद्यमान चुनौतियां

  • उच्च लागत: उदाहरण के लिए, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) जैसे बंदरगाहों पर मुख्य रूप से पोत से संबंधित शुल्कों के कारण कुल ट्रांसशिपमेंट शुल्क कोलंबो बंदरगाह (13%) की तुलना में 43% अधिक है।  
  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्ग से अधिक दूरी: अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग से भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर स्थित सभी बंदरगाहों तक पहुँचने में लगभग 5 घंटे से अधिक का समय लग जाता है, जबकि कोलंबो बंदरगाह महज 0.5-1 घंटे में पहुंचा जा सकता है।
  • कर छूट की कमी: ट्रांसशिपमेंट फ्री ट्रेड ज़ोन स्थापित करने के लिए वर्तमान में कोई बड़ा आर्थिक प्रोत्साहन उपलब्ध नहीं है क्योंकि विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नीति के तहत उपलब्ध वित्तीय प्रोत्साहन वापस ले लिए गए हैं। 
  • द्वीपों पर भूमि की उपलब्धता: वर्तमान दिशा-निर्देशों के आधार पर, एक फ्री ट्रेड ज़ोन विकसित करने के लिए न्यूनतम 25 हेक्टेयर (लगभग 61 एकड़) भूमि की आवश्यकता है। 
  • द्वीपों की मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र को देखते हुए बंदरगाह के आसपास दिशा-निर्देशों के तहत निर्धारित भूक्षेत्र प्राप्त करना मुश्किल होगा।
  • कस्टम प्रक्रिया: भारतीय बंदरगाहों में कस्टम मंजूरी की प्रक्रिया को वैश्विक बंदरगाहों की तुलना में अधिक जटिल और समय लेने वाला माना जाता है। इससे हाई टर्नअराउंड टाइम और कार्गो लीड टाइम की शिकायतें प्राप्त होती रहती हैं। 

ट्रांसशिपमेंट को बढ़ावा देने के अन्य प्रयास

  • गैलाथिया बे (ग्रेट निकोबार द्वीप) में प्रस्तावित इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (ICTP): ग्रेट निकोबार मलक्का जलडमरूमध्य (पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग के लिए रूट) और सिंगापुर (एक प्रमुख ट्रांसशिपमेंट और बंकरिंग हब) के निकट स्थित है।
  • कोचीन अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल: यह टर्मिनल कोच्चि में वल्लारपदम द्वीप पर स्थित है। यह प्रति वर्ष एक मिलियन TEU (ट्वेंटी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट) तक कार्गो को संभाल सकता है।
  • अमृत काल विज़न 2047: इसे केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है। यह विजन 'मैरीटाइम इंडिया विजन 2030' पर आधारित है। इसका उद्देश्य विश्व-स्तरीय बंदरगाहों का विकास करना और अंतर्देशीय जल परिवहन, तटीय शिपिंग आदि को बढ़ावा देना है। 
  • कैबोटेज कानून में छूट: मर्चेंट शिपिंग एक्ट 1958 की धारा 407 के तहत कैबोटेज नियम में विदेशी ध्वज वाले जहाजों के लिए भारत में ट्रांसशिपमेंट के उद्देश्य से EXIM (निर्यात-आयात) कंटेनरों के परिवहन हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं में ढील दी गई है। 
    • घरेलू बंदरगाहों के बीच माल या यात्री ले जाने का अधिकार सिर्फ अपने देश के जहाजों को देना ही कैबोटेज कहलाता है। इसके तहत घरेलू माल के परिवहन पर विदेशी ध्वज वाले जहाजों के लिए प्रतिबंध लगाए जाते हैं।

आगे की राह

  • कार्गो लॉजिस्टिक्स की लागत को अन्य बंदरगाहों से प्रतिस्पर्धी रखना: कोलंबो बंदरगाह की तुलना में 15-20% कम लॉजिस्टिक्स लागत रखने के लिए कम से कम प्रथम 5 वर्षों तक बंदरगाह शुल्क कम रखने की जरूरत है।  
  • विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी: संयुक्त राज्य अमेरिका और श्रीलंका जैसे देशों में ड्रेजिंग लागत को आंशिक रूप से राष्ट्रीय सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इसी तरह, भारतीय बंदरगाहों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए ड्रेजिंग लागत का आंशिक हिस्सा सरकार को वहन करना चाहिए।
  • विश्व-स्तरीय मेगा पोर्ट्स विकसित करने की आवश्यकता है: 3 बंदरगाहों (वधावन-JNPT क्लस्टर, पारादीप पोर्ट, और दीनदयाल पोर्ट) को 300 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) से अधिक क्षमता वाले मेगा पोर्ट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है।
  • कस्टम प्रक्रिया को आसान बनाना: व्यवसाय सुगमता को बढ़ावा देने के लिए गेटवे कार्गो हेतु कस्टम प्रक्रियाओं को डिजिटाइज करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, ट्रांसशिपमेंट कार्गो में कस्टम की भूमिका समाप्त कर देनी चाहिए। 
  • अवसंरचना का आधुनिकीकरण: दीर्घकालिक रणनीतिक उपायों के तहत, प्रमुख बंदरगाहों को लैंडलॉर्ड मॉडल अपनाने और परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष

अपनी रणनीतिक अवस्थिति, जल की प्राकृतिक गहराई और भविष्य की मांग के अनुरूप अवसंरचना विकास के कारण, विझिंजम बंदरगाह विदेशी बंदरगाहों पर भारत की निर्भरता को कम करने और ट्रांसशिपमेंट से राजस्व बढ़ाने की क्षमता रखता है। हालांकि, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नीतिगत सुधार, अवसंरचना का आधुनिकीकरण और लागत के मामले में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे तभी भारत अपनी समुद्री अवस्थिति का पूरा लाभ उठा सकता है। 

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  • विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय समुद्री बंदरगाह
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