यह तालिबान द्वारा 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण के बाद भारत और तालिबान के बीच उच्चतम स्तर की बैठक थी।
- दोनों पक्षों ने भारतीय मानवीय सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा की और व्यापार एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने पर सहमति व्यक्त की।

भारत-अफगानिस्तान संबंध
- पृष्ठभूमि: दोनों देश“मैत्री संधि” (1950) पर हस्ताक्षर के साथ घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध साझा करते हैं।
- तालिबान की वापसी: भारत ने आधिकारिक तौर पर तालिबान को मान्यता नहीं दी है, लेकिन वार्ता और सहयोग जारी हैं।
- भारतीय दूतावास में तकनीकी टीम की तैनाती: इसका उद्देश्य मानवीय सहायता प्रदान करना और अफगान लोगों के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना है।
- आधिकारिक संयुक्त सचिव बैठक (नवंबर, 2024): काबुल में, भारतीय राजनयिक और तालिबान के रक्षा मंत्री के बीच पहली आधिकारिक बैठक हुई थी।
भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्त्व
- अवस्थिति: अफगानिस्तान की अवस्थिति को "हार्ट ऑफ़ एशिया" के रूप में संबोधित किया जाता है। यह प्राचीन समय से भारत के लिए खैबर और बोलन दर्रों के माध्यम से मार्ग के रूप में उपयोगी रहा है।
- स्थिरता और सुरक्षा: अधिकतर आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में शरण लेते हैं। अतः रचनात्मक सहयोग से आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित हो सकता है।
- मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी: अफगानिस्तान सामरिक रूप से मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के चौराहे पर अवस्थित है।
- भारत की सॉफ्ट पावर संबंधी छवि को मजबूत करना: 2021 के अंत में सूखा प्रभावित अफगानिस्तान को गेहूं की आपूर्ति जैसी मानवीय सहायता प्रदान करने से भारत की सॉफ्ट पावर छवि मजबूत हुई है।
- भारत अफगानिस्तान में कई परियोजनाओं जैसे अफगान-भारत मैत्री बांध; जरांज-डेलाराम राजमार्ग आदि परियोजनाओं में शामिल है।
- अफगान-भारत मैत्री बांध को पहले सलमा बांध के नाम से जाना जाता था।
- भारत अफगानिस्तान में कई परियोजनाओं जैसे अफगान-भारत मैत्री बांध; जरांज-डेलाराम राजमार्ग आदि परियोजनाओं में शामिल है।
- चीन की बढ़ती भूमिका: ऐसा माना जा रहा है कि चीन काबुल में शहरी विकास परियोजनाओं को शुरू कर रहा है। साथ ही, चीन और अफगानिस्तान के बीच राजदूतों की आधिकारिक यात्राएं भी संपन्न हो रही हैं।