मंत्री ने संधारणीय शहरी परिवेश और बेहतर शहरी नियोजन पर जोर दिया, क्योंकि 2047 तक 50% आबादी की शहरों में रहने की उम्मीद है।
वर्तमान में शहरी नियोजन से संबंधित विद्यमान समस्याएं
- पुरानी स्थानिक और अस्थायी योजनाएं जनसंख्या वृद्धि को समायोजित करने में विफल हैं।
- आधुनिक नियोजन फ्रेमवर्क का अभाव है, मास्टर प्लान्स लोचशील नहीं हैं और प्रतिबंधात्मक जोनिंग विनियमन।
- आवास संबंधी मुद्दे: उदाहरण के लिए- भवन निर्माण विनियम अक्सर शहरी घनत्व को सीमित कर देते हैं। इससे शहरों में झुग्गियों का प्रसार होता है। उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल शहरी आबादी का 17.3% झुग्गियों में रहता है।
- वायु प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चुनौतियां लोगों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को प्रभावित करती हैं। साथ ही, जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।
- शहरों में आपदा प्रतिरोधकता का अभाव: उदाहरण के लिए, 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ का मुख्य कारण झीलों और नदी-तलों का अतिक्रमण था।
बेहतर शहरी नियोजन के लिए उठाए जाने वाले कदम
- जीवन की सुगमता को बढ़ाना: शहरों के संदर्भ में बेहतर योजनाएं तैयार करने और उनका प्रबंधन करने के लिए आवश्यक कौशल एवं ज्ञान से कर्मचारियों को सशक्त बनाना।
- डेटा और प्रौद्योगिकी का उपयोग: शहरी अभिशासन को मजबूत करने के लिए क्षमता निर्माण पहलों को आगे बढ़ाना एवं लागू करना।
- पारंपरिक ज्ञान का समायोजन: ऐतिहासिक भारतीय शहरों की फिर से कल्पना करना और भविष्य के शहरों को आकार देने में प्राचीन शहरी नियोजन के तरीकों एवं तकनीक का उपयोग करना।
- शहरों को निष्पक्षता, समानता और स्थिरता के उदाहरण के रूप में विकसित करना: विशेष रूप से हाशिए पर रहे समुदायों के लिए समावेशिता हासिल करने हेतु नवाचार और नागरिक केंद्रित प्रशासन का उपयोग करना।
बेहतर शहरी नियोजन के लिए शुरू की गई पहलें
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