इस निर्णय में बॉम्बे हाई कोर्ट ने महेश विजय केस (2016) में अपने फैसले को फिर से दोहराया। इस फैसले में कहा गया था कि प्रार्थना या धार्मिक प्रवचन के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
- महेश विजय केस (2016) में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के चर्च ऑफ गॉड केस (2000) का हवाला दिया। इस केस में यह निर्णय दिया गया था कि लाउडस्पीकर का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 25 के तहत कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं के परीक्षण {Essential Religious Practices (ERP) test} के बारे में
- भारतीय न्यायपालिका “अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं” का उपयोग धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में निर्णय देने के लिए करती है। इससे कोर्ट को यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि कौन सी धार्मिक प्रथा संबंधित धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं।
- अनिवार्य धार्मिक प्रथा परीक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने श्री शिरूर मठ मामले (1954) में प्रस्तुत किया था। इस मामले में धर्म के अर्थ में धार्मिक प्रथाओं को शामिल करके धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ाया गया था।
- इसमें कोर्ट ने कहा था कि किसी धर्म का अनिवार्य हिस्सा क्या है, इसका निर्धारण मुख्यतः उस धर्म के सिद्धांतों के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं के परीक्षण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के अन्य निर्णय
- श्री आदि विशेश्वर वाद (1997): कोर्ट ने मंदिर के धार्मिक और लौकिक कार्यों के बीच अंतर स्थापित किया।
- आचार्य जगदीश्वरानंद वाद (2004): कोर्ट ने कहा कि कोई प्रथा धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, इसका निर्धारण इस बात से होता है कि क्या उस प्रथा के अभाव से धर्म के मौलिक स्वरूप में बदलाव होगा या नहीं।
- शायरा बानो वाद (2017): कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ माना और कहा कि धर्म द्वारा केवल स्वीकृत या अप्रतिबंधित प्रथा को धर्म द्वारा स्वीकृत अनिवार्य या सकारात्मक सिद्धांत नहीं माना जा सकता है।