इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सामाजिक क्षेत्रक पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक दोनों के योगदान को मिलाकर वार्षिक रूप से GDP का 6-7% खर्च किया जाता है।
इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- भारत के सामाजिक क्षेत्रक का वित्त-पोषण: यह पिछले पांच वर्षों में 13% CAGR के साथ वित्त-वर्ष 2024 में लगभग 25 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। साथ ही, वित्त वर्ष 2029 तक इसके 45 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
- इस वृद्धि के पीछे उभरती अर्थव्यवस्था, प्रवासी भारतीय और संरचनात्मक सुधारों का योगदान है।
- मुख्य चिंताएं:
- निजी क्षेत्रक का कम योगदान: कुल व्यय का केवल 5% तक।
- निजी क्षेत्रक का योगदान मुख्य रूप से हाई-नेट-वर्थ वाले व्यक्तियों (HNIs) के पारिवारिक दान और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंड से आता है। उदाहरण के लिए राधा गोयनका द्वारा हेरिटेज प्रोजेक्ट (2018), गोदरेज इंडस्ट्रीज द्वारा प्राइड फंड (2025)।
- वित्त-पोषण में कमी: भारत के सामाजिक क्षेत्रक में वित्त-पोषण प्रवाह 2023-24 के लिए नीति आयोग की सिफारिश से लगभग 14 लाख करोड़ रुपये कम रहा है।
- नीति आयोग ने सामाजिक क्षेत्रक के वित्त-पोषण को GDP का 13% करने की सिफारिश की है।
- निजी क्षेत्रक का कम योगदान: कुल व्यय का केवल 5% तक।
भारत में विकास के साधन के रूप में लोकोपकार (फिलैंथरोपी) का महत्त्व
- वित्त-पोषण में कमी को पूरा करना: यह सरकारों द्वारा दी जाने वाली महत्वपूर्ण बजटीय सहायता को अतिरिक्त समर्थन प्रदान करता है।
- विकास संबंधी समस्याओं को हल करना: इससे गरीबी उन्मूलन और शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए- अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन ग्रामीण सार्वजनिक शिक्षा में सुधार हेतु काम करता है।
- नवाचार को बढ़ावा देना: इससे डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम/ स्वास्थ्य देखभाल सेवा स्टार्ट-अप जैसी तकनीक-संचालित पहलों को समर्थन प्रदान किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए- बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन स्वच्छ भारत मिशन के साथ स्वच्छता संबंधी नवाचारों को समर्थन प्रदान करता है।
निजी क्षेत्रक द्वारा सामाजिक क्षेत्रक हेतु वित्त-पोषण को बढ़ावा देने वाली प्रमुख पहलें
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