WHO ने नीदरलैंड में डेल्फ़्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में डिजिटल एथिक्स सेंटर को हेल्थ गवर्नेंस के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर WHO सहयोगी केंद्र के रूप में नामित किया।
- यह केंद्र प्राथमिकता वाले विषयों पर शोध को आगे बढ़ाने और नीति निर्माण के लिए विशेषज्ञ सलाह प्रदान करेगा। साथ ही, यह स्वास्थ्य के लिए AI के नैतिक व जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए WHO के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाएगा।
स्वास्थ्य देखभाल सेवा में AI

- पूर्वानुमान मॉडलिंग (Predictive Modelling): AI की मदद से रोगियों की मेडिकल हिस्ट्री, आनुवंशिक जानकारी आदि का विश्लेषण कर बीमारियां होने की आशंका या मौजूदा स्थितियों की प्रगति का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
- अनुसंधान और विकास: AI का उपयोग लक्षित क्लीनिकल ट्रायल्स की योजना बनाने और उनके निष्पादन के लिए किया जा सकता है। साथ ही, तेजी से दवाएं और वैक्सीन विकसित करने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।
- रोग निदान और निगरानी: यह रोगियों की जांच, सटीक चिकित्सा इमेज पहचान तथा वैयक्तिकृत चिकित्सा (Personalized medicine) या परिशुद्ध चिकित्सा (Precision medicine) उपचार में सहायक है।
- केयर इकॉनमी: AI आधारित वर्चुअल असिस्टेंट चैटबॉट्स, पैटर्न रिकग्निशन और निवारक स्वास्थ्य देखभाल आदि का बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल में इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्वास्थ्य देखभाल सेवा में AI के समक्ष चुनौतियां
- डेटा सुरक्षा और निजता संबंधी मुद्दे: स्वास्थ्य देखभाल सेवा में AI बड़ी मात्रा में संवेदनशील व्यक्तिगत व चिकित्सा संबंधी जानकारी उत्पन्न एवं संग्रहीत करता है। इस डेटा के लीक होने या चोरी होने का खतरा बना रहता है। इस प्रकार डेटा सुरक्षा चिंता का एक प्रमुख विषय है।
- एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह: AI प्रणाली में मौजूद पूर्वाग्रह के कारण कुछ व्यक्तियों या समूहों के साथ भेदभाव होने का खतरा रहता है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता बढ़ सकती है।
- विखंडित विनियामक फ्रेमवर्क: AI के उपयोग के लिए स्पष्ट विनियमन का अभाव है। ऐसी स्थिति में यदि AI के कारण कोई गलती होती है तो किसी एक की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल हो सकता है। इसकी वजह से आम जनता में AI को लेकर अविश्वास बढ़ सकता है।