सार्वजनिक ऋण महत्वपूर्ण व्ययों को वित्त-पोषित करके विकास को गति दे सकता है, लेकिन अत्यधिक ऋण वृद्धि विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए चुनौतियां पैदा करती है।
- यूएन ट्रेड एंड डेवलपमेंट की इस रिपोर्ट में बढ़ते ऋण जोखिमों की चेतावनी दी गई है तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई का आग्रह किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

- वैश्विक ऋण वृद्धि: 2023 में सार्वजनिक ऋण 97 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। इसके अलावा, विकासशील देशों का ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है।
- भारत का सार्वजनिक ऋण 2.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है।
- ऋण भुगतान पर अधिक व्यय: 54 विकासशील देश अपने सामाजिक क्षेत्रक की तुलना में ब्याज भुगतान पर अधिक धन व्यय करते हैं।
- असमान वित्तीय प्रणाली: विकासशील देश विकसित देशों की तुलना में 2 से 12 गुना अधिक ब्याज का भुगतान करते हैं।
बढ़ते वैश्विक सार्वजनिक ऋण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियां
- ऋण का बोझ: किसी देश पर अत्यधिक ऋण, उसके निवेश एवं उपभोग की क्षमता को हतोत्साहित करके आर्थिक संवृद्धि को बाधित करता है।
- तरलता संबंधी चुनौती: विकासशील देशों से निजी ऋणदाताओं द्वारा लगभग 50 बिलियन डॉलर की निकासी ने तरलता की कमी को और बढ़ा दिया है।
- पश्चिमी प्रभुत्व वाले संस्थानों (निजी, बहुपक्षीय और द्विपक्षीय ऋणदाताओं) के साथ ऋणदाता आधार (creditor base) ऋण की पुनर्संरचना को महंगा बनाता है।
रिपोर्ट में की गई सिफारिशें
- समन्वय संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए ऋण पुनर्संरचना तंत्र का निर्माण करना चाहिए।
- ऋण संकटों को रोकने के लिए आकस्मिक वित्त-पोषण का विस्तार करना चाहिए।
- वैश्विक वित्तीय गवर्नेंस में विकासशील देशों की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।