सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस. रवींद्र भट को इस कार्यबल का अध्यक्ष बनाया गया है। यह कार्यबल विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने के प्रमुख कारणों की पहचान करेगा तथा शैक्षिक माहौल को अधिक समावेशी एवं अनुकूल बनाने के लिए उपाय सुझाएगा।
भारत में विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या संबंधी मुद्दे
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में दर्ज आत्महत्या के कुल मामलों में 7.6% मामले विद्यार्थियों की आत्महत्या से संबंधित थे।
- 2012-22 के दशक में, विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने के कुल मामले 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गए थे।
- महाराष्ट्र में सबसे अधिक विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए थे। इसके बाद मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा का स्थान है।
विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे जिम्मेदार कारण
- शैक्षणिक कारण: पढ़ाई में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहना, पढ़ाई का दबाव और परीक्षा में असफलता।
- संस्था से जुड़े कारण: बुलिंग, रैगिंग, राजनीतिक विचारधारा या धार्मिक विश्वासों के कारण भेदभाव आदि।
- सामाजिक-आर्थिक कारण: जाति-आधारित भेदभाव, लैंगिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न, नस्लीय भेदभाव आदि।
- अन्य कारण: आर्थिक तंगी और ऑनलाइन गेमिंग।
भारत में विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने को रोकने के लिए उठाए गए कदम
- मनोदर्पण: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की इस पहल का उद्देश्य विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य व सेहतमंदी के लिए मनो-सामाजिक सहायता प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS): इस रणनीति की घोषणा केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने 2022 में की थी। इसका उद्देश्य 2030 तक आत्महत्या से संबंधित मौतों के मामले में 10% तक की कमी करना है।
- राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NTMHP): इस कार्यक्रम के तहत 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य-देखभाल सेवाएं प्रदान की जाती हैं।ड्राफ्ट उम्मीद/ UMMEED (अंडरस्टैंड, मोटिवेट, मैनेज, इंफेथाईज़, एम्पावर एंड डेवलप): यह आत्महत्या की रोकथाम हेतु स्कूलों के लिए दिशा-निर्देश है। इसे 2023 में जारी किया गया था।