इस कार्यकारी आदेश का मुख्य लक्ष्य अमेरिका में प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की कीमतों को उन कीमतों के बराबर लाना है जो अन्य समान देशों में दी जाती हैं। यह आदेश "मोस्ट-फेवर्ड-नेशन (MFN)" मूल्य निर्धारण नीति को लागू करता है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका उन दवाओं के लिए वही कीमत चुकाएगा जो दुनिया के किसी भी देश में सबसे कम है। इसका सम्भवतः भारत के दवा क्षेत्रक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्तमान में, अमेरिका अन्य उच्च आय वाले देशों की तुलना में समान दवाओं के लिए लगभग तीन गुना अधिक भुगतान करता है।
मोस्ट-फेवर्ड-नेशन (MFN) के बारे में
- MFN सिद्धांत बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का प्रमुख आधार है। यह नियम-आधारित व्यवस्था लागू करने का प्रयास करता है। इसके तहत व्यापार अधिकार देशों की आर्थिक या राजनीतिक शक्ति पर निर्भर नहीं होकर नियमों पर आधारित होते हैं।
- इसका तात्पर्य यह है कि एक देश को दी गई सर्वोत्तम पहुंच की शर्तें अपने आप प्रणाली में अन्य सभी देशों को प्राप्त हो जाती है।
- प्रशुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT), 1994 के अनुच्छेद 1 के तहत, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्रत्येक सदस्य देश द्वारा अन्य सभी सदस्य देशों को MFN का दर्जा दिए जाने का प्रावधान है।
- WTO के समझौतों के तहत, MFN दर्जा प्राप्त देश अपने व्यापारिक साझेदारों के बीच भेदभाव नहीं कर सकते।
भारतीय फार्मा क्षेत्रक पर संभावित प्रभाव
- निर्यात संबंधी चिंताएं: भारत के फार्मा निर्यात में लगभग एक-तिहाई हिस्सा (लगभग 10 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष) संयुक्त राज्य अमेरिका का है। ऐसे में इस आदेश का भारत की फार्मा कंपनियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
- अनुसंधान पर प्रभाव: यदि अमेरिकी बाजार में दवाओं की कीमतें घटती हैं, तो फार्मा कंपनियों के मुनाफे में कमी आएगी। इससे नई दवाओं के अनुसंधान और विकास (R&D) के लिए धन की कमी हो सकती है।
- घरेलू बाजार में कीमतों में वृद्धि: फार्मा कंपनियां अमेरिका में हुए नुकसान की भरपाई के लिए भारत जैसे देशों में दवाओं की कीमतें बढ़ा सकती हैं।