ग्लेशियोलॉजिस्ट और स्थानीय समुदायों ने नेपाल के लांगटांग क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर के "मृत" यानी विलुप्त होने पर शोक व्यक्त किया है। 1970 के दशक से अब तक यह ग्लेशियर 66% तक सिकुड़ चुका है। इससे यह नेपाल का पहला ग्लेशियर होगा जिसे मृत या विलुप्त घोषित किया जा सकता है।
ग्लेशियर फ्यूनरल
- यह जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के तेजी से विलुप्त होने पर आयोजित प्रतीकात्मक शोक समारोह है।
- मृत (विलुप्त) घोषित अन्य प्रमुख ग्लेशियर:
- पिज़ोल ग्लेशियर, स्विट्ज़रलैंड (2019);
- क्लार्क ग्लेशियर, संयुक्त राज्य अमेरिका (2020);
- अयोलोको ग्लेशियर, मैक्सिको (2021) आदि।
- दुनिया का पहला ग्लेशियर फ्यूनरल आइसलैंड के ओकजोकुल्ल (Okjokull glacier) के लिए 2019 में आयोजित किया गया था।
ग्लेशियरों के विलुप्त होने के दुष्परिणाम
- ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि: ग्लेशियरों के पिघलने से एल्बीडो प्रभाव कम होता है, जिससे पृथ्वी अधिक गर्मी अवशोषित करती है। एल्बीडो प्रभाव वास्तव में सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने की क्षमता है।
- समुद्री जल स्तर में वृद्धि: नेचर पत्रिका के अनुसार, 2001 से अब तक ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्री जल स्तर में लगभग 2 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है।
- जल चक्र में व्यवधान उत्पन्न होना: पृथ्वी का लगभग तीन-चौथाई ताजा जल ग्लेशियरों में संग्रहित है। इनके तेजी से पिघलने से नियमित जल आपूर्ति और जैव विविधता को खतरा पहुंच सकता है।
- प्राकृतिक आपदाएं: हिमनदीय झील के टूटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOF) और हिमस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है।
ग्लेशियर के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासवैश्विक स्तर पर प्रयास
भारत के प्रयास
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