भारत ने अपडेटेड अर्थक्वेक डिज़ाइन कोड (BIS, 2025) के तहत एक संशोधित भूकंपीय ज़ोनेशन मानचित्र जारी किया है। यह मानचित्र भ्रंशों, अधिकतम संभावित घटनाओं, क्षीणन (attenuation), विवर्तनिकी (tectonics), शिलाविज्ञान (lithology) आदि पर आधारित है।
नवीन ज़ोनिंग का विवरण

- ज़ोन्स की संख्या: पहले, भारतीय भूभाग को चार भूकंप ज़ोन्स में सीमांकित किया गया था। ये थे- ज़ोन II, III, IV और V.
- एक नया उच्चतम-जोखिम ज़ोन VI पेश किया गया है। इसके अंतर्गत पहली बार संपूर्ण हिमालयी चाप (Himalayan arc) को शामिल किया गया है, जो पहले ज़ोन IV और V के बीच विभाजित था।
- ज़ोन्स के बीच सीमावर्ती कस्बे: अब ये स्वत: उच्च-जोखिम श्रेणी में आ जाएंगे।
- जोखिम मानचित्रण: प्रशासनिक सीमाओं की बजाय भूवैज्ञानिक स्थितियों को प्राथमिकता दी गई है।
भारत की भूकंप के प्रति सुभेद्यता
- भारत की 61% भूमि अब मध्यम से उच्च-जोखिम वाले ज़ोन्स में आती है। पहले 59% भूमि आती थी।
- भारत की 75% जनसंख्या अब भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में निवास करती है।
- नए मानचित्र के निहितार्थ:
- उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में रेट्रोफिटिंग (पुरानी संरचनाओं को मजबूत करना) पर ज़ोर देना;
- नरम तलछट (soft sediments) पर या सक्रिय भ्रंशों के पास विस्तार को रोकना;
- हिमालयी राज्यों में समान भवन मानकों को लागू करना आदि।
- सरकारी रणनीतियां:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMAs): NDMA आपदा प्रबंधन नीतियों को निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है, और SDMAs आपदा प्रबंधन योजनाओं को बनाने एवं कार्यान्वित करने के लिए उत्तरदायी हैं।
- राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क: यह भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी करता है और भूकंप संबंधी पूर्व-चेतावनी प्रणालियों के विकास पर शोध करता है।