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भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (INDIA-MIDDLE EAST-EUROPE ECONOMIC CORRIDOR: IMEC)

26 Dec 2024
44 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा परियोजना की घोषणा के एक वर्ष पूरे हो गए हैं। पिछले एक वर्ष में जहां एक ओर इस महत्वाकांक्षी अंतर्राष्ट्रीय गलियारा परियोजना के मामले में कुछ प्रगति देखी गई है, तो दूसरी ओर कुछ बाधाएं भी उभर कर सामने आई हैं। 

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) के बारे में

  • शुरुआत: नई दिल्ली में 2023 में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान इस परियोजना के समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौता ज्ञापन पर भारत, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे।
  • उद्देश्य: यह एक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी परियोजना है। इसका उद्देश्य भारत, अरब प्रायद्वीप, भूमध्यसागरीय क्षेत्र और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों, रेल मार्गों, सड़क मार्गों, समुद्री मार्गों और पाइपलाइनों जैसी अवसंरचनाओं का विकास करना है।
  • इस परियोजना में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे:
    • पूर्वी गलियारा: यह भारत को खाड़ी देशों से जोड़ेगा; और 
    • उत्तरी गलियारा: यह खाड़ी देशों को यूरोप से जोड़ेगा। 
  • यह परियोजना वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिए साझेदारी (PGII) पहल का हिस्सा है।
    • PGII की घोषणा 2021 में यूनाइटेड किंगडम में आयोजित G-7 शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। इसे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) नीति के प्रतिसंतुलन के रूप में देखा जा रहा है।

IMEC के कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति

  • अवसंरचना विकास: इस परियोजना के तहत UAE और इजरायल के बीच रेलवे नेटवर्क में कुछ हद तक विकास देखा गया है। इसके अलावा, इजरायल में हाइफ़ा बंदरगाह की क्षमता के विस्तार के लिए वित्त-पोषण में भी प्रगति देखी गई है।
  • अलग-अलग क्षेत्रकों में विकास की स्थिति: कनेक्टिविटी के स्तर पर कुछ प्रगति हुई है। हालांकि, पश्चिम एशिया में व्याप्त अस्थिरता के कारण स्वच्छ ऊर्जा निर्यात, अंडर-सी फाइबर-ऑप्टिक केबल और पाइपलाइन बिछाने, एनर्जी ग्रिड लिंकेज तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में सहयोग करने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रगति नहीं हुई है।
  • व्यापार-प्रक्रियाओं का विकास: व्यापार प्रक्रियाओं के मानकीकरण तथा उन्हें सुविधाजनक बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे- भारत और UAE ने 'वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर' (VTC) शुरू किए हैं।  
    • वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर, IMEC का ही हिस्सा है। इसका उद्देश्य व्यापार से संबंधित प्रशासनिक प्रक्रियाओं और इसमें लगने वाले समय में कमी लाना, लॉजिस्टिक एवं परिवहन लागत को कम करना तथा व्यापार को सुगम बनाना है।
  • समावेशी दृष्टिकोण: IMEC में मध्य पूर्व के कुछ अन्य देश जैसे कि कतर, ओमान, मिस्र, तुर्किये और इराक भी शामिल हो सकते हैं, ताकि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी का लाभ उन्हें भी मिल सके।

IMEC का वैश्विक महत्त्व

  • कनेक्टिविटी में विविधता लाना: IMEC कनेक्टिविटी और व्यापार में विविधता लाने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
    • भौतिक कनेक्टिविटी (जैसे- रेल, सड़क, आदि) के अतिरिक्त, यह परियोजना डिजिटल कनेक्टिविटी और हरित ऊर्जा सहयोग को भी बढ़ावा देती है। इससे बहुपक्षवाद (Plurilateralism) की भावना को मजबूती मिलेगी। 
  • समृद्धि को बढ़ावा: स्वच्छ ऊर्जा निर्यात और डिजिटल संचार के बढ़ने से परियोजना के भागीदार देशों की समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
    • IMEC देशों (यूरोपीय संघ ब्लॉक सहित) का संयुक्त GDP लगभग 47 ट्रिलियन डॉलर है। यह विश्व की कुल GDP का लगभग 40 प्रतिशत है।
  • भू-रणनीतिक योगदान: नई कनेक्टिविटी से व्यस्त समुद्री मार्गों में जहाजों की भीड़भाड़ को कम किया जा सकेगा। इससे स्वेज नहर जैसे महत्वपूर्ण मार्गों पर निर्भरता कम होगी और किसी एक मार्ग के बाधित होने पर समुद्री व्यापार को नए मार्गों से जारी रखने में मदद मिलेगी।   
  • भू-आर्थिक प्रभाव: आर्थिक एकीकरण और एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ने से संघर्ष-ग्रस्त मध्य पूर्व क्षेत्र में शांति बहाली के वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें शामिल देश चाहेंगे कि संघर्ष समाप्त हो ताकि आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा न हो। 
  • भू-राजनीतिक निहितार्थ: यह परियोजना मध्य पूर्व के देशों को चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक विकल्प प्रदान करती है।

भारत के लिए महत्त्व 

  • भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंधों को मजबूती: काफी समय से भारत और खाड़ी देशों के बीच व्यापार एवं आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने का प्रयास किया किया जा रहा है। ऐसे में, IMEC अवसंरचना और कनेक्टिविटी में सुधार करके इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होगा।
    • उदाहरण के लिए- तेल के अलावा अन्य उत्पादों के व्यापार को बढ़ावा देकर भारत और UAE के मध्य व्यापार की जाने वाली वस्तुओं की संख्या में वृद्धि करना।
  • आर्थिक संवृद्धि: IMEC क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देगा, भारत में निवेश आकर्षित करेगा और भारतीय बाजार के लिए कूटनीतिक एवं राजनीतिक गुडविल का विकास करेगा। इससे समग्र आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित होगी।
  • तेज कनेक्टिविटी: IMEC के माध्यम से भारत से यूरोपीय मुख्य भूमि तक जाने वाले व्यापारिक जहाजों को स्वेज नहर समुद्री मार्ग की तुलना में 40% कम समय लगेगा। इससे व्यापार लागत में 30% तक की कमी आ सकती है।
  • भू-राजनीतिक आकांक्षाएं: यूरोपीय संघ (EU) और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) भारत के दो सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार/ ब्लॉक्स हैं। IMEC इन्हें जोड़कर भारत की आर्थिक संवृद्धि को गति देगा और वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेगा।

मुख्य चुनौतियां

  • उच्च लागत: मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी स्थापित करना काफी जटिल काम है। इसके अलावा खाड़ी देशों में विनिर्माण क्षमता अधिक विकसित नहीं है। ऐसे में IMEC परियोजना के तहत विकसित की जा रही नई कनेक्टिविटी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग नहीं हो सकेगा। इससे कारण वस्तुओं के परिवहन की लागत बढ़ जाएगी।
  • क्षेत्र के महत्वपूर्ण देश शामिल नहीं: मध्य पूर्व की कई महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाएं, जैसे कि तुर्किये, मिस्र, ईरान, कतर, आदि IMEC परियोजना में शामिल नहीं हैं।  
  • मौजूदा समुद्री मार्ग का अधिक उपयोग: वर्तमान समय में बाब अल-मन्देब, लाल सागर और स्वेज नहर से होकर गुजरने वाले मौजूदा समुद्री मार्गों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • ऐसे में नए मार्गों को महंगी परियोजना के रूप में देखा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इन नए मार्गों का वैश्विक व्यापार पर सीमित प्रभाव पड़ेगा।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता: मध्य-पूर्व हमेशा से अशांत क्षेत्र रहा है, जैसे कि इजरायल-हमास युद्ध, लाल सागर में यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा व्यापारिक जहाजों पर हमले, आदि। ये चुनौतियां व्यापार को बाधित कर सकती हैं।
    • अरब-इजरायल संबंधों का सामान्यीकरण IMEC के विकास का मूल आधार था। हालांकि, जिस तरीके से इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष विकराल रूप लेता जा रहा है, उससे IMEC के क्रियान्वयन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। 
  • वित्त-पोषण की प्रतिबद्धताएं: परियोजना लागत के वित्त-पोषण को लेकर अब तक भागीदार देशों ने अधिक प्रतिबद्धता नहीं दर्शाई है।

अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रीय गलियारे

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):

  • यह 7,200 किलोमीटर लंबा व्यापार गलियारा है। वर्ष 2000 में मूल रूप से भारत, रूस और ईरान ने इस गलियारे का प्रस्ताव  रखा था। इसका उद्देश्य प्रस्तावित मार्ग पर स्थित देशों के बीच व्यापार और परिवहन की कनेक्टिविटी को बढ़ाना है।
  • वर्तमान में इसमें 13 सदस्य शामिल हैं। ये हैं- भारत, ईरान, रूस, अजरबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्किये, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया।
    • बुल्गारिया इसमें पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में शामिल हुआ है।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI):  

  • यह चीन सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना की शुरुआत 2013 में हुई थी। इसका उद्देश्य भूमि और समुद्री मार्गों के माध्यम से एशिया को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ना है।
  • इस परियोजना के निम्नलिखित दो घटक हैं:
    • सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट: यह एक अंतर-महाद्वीपीय सड़क मार्ग है। यह चीन को दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से सड़क मार्ग द्वारा जोड़ता है।
    • समुद्री रेशम मार्ग (Maritime Silk Road): यह समुद्री मार्ग है। यह चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, प्रशांत महासागर के दक्षिणी क्षेत्र, मध्य पूर्व तथा पूर्वी अफ्रीका से होते हुए यूरोप से जोड़ता है।

ट्रांस-कैस्पियन इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट रूट (TITR):

  • इसे 'मिडिल कॉरिडोर' भी कहा जाता है और यह एक मल्टी-मॉडल कॉरिडोर है। यह चीन को मध्य एशिया, काकेशस, तुर्किये और पूर्वी यूरोप के माध्यम से यूरोपीय संघ के देशों से जोड़ता है। इसे 2017 में शुरू किया गया था।

निष्कर्ष

बढ़ते वैश्विक तनाव और व्यापार में अनिश्चितता के माहौल में, नए और इनोवेटिव क्षेत्रीय व्यापार गलियारे पारंपरिक व्यापार मार्गों का एक विकल्प प्रदान करते हैं। IMEC एक ऐसा ही व्यापार गलियारा है। इसका मुख्य उद्देश्य वर्तमान भू-राजनीतिक स्थितियों में व्यापार और कनेक्टिविटी में सुधार करना है। भारत इन गलियारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो व्यापार को बढ़ावा देने और तनाव कम करने में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

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