परिवार एक सामाजिक समूह है। इसमें आमतौर पर लोग एक ही घर में साथ-साथ रहते हैं, आपस में आर्थिक सहयोग करते हैं तथा जिसमें प्रजनन क्रिया संपन्न होती है।
- परिवार को भारतीय समाज की बुनियादी संस्था माना जाता है और यह हमारे पारस्परिक-सामाजिक संबंधों में पारंपरिक रूप से प्रमुख स्थान रखता है।
- हालांकि, मौजूदा दौर में एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति, लिव-इन रिलेशनशिप, पारिवारिक कलह आदि परिवारिक मूल्यों में गिरावट का संकेत देते हैं।

पारिवारिक मूल्यों में गिरावट के मुख्य कारण
- सामाजिक प्रगति: शहरीकरण (बेहतर जीवन की तलाश में शहरों की ओर पलायन), वैश्वीकरण (व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पश्चिमी विचारों का प्रभाव), औद्योगीकरण (औद्योगिक क्षेत्रों की ओर पलायन) आदि के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली कमजोर हो रही है।
- बदलते सांस्कृतिक दृष्टिकोण: वर्तमान युवा पीढ़ी तेजी से निजता, स्वतंत्रता और घरेलू कार्यों को बराबरी में बांटने की मांग कर रही है।
- आर्थिक कारक: जीवन जीने के लिए अधिक धन की आवश्यकता, आर्थिक अस्थिरता, आधुनिक जीवन की उच्च मांगों के साथ-साथ दृष्टिकोणों और विचारों में अंतर आदि के कारण अलग-अलग पीढ़ियों के लिए एक साथ रहना कठिन होता जा रहा है।
- नैतिक मूल्यों का ह्रास: व्यक्तिवादी और भौतिकवादी समाज के उदय से ईमानदारी, नैतिकता व सहानुभूति जैसे मूल्यवान गुणों का ह्रास होता जा रहा है, जो सामूहिक जीवन के लिए आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
पीढ़ीगत मतभेदों को दूर करने के लिए अधिक से अधिक संवाद को बढ़ावा देना, पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं की बजाय व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुसार कार्यों का बंटवारा करना, निजता का सम्मान करते हुए तकनीक को अपनाना आदि पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।