कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय से संबंधित विभागीय संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में CBI की कार्यप्रणाली को मजबूत करने के लिए कुछ सिफारिशें की हैं।
CBI की कार्यप्रणाली से जुड़ी चिंताएं
- स्वायत्तता की कमी तथा अधिक प्रभावी नहीं होना: CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के तहत कानूनी शक्तियां दी गई हैं। इसमें राज्यों को अधिक शक्तियां दी गई है- जैसे कि किसी मामले की जांच के लिए राज्य सरकारों से सहमति प्राप्त करना। स्पष्ट है कि केंद्रीय एजेंसी होने के नाते CBI को जांच के दौरान व्यवधानों का सामना करना पड़ता है ।
- वर्तमान में पश्चिम बंगाल, कर्नाटक जैसे विविध राज्यों ने CBI को सौंपी गई सामान्य सहमति (General Consent) वापस ले ली है। इससे कई मामलों में CBI जांच प्रभावित हो रही है।
- बड़ी संख्या में रिक्तियां: CBI में कुल 724 पद रिक्त हैं, जो स्वीकृत पदों का लगभग 16% है।
- पारदर्शिता की कमी: CBI द्वारा दर्ज मामले, उन मामलों की जांच की प्रगति और अंतिम निर्णय से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होती।
संसदीय समिति की सिफारिशें
- अलग या नया कानून: राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े मामलों में CBI को राज्य की सहमति के बिना व्यापक जांच की शक्तियां प्रदान करने के लिए एक नया कानून बनाया जा सकता है।
- CBI को एक स्वतंत्र भर्ती-प्रणाली गठित करनी चाहिए: CBI को उपाधीक्षक (Dy.S.P.), निरीक्षक (Inspector) और उप-निरीक्षक (Sub-Inspector) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सीधी भर्ती की अनुमति दी जानी चाहिए।
- साइबर अपराध, फोरेंसिक जैसे क्षेत्रकों में विशेषज्ञों के लिए लेटरल एंट्री का प्रावधान किया जाना चाहिए।
- सूचनाओं को सक्रिय रूप से सार्वजनिक करना: CBI की कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए दर्ज मामलों से जुड़े डेटा और वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से CBI की वेबसाइट पर उपलब्ध करानी चाहिए।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के बारे में
|