महाराष्ट्र सरकार ने दया याचिकाओं के लिए समर्पित सेल की स्थापना की | Current Affairs | Vision IAS
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महाराष्ट्र सरकार ने दया याचिकाओं के लिए समर्पित सेल की स्थापना की

Posted 31 Mar 2025

11 min read

महाराष्ट्र ने मृत्युदंड की सजा पाए दोषियों की दया याचिकाओं पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए अतिरिक्त सचिव (गृह) के अधीन एक समर्पित सेल की स्थापना की है।

  • महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश (2024) का पालन करता है। ध्यातव्य है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को दया याचिकाओं पर कुशलतापूर्वक त्वरित कार्रवाई करने के लिए अपने गृह/ जेल विभागों के भीतर समर्पित इकाइयां गठित करने का निर्देश दिया गया था। 

दया याचिका (Mercy Petition) के बारे में 

  • न्यायालय द्वारा सजा मिलने के बाद, दोषी व्यक्ति के पास राष्ट्रपति या राज्यपाल के समक्ष दया याचिका (mercy petition) दायर करने का अंतिम संवैधानिक उपाय होता है। इसके तहत दोषी व्यक्ति अपने सजा में बदलाव या क्षमा की मांग करता है।
  • दया याचिका और क्षमा राष्ट्रपति या राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के अंतर्गत आते हैं। किसी भी व्यक्ति को यह दावा करने का कानूनी अधिकार नहीं है कि उसे क्षमा मिलनी ही चाहिए।
  • दया का उपयोग क्षमादान की शक्ति के माध्यम से किया जाता है, जिसे माफ़ करने की शक्ति के रूप में भी जाना जाता है।

क्षमादान की शक्ति 

  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 72)
    • क्षमा (Pardon): सजा से पूर्ण मुक्ति।
    • विराम (Respite): दिव्यांगता या गर्भावस्था जैसी विशेष परिस्थितियों के कारण मूल सजा के स्थान पर कम सजा देना।
    • स्थगन (Reprieve): कुछ समय के लिए किसी सजा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगाना। इसका उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या लघुकरण प्राप्त करने के लिए समय देना है।
    • परिहार (Remit): सजा की अवधि कम कर दी जाती है, जबकि इसकी प्रकृति वही रहती है।
    • लघुकरण (Commute): सजा की प्रकृति को बदलना, जैसे- मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति कोर्ट मार्शल के मामलों, संघीय कानूनों के उल्लंघन और मृत्युदंड के मामलों पर लागू होती है।
  • राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 161): राज्यपाल के पास भी क्षमादान शक्तियां हैं, लेकिन ये मृत्युदंड और कोर्ट मार्शल के मामलों तक विस्तारित नहीं हैं।
  • मारू राम बनाम भारत संघ मामले (1980) में, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल स्वतंत्र रूप से नहीं, बल्कि सरकार की सलाह पर कार्य करते हैं।
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  • दया याचिकाओं के लिए समर्पित सेल
  • क्षमादान की शक्ति
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