गुंडारम रिजर्व फॉरेस्ट में मिले 11 शिलालेख प्राचीन दक्कन की सांस्कृतिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये शिलालेख ईसा पूर्व पहली शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी ईस्वी तक के हैं, और विशेष रूप से सातवाहन काल की जानकारी प्राप्त करने के लिए अहम माने जाते हैं।
शिलालेखों से प्राप्त मुख्य जानकारी
- हरितिपुत्र शिलालेख: प्रारंभिक ब्राह्मी लिपि में लिखा गया यह शिलालेख सातवाहन और चुटु राजवंशों के बीच राजनीतिक गठबंधन का संकेत देता है।
- चुटु राजवंश (Chutu Dynasty) सातवाहनों का समकालीन था।
- त्रिशूल और डमरू शिलालेख: त्रिशूल और डमरू के चिन्ह वाला यह अनोखा शिलालेख दक्षिण भारत में अब तक ज्ञात सबसे प्रारंभिक धार्मिक प्रतीकों में से एक को दर्शाता है।
- यह शिलालेख राजनीतिक सत्ता और धार्मिक प्रतीकों के बीच प्रारंभिक संबंध को दर्शाता है।
सातवाहन वंश (दूसरी सदी ईसा पूर्व से दूसरी सदी ईस्वी):
- पुराणों में सातवाहन वंश को ‘आंध्रभृत्य या आंध्र’ भी कहा गया है। यह मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद दक्कन क्षेत्र (आधुनिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र) में स्थापित एक प्रमुख राजवंश था।
- प्रमुख शासक:
- सिमुक: उसने कण्व वंश को हटाकर सातवाहन वंश की स्थापना की।
- गौतमीपुत्र शातकर्णी: उसके शासन काल में सातवाहन साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया। वह शकों (पश्चिमी क्षत्रप) के विरुद्ध सैन्य सफलताओं और सातवाहन साम्राज्य के एकीकरण के लिए प्रसिद्ध है।
- नासिक और नानाघाट शिलालेख उसके शासन-काल के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करते हैं।
- हाल सातवाहन: वह अपनी प्रसिद्ध ‘प्राकृत’ काव्य रचना ‘गाथासप्तशती’ के लिए प्रसिद्ध है।
- सातवाहन शासकों की एक खास विशेषता यह थी कि उन्होंने कई बार अपनी माता के नाम को अपने शाही नाम का हिस्सा बनाया, जो उस समय के अन्य राजवंशों से अलग परंपरा थी।
- सातवाहन उन प्रथम भारतीय राजवंशों में शामिल थे जिन्होंने शासकों के चित्र वाले सिक्के जारी किए।