केंद्रीय बजट 2025-26 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को कृषि, निवेश और निर्यात जैसे क्षेत्रकों के साथ जोड़ते हुए उन्हें देश की विकास यात्रा के प्रमुख स्तंभों में से एक के रूप में महत्व दिया गया है।
MSMEs की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में क्या चुनौतियां हैं?

- औपचारीकरण: अनौपचारिक क्षेत्रक में MSMEs की हिस्सेदारी लगभग 90% है (ILO, 2023)।
- वित्त की कमी: सीमित औपचारिक ऋण और उच्च जोखिम की संभावना के कारण MSMEs को 80 लाख करोड़ रुपये के ऋण की कमी का सामना करना पड़ रहा है (क्रिसिल के अनुसार)।
- कौशल की कमी: वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन (WIPO, 2023) के अनुसार, ज्ञान-आधारित रोजगार में 3.9% की गिरावट (लगभग 13% से) MSMEs की नवाचार और विकास क्षमता को प्रभावित कर रही है।
- आंकड़ों का अभाव: MSMEs से जुड़ी नौकरियों, निर्यात और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर विश्वसनीय एवं विस्तृत आंकड़ों की अनुपलब्धता, प्रभावी नीति निर्माण और योजनाओं के क्रियान्वयन में बड़ी बाधा बनती है।
- यहां तक कि उद्यम (UDYAM) डेटाबेस में भी विस्तृत जानकारी का अभाव है। इससे नीतिगत निर्णयों में बाधा आती है।
- अन्य मुद्दे: MSMEs को कम उत्पाद विविधता, पुरानी तकनीक और “मिसिंग मिडल (विनिर्माण में बहुत कम मध्यम आकार की फर्म)” से जूझना पड़ रहा है।
MSMEs की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार हेतु उपाय
- वित्तीय सुलभता: क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (CGTMS) में सुधार, NBFCs को समर्थन प्रदान करना, तथा राज्य स्तरीय सब्सिडी मानदंडों को आसान बनाना।
- कौशल प्रशिक्षण: औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रमों, MSMEs के मालिकों के लिए वित्तीय साक्षरता, और व्यावसायिक कौशल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- डेटा: बेहतर नीति निर्धारण के लिए उद्यम पोर्टल को विस्तृत, क्लस्टर-वार और राज्य-स्तरीय डेटा के साथ अपग्रेड किया जाना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार: लघु फर्मों के लिए लक्षित नीतियां बनाना और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए इंस्टीट्यूट फॉर कोलेबोरेशन (IFC) को मजबूत करना चाहिए।