सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन और जीवन-यापन स्थितियों से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि वे संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)-कार्ड के आधार पर राहत का दावा नहीं कर सकते।
- UNHCR शरणार्थियों, जबरन विस्थापित समुदायों और राज्य-विहीन लोगों की रक्षा करने वाला एक वैश्विक संगठन है।
- गौरतलब है कि भारत ने “शरणार्थी कन्वेंशन 1951” और इसके ‘प्रोटोकॉल 1967’ पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
शरणार्थियों और निर्वासन से संबंधित भारत के वैधानिक प्रावधान
- भारत में ‘शरणार्थियों’ से संबंधित मुद्दे से निपटने के लिए कोई अलग कानून नहीं है। इसलिए शरणार्थी के ‘दर्जे’ से जुड़े पहलुओं को अलग-अलग मामलों के आधार पर निपटा जाता है। इसमें द्विपक्षीय नीति को ध्यान में रखा जाता है।
- भारत में शरणार्थी 'विदेशी' (Alien) और 'विदेशी नागरिक' (Foreigners) की परिभाषा में आते हैं।
- विदेशी विषयक अधिनियम, 1946: इस अधिनियम की धारा 3 केंद्र सरकार को देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: केंद्र सरकार किसी भी ऐसे विदेशी नागरिक को भारत से बाहर निकाल सकती है, जो बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत में प्रवेश करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 258(1) और 239(1) के अनुसार, राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को भी उपर्युक्त अधिकार सौंपे गए हैं।
अन्य प्रावधान
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