ज्ञातव्य है कि दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के आवास पर नकदी मिलने के आरोपों की जांच के लिए न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति बनाई गई थी।
- जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति से न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की गई है।
उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों को पद से हटाने के लिए संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217(1)(b) के तहत, सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट के न्यायाधीश को "सिद्ध कदाचार या अक्षमता" के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति केवल तभी पद से हटाने का आदेश दे सकता है, जब संसद के दोनों सदन एक ही सत्र में विशेष बहुमत से पद से हटाने के लिए समावेदन पारित करते है।
- यहां विशेष बहुमत का अर्थ है- प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत।
- राष्ट्रपति केवल तभी पद से हटाने का आदेश दे सकता है, जब संसद के दोनों सदन एक ही सत्र में विशेष बहुमत से पद से हटाने के लिए समावेदन पारित करते है।
- अनुच्छेद 124(5) संसद को इस प्रक्रिया के लिए कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इसके तहत संसद किसी समावेदन के प्रस्तुत किए जाने तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच व उसे सिद्ध करने की प्रक्रिया को कानून के माध्यम से विनियमित कर सकेगी।
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत प्रक्रिया
- पद से हटाने से जुड़ा प्रस्ताव लोक सभा में कम-से-कम 100 और राज्य सभा में कम-से-कम 50 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।
- लोक सभा अध्यक्ष या राज्य सभा का सभापति उचित परामर्श के बाद प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
- स्वीकृति मिलने पर, एक 3-सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है। समिति में एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, एक अन्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद (अध्यक्ष/ सभापति की राय में) शामिल होते हैं।
- यदि समिति न्यायाधीश को दोषी या असमर्थ पाती है, तो संसद के दोनों सदनों को उसी सत्र में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होता है। इसके बाद राष्ट्रपति के पास संबंधित न्यायाधीश को हटाने की सिफारिश भेजी जाती है।