IMD ने बताया कि इस वर्ष केरल में मानसून का आगमन सामान्य तिथि से आठ दिन पहले ही हो गया है।
- सामान्य रूप से हर साल दक्षिण-पश्चिम मानसून 1 जून के आसपास केरल में पहुंचता है। इससे पहले मानसून का इतना पहले आगमन वर्ष 2009 में हुआ था।
मानसून के शीघ्र आगमन के लिए जिम्मेदार कारक
- मेडन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO): यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वायुमंडलीय और महासागरीय प्रक्रियाओं की एक संयुक्त परिघटना है। यह बादल और पवनों के पैटर्न को मजबूती प्रदान करती है, जिससे समय से पहले वर्षा हेतु अनुकूल दशाएं निर्मित होती हैं।
- मस्कारेने हाई (Mascarene High): दक्षिणी हिंद महासागर में मस्कारेने द्वीप समूह के निकट उच्च दबाव वाली प्रणाली भारत की ओर मानसून के प्रवाह को तेजी प्रदान करती है।
- संवहन (Convection): वायुमंडल में ऊष्मा और नमी के ऊर्ध्वाधर प्रवाह में वृद्धि के कारण संवहन गतिविधियां तेज होती हैं, जिससे अधिक वर्षा होती है।
- सोमाली जेट (Somali jet): यह मॉरीशस और उत्तरी मेडागास्कर के पास उत्पन्न होने वाली एक निम्न-स्तरीय, क्रॉस-इक्वेटोरियल पवन प्रवाह है। यह अरब सागर के ऊपर मानसूनी पवनों को मजबूती प्रदान करती है।
- ताप जनित निम्न दाब (Heat-low): अरब सागर के आसपास महाद्वीप पर ताप जनित प्रबल निम्न दाब (दाब का विचलन सामान्य से कम) के कारण एक उथला (धरातल के नजदीक) निम्न-दाब वाला क्षेत्र निर्मित हो जाता है। यह क्षेत्र एक सक्शन डिवाइस के रूप में कार्य करता है, तथा मानसून गर्त के साथ-साथ आर्द्र पवनों को अपनी ओर खींचता है, और भारत में वर्षा की मात्रा को बढ़ाता है।
- मानसून गर्त (Monsoon trough): यह एक पट्टी के रूप में मौजूद निम्न दाब वाला क्षेत्र है, जो ताप जनित निम्न दाब के क्षेत्र से लेकर उत्तरी बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है। इसके दक्षिण की ओर खिसकने से पूरे भारत में सक्रिय मानसून की स्थिति बनती है।
IMD के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मानसून के समय से पहले आगमन की घोषणा करने के लिए आवश्यक मानदंड
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