इस नीति का उद्देश्य शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, आवास और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है।
- सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए उत्तराधिकार का अधिकार सुनिश्चित करने हेतु हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन करने के लिए कदम भी उठाएगी।
- यह नीति ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को अपनी लैंगिक पहचान (पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर) स्वयं चुनने का अधिकार देती है। इसके लिए किसी चिकित्सकीय प्रक्रिया या प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं होगी।
ट्रांसजेंडर कौन होता है?
- परिभाषा: ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति होता है, जिसकी लैंगिक पहचान जन्म के समय निर्धारित उसके लिंग से मेल नहीं खाती।
- आबादी: जनगणना, 2011 के अनुसार लगभग 4.8 लाख।
- नालसा निर्णय (2014): सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को "थर्ड जेंडर" के रूप में मान्यता दी और भारतीय संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि की।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के समक्ष समस्याएं
- कानूनी और पहचान संबंधी मुद्दे: 2019 का अधिनियम जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जेंडर पहचान प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता रखता है, जो स्व-पहचान के अधिकार का उल्लंघन है।
- सामाजिक भेदभाव और हाशिए पर रखना: सामाजिक स्वीकृति का अभाव तथा लैंगिक भिन्नता को सांस्कृतिक रूप से "विकृत" माना जाना, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक बहिष्कार एवं शारीरिक व यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ती हैं।
- शिक्षा संबंधी बाधाएं: समावेशी पाठ्यक्रम का अभाव, स्कूलों में बुलइंग के कारण ड्रॉपआउट दर अधिक आदि।
- स्वास्थ्य देखभाल: लैंगिक पहचान में सहायक स्वास्थ्य सेवा की अनुपलब्धता; सामाजिक अस्वीकृति के कारण डिप्रेशन, एंग्जाइटी और आत्महत्या की प्रवृत्ति का उच्च स्तर आदि।
- आर्थिक बहिष्कार: भर्तियों में पक्षपात और कार्यस्थलों पर असहजता के कारण रोजगार के अवसर सीमित हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए योजनाएं
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