इस सम्मेलन की थीम "सदाबहार क्रांति, जैव-खुशहाली का मार्ग" है। यह थीम प्रोफेसर स्वामीनाथन के खाद्य सुरक्षा के प्रति आजीवन समर्पण को दर्शाती है।
एम.एस. स्वामीनाथन के बारे में (1925 - 2023)
- प्रमुख सम्मान:
- 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार,
- पहला विश्व खाद्य पुरस्कार (1987),
- 1994 में UNEP का सासाकावा पर्यावरण पुरस्कार,
- 1999 में यूनेस्को गांधी स्वर्ण पदक,
- मरणोपरांत भारत रत्न (2024) आदि।
- वे योजना आयोग (1980-82) के सदस्य थे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी आयोग की अध्यक्षता की थी। वे फिलीपींस में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक रहे थे। वे एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) के संस्थापक भी रहे हैं।
एम.एस. स्वामीनाथन के प्रमुख योगदान
- उच्च-उपज वाली किस्मों का विकास:
- 1950 के दशक में: उन्होंने पाला-प्रतिरोधी आलू की किस्में विकसित की थी। नाज़ुक इंडिका चावल का मजबूत जापोनिका किस्म के साथ संकरण करके अधिक उपज देने वाली चावल की किस्में तैयार की थी।
- 1963 में: उन्होंने नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर एक ब्रीडिंग कार्यक्रम शुरू किया था। इसके तहत गेहूं में बौनेपन के जीन डालकर छोटे दाने वाली, मजबूत व अधिक उपज देने वाली किस्म विकसित की थी।
- भारत में हरित क्रांति के जनक (1960 के दशक में शुरू हुई): इसके तहत उन्होंने उन्नत ब्रीडिंग और आधुनिक तकनीकों को अपनाकर खाद्य उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया था।
- 'फसल कैफेटेरिया' की अवधारणा: इसमें अलग-अलग प्रकार की फसलों को एक साथ उगाया जाता है। इससे संतुलित आहार और बेहतर पोषण प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- 'फसल वितरण कृषि विज्ञान' का दृष्टिकोण: यह नया दृष्टिकोण निश्चित फसल कार्यक्रम की बजाय उपज और खाद्य गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए फसल चयन एवं रोपण में मध्य-मौसम समायोजन की अनुमति देता है।
- राष्ट्रीय किसान आयोग की अध्यक्षता: उन्होंने किसानों के लिए "स्वामीनाथन रिपोर्ट" तैयार की थी। इसमें भारत में कृषि प्रणालियों की उत्पादकता, लाभप्रदता और संधारणीयता को बढ़ाने के तरीकों पर सुझाव दिए गए थे।
सदाबहार क्रांति के बारे में
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