RBI ने अपनी अर्द्धवार्षिक भुगतान प्रणाली रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि प्रतिबंध, मुद्रा प्रतिबंध, और अन्य परिचालन संबंधी बाधाएं सहज अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को बाधित कर सकती हैं।
सीमा-पार भुगतान के बारे में
- परिभाषा: ये वे वित्तीय लेन-देन हैं, जहां भुगतानकर्ता और प्राप्तकर्ता अलग-अलग देशों में स्थित होते हैं।
- इसमें थोक और खुदरा दोनों तरह के भुगतान शामिल हैं। इसमें विप्रेषण (remittances) भी शामिल है।

- दो मुख्य प्रकार:
- थोक सीमा-पार भुगतान: यह आमतौर पर वित्तीय संस्थाओं के बीच होता है।
- खुदरा सीमा-पार भुगतान: आमतौर पर व्यक्तियों और व्यवसायों के बीच होता है, जैसे व्यक्ति-से-व्यक्ति, व्यक्ति-से-व्यवसाय आदि के मध्य।
- महत्त्व: वस्तुओं एवं सेवाओं, पूंजी और लोगों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता ने इसके बढ़ते आर्थिक महत्त्व में योगदान दिया है।
- भारत में स्थिति: भारत वैश्विक विदेशी विप्रेषण प्राप्त करने वाला शीर्ष देश बना हुआ है। 2024 में देश में रिकॉर्ड 137.7 बिलियन डॉलर का अंतर्वाह हुआ था।
प्रभावी सीमा-पार भुगतानों को सुविधाजनक बनाने के लिए पहलें
- वैश्विक स्तर पर
- G20 रोडमैप: इसका उद्देश्य उच्च लागत, धीमी गति, सीमित पहुंच, और अपर्याप्त पारदर्शिता जैसी चुनौतियों का समाधान करना है।
- बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) इनोवेशन हब प्रोजेक्ट्स: जैसे प्रोजेक्ट हर्था, प्रोजेक्ट रियाल्टो, प्रोजेक्ट अगोरा आदि।
- अन्य प्रयास: वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) तथा भुगतान और बाजार अवसंरचना समिति (CPMI) की सिफारिशें, आदि।
- भारत में
- द्विपक्षीय/ बहुपक्षीय सहयोग: विदेशी व्यापारियों की लोकेशंस पर UPI की QR कोड स्वीकृति के माध्यम से UPI को अन्य देशों की विदेशी तीव्र भुगतान प्रणालियों (FPSs) के साथ जोड़ा गया है।
- उदाहरण के लिए- UPI और PayNow (सिंगापुर) लिंकेज, प्रोजेक्ट नेक्सस (एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय पहल), आदि।
- द्विपक्षीय/ बहुपक्षीय सहयोग: विदेशी व्यापारियों की लोकेशंस पर UPI की QR कोड स्वीकृति के माध्यम से UPI को अन्य देशों की विदेशी तीव्र भुगतान प्रणालियों (FPSs) के साथ जोड़ा गया है।