‘सा-धन’ (Sa-Dhan) ने सूक्ष्म-वित्त पर तिमाही रिपोर्ट जारी की | Current Affairs | Vision IAS
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‘सा-धन’ (Sa-Dhan) ने सूक्ष्म-वित्त पर तिमाही रिपोर्ट जारी की

Posted 11 Oct 2025

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Article Summary

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सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को बढ़ती देनदारियों, परिसंपत्ति गुणवत्ता संबंधी समस्याओं और परिचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तथा ग्रामीण संकट के बीच सतत विकास के लिए सरकारी कार्यक्रम और डिजिटल रणनीतियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

यह रिपोर्ट ‘भारत सूक्ष्म वित्त रिपोर्ट’ (Annual Bharat Microfinance Report) का हिस्सा है। 

  • इस रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2024–25 के दौरान सूक्ष्म-वित्त क्षेत्रक में ऋण चुकाने (Loan delinquencies) की दर में व्यापक गिरावट को उजागर किया गया है। इससे सूक्ष्म वित्त क्षेत्रक की पुनर्भुगतान प्रणाली पर दबाव बढ़ा है। 
    • ऋण चुकाने में विफलता की मुख्य वजहों में ग्रामीण आर्थिक संकट, मौसम की वजह से नुकसान, वित्तीय साक्षरता की कमी आदि शामिल हैं।  

भारत में सूक्ष्म-वित्त क्षेत्रक

  • परिभाषा: सूक्ष्म-वित्त यानी माइक्रोफाइनेंस उन बैंकिंग सेवाओं को कहा जाता है, जो कम आय वाले व्यक्तियों या समूहों को ऋण प्रदान करने के लिए बनाई जाती हैं। इन व्यक्तियों या समूहों को आम तौर पर पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से ऋण नहीं मिल पाता है। 
  • महत्त्व: 
    • वित्तीय समावेशन में सहायक: ये संस्थाएं वंचित वर्गों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़ती हैं।
    • ग्रामीणों को वित्तीय सेवा प्रदान करती हैं: सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं के 71% ग्राहक ग्रामीण हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि सूक्ष्म-वित्त ऋण प्रदाता संस्थाएं (MLIs) अविकसित ग्रामीण आबादी तक पहुंचने में सफल रही हैं।
    • महिलाओं के सशक्तीकरण में योगदान: ये संस्थाएं महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को ऋण प्रदान करती हैं। इन SHGs ने सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई है। 
      • गौरतलब है कि बैंकों से जुड़े 88% SHGs का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है।  
  • सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं के समक्ष मुख्य चुनौतियां  
    • परिसंपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट: विगत वर्ष की तुलना में जोखिम वाले पोर्टफोलियो (PAR) सभी श्रेणियों में बदतर हो गए हैं। यह स्थिति वितरित ऋण से जुड़े जोखिम का संकेत देती है।
    • राज्यवार ऋण-चुकाने में विफलता की स्थिति: बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। बिहार में न केवल बकाया ऋण की राशि सबसे अधिक थी, बल्कि डिफॉल्ट दर भी सबसे ऊंची थी।  
    • संचालन और वित्तीय चुनौतियां:
      • ग्राहक और स्टाफ को जोड़े रखने में कठिनाई: सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं को अपने ग्राहकों और कर्मचारियों को अपने साथ जोड़े रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
      • कॉस्ट ऑफ फंड्स में वृद्धि: सूक्ष्म-वित्त क्षेत्रक के लिए कॉस्ट ऑफ फंड्स बढ़कर 11.33% हो गया है। इसमें भी लघु सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं को सबसे अधिक लागत झेलनी पड़ी।
        • 'कॉस्ट ऑफ फंड्स' से तात्पर्य उस लागत से है, जिसका बैंक और वित्तीय संस्थान अपने ग्राहकों को उधार देने के लिए फंड प्राप्त करने हेतु भुगतान करते हैं।
      • लाभप्रदता में गिरावट: 1% से कम की ‘इक्विटी पर रिटर्न (RoE)’ की रिपोर्ट करने वाली सूक्ष्म-वित्त संस्थाओं की संख्या में उच्च वृद्धि दर्ज की गई है। 

दीर्घकालिक संवृद्धि के लिए उपाय 

  • सूक्ष्म-वित्त क्षेत्रक की दीर्घकालिक संवृद्धि निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करेगी: 
    • ग्राहकों की ऋण चुकाने की क्षमता का बेहतर आकलन करना,
    • डिजिटल तकनीक अपनाना, 
    • नीतिगत उपाय करना 
    • जिम्मेदारी से ऋण वितरण करना, और 
    • ऋण-वसूली में सुधार करना।  

सरकार द्वारा सूक्ष्म-वित्त को सशक्त करने के लिए उठाए गए कदम  

  • स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंक कार्यक्रम: इसका उद्देश्य SHGs के लिए ऋण वितरण बढ़ाना और SHGs द्वारा इन ऋणों का उपयोग गैर-आयसृजन गतिविधियों की बजाय उत्पादन आधारित गतिविधियों में करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • प्रधान मंत्री मुद्रा योजना: यह योजना लघु व्यवसायों को बिना कुछ गिरवी रखे सूक्ष्म ऋण प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है।
  • नाबार्ड द्वारा सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को पुनर्वित्त सहायता: नाबार्ड (NABARD) अपनी दीर्घकालिक पुनर्वित्त सुविधा (Long-Term Refinance Facility) के तहत लघु-वित्त संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।
  • Tags :
  • Microfinance Sector in India
  • Annual Bharat Microfinance Report
  • Quarterly Microfinance Report
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