सुर्ख़ियों में क्यों?
विवादित दक्षिण चीन सागर में विगत 17 महीनों में चीनी जहाजों के आक्रामक और गैर-पेशेवर व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।
अन्य संबंधित तथ्य
- हाल ही में, चीन ने मलेशिया से तेल की प्रचुरता वाले सरवाक जलक्षेत्र (Sarawak waters) में सभी गतिविधियां को तुरंत रोकने की मांग की है।
- गौरतलब है कि सरवाक रीफ क्षेत्र मलेशिया से केवल 100 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है जबकि यह चीन की मुख्य भूमि से लगभग 2,000 किलोमीटर दूर अवस्थित है।
दक्षिण चीन सागर (SCS) के बारे मेंभौगोलिक अवस्थिति
विवाद
वैश्विक व्यापार के लिए महत्त्व
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दक्षिण चीन सागर (SCS) में विवाद के कारण
- प्रादेशिक विवाद: दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। इस वजह से इस सागर के द्वीपों पर अपना-अपना दावा करने वाले दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ चीन का तनाव बढ़ा है।
- 2013-2015 के बीच: चीन ने स्प्रैटली द्वीप समूह में अपने कब्जे वाली सात प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) पर लगभग 3,000 एकड़ क्षेत्रफल वाले कृत्रिम द्वीपों का निर्माण किया।
- चीन ने दक्षिण चीन सागर के तीन द्वीपों का पूर्ण सैन्यीकरण कर दिया है।
- संसाधनों को हासिल करने की प्रतिस्पर्धा: दक्षिण चीन सागर में लगभग 3.6 बिलियन बैरल पेट्रोलियम एवं अन्य तरल पदार्थ मौजूद हैं। साथ ही, 40.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस भी होने का अनुमान है। इस जल क्षेत्र के समुद्र नितल पर मौजूद दुर्लभ-भू तत्व (रेयर अर्थ एलिमेंट्स) के दोहन के लिए भी आस-पास के देशों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है।
- दक्षिण चीन सागर की मात्स्यिकी गतिविधियों से प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर की आय होती है। यह हिस्सा वैश्विक मात्स्यिकी से प्राप्त कुल आय का लगभग 12 प्रतिशत है।
- राष्ट्रवाद और घरेलू राजनीति: दक्षिण चीन सागर विवाद में सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक दावेदार देशों में राष्ट्रवाद की बढ़ती भावना है। उदाहरण के लिए- चीन और वियतनाम, दोनों देशों ने दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने दावों को मजबूत करने के लिए राष्ट्रवादी बयानबाजी का सहारा किया है।
- इसके अलावा, फिलीपींस और अमेरिकी रक्षा समझौता के बाद इस संघर्ष में भागीदार के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रवेश भी चीन की चिंताओं को बढ़ा रहा है।
- सामरिक हित: दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर से हिंद महासागर तक पहुंचने का सबसे लघु मार्ग है और यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। यह समुद्री मार्ग पूर्वी एशिया को भारत, पश्चिमी एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ता है।
दक्षिण चीन सागर विवाद से वैश्विक व्यापार को खतरा कैसे है?
- चीन की आक्रामकता: हाल ही में, चीनी सेना ने इस समुद्री मार्ग में काफी आक्रामक गतिविधियां प्रदर्शित की हैं। इसका एक उदाहरण, फिलिपीनी जहाजों के साथ चीन के जहाजों की टक्कर है। चीन की इस तरह की आक्रामक गतिविधियों से इस क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष छिड़ने की आशंका बढ़ गई है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ने बार-बार चेतावनी दी है कि यदि फिलीपींस पर हमला होता है, तो वह दक्षिण चीन सागर सहित अन्य क्षेत्रों में उसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है।
- ताइवान का मुद्दा: चीन द्वारा लोकतांत्रिक द्वीप (ताइवान) को अपने नियंत्रण में लाने के लिए सैन्य बल का उपयोग करने की धमकी से दक्षिण चीन सागर में तनाव और बढ़ सकता है।
- चीन-ताइवान संघर्ष के दौरान मलक्का जलडमरूमध्य की संभावित नाकाबंदी: यदि चीन और ताइवान के बीच संघर्ष होता है, तो मलक्का जलडमरूमध्य की नाकेबंदी से वैश्विक व्यापार गंभीर रूप से बाधित हो सकता है। यह समुद्री मार्ग पर जहाजों की आवाजाही और सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा सकता है।
- शिपिंग लागत में वृद्धि: दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव से विश्व में तीसरे वैश्विक समुद्री संकट का मोर्चा खुल सकता है। अन्य दो वैश्विक समुद्री संकट हैं; लाल सागर संकट एवं होर्मुज जलडमरूमध्य संकट। इससे जहाजों के समुद्री मार्ग का बदलाव, वस्तुओं की आवाजाही में देरी, मूल्य में वृद्धि, आपूर्ति में कमी और प्रमुख एशियाई बंदरगाहों के राजस्व में हानि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
भारत और दक्षिण चीन सागर
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आगे की राह
- राजनयिक सहभागिता: विवादित पक्षों को सौहार्दपूर्ण और लाभकारी चर्चाओं में भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। जरूरत पड़ने पर निष्पक्ष मध्यस्थों को भी शामिल करना चाहिए।
- विश्वास-बहाली के उपाय: दक्षिण चीन सागर विवाद के क्षेत्रीय पक्षकारों के बीच पारदर्शिता, संवाद और आपसी विश्वास को बढ़ाने के लिए नियमों एवं प्रक्रियाओं को लागू करना जरूरी है। ये उपाय सहयोग पर आधारित माहौल के निर्माण को बढ़ावा देने और गलतफहमियों को दूर करने के लिए आवश्यक हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन: संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) और संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करना एवं इनका पालन करना भी जरूरी है। इससे सभी पक्ष अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचे के तहत कार्य कर सकेंगे और विवादों को न्यायसंगत ढंग से सुलझा सकेंगे।
- क्षेत्रीय सहयोग: क्षेत्रीय संगठनों और फ्रेमवर्क को मजबूत करना चाहिए, ताकि सहयोग और शांतिपूर्ण तरीके से विवाद-समाधान को प्रोत्साहित किया जा सके।

