दक्षिण चीन सागर तनाव और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (South China Sea Tensions & International Trade) | Current Affairs | Vision IAS
Monthly Magazine Logo

Table of Content

    दक्षिण चीन सागर तनाव और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (South China Sea Tensions & International Trade)

    Posted 30 Oct 2024

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    विवादित दक्षिण चीन सागर में विगत 17 महीनों में चीनी जहाजों के आक्रामक और गैर-पेशेवर व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।

    अन्य संबंधित तथ्य

    • हाल ही में, चीन ने मलेशिया से तेल की प्रचुरता वाले सरवाक जलक्षेत्र (Sarawak waters) में सभी गतिविधियां को तुरंत रोकने की मांग की है।
      • गौरतलब है कि सरवाक रीफ क्षेत्र मलेशिया से केवल 100 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है जबकि यह चीन की मुख्य भूमि से लगभग 2,000 किलोमीटर दूर अवस्थित है।  

    दक्षिण चीन सागर (SCS) के बारे में

    भौगोलिक अवस्थिति

    • दक्षिण चीन सागर, पश्चिमी प्रशांत महासागर का एक हिस्सा है। यह दक्षिण-पूर्व एशिया के आसपास स्थित है। 
    • यह चीन के दक्षिण में, वियतनाम के दक्षिण और पूर्व में, फिलीपींस के पश्चिम में और बोर्नियो के उत्तर में अवस्थित है। 
    • इसमें 200 से अधिक लघु द्वीपचट्टानें और रीफ्स मौजूद हैं। इनमें अधिकतर द्वीप निर्जन हैं।

    विवाद

    • 1992: चीन पश्चिमी हान राजवंश के समय के अपने ऐतिहासिक अधिकार का हवाला देकर पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है।
    • 2016: परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने फिलीपींस के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि चीन की "नाइन-डैश लाइन" दावे का कोई कानूनी आधार नहीं है।

    वैश्विक व्यापार के लिए महत्त्व

    • वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग एक तिहाई हिस्सा प्रतिवर्ष 3.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैले इसी समुद्री मार्ग से होकर गुजरता है।
    • प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर कारोबार किए जाने वाले लगभग 40% पेट्रोलियम उत्पाद इसी समुद्र मार्ग से गुजरते हैं।


     

    दक्षिण चीन सागर (SCS) में विवाद के कारण

    • प्रादेशिक विवाद: दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। इस वजह से इस सागर के द्वीपों पर अपना-अपना दावा करने वाले  दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ चीन का तनाव बढ़ा है।
      • 2013-2015 के बीच: चीन ने स्प्रैटली द्वीप समूह में अपने कब्जे वाली सात प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) पर लगभग 3,000 एकड़ क्षेत्रफल वाले कृत्रिम द्वीपों का निर्माण किया।
      • चीन ने दक्षिण चीन सागर के तीन द्वीपों का पूर्ण सैन्यीकरण कर दिया है।
    • संसाधनों को हासिल करने की प्रतिस्पर्धा: दक्षिण चीन सागर में लगभग 3.6 बिलियन बैरल पेट्रोलियम एवं अन्य तरल पदार्थ मौजूद हैं। साथ ही, 40.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस भी होने का अनुमान है। इस जल क्षेत्र के समुद्र नितल पर मौजूद दुर्लभ-भू तत्व (रेयर अर्थ एलिमेंट्स) के दोहन के लिए भी आस-पास के देशों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है।
      • दक्षिण चीन सागर की मात्स्यिकी गतिविधियों से प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर की आय होती है। यह हिस्सा वैश्विक मात्स्यिकी से प्राप्त कुल आय का लगभग 12 प्रतिशत है।
    • राष्ट्रवाद और घरेलू राजनीति: दक्षिण चीन सागर विवाद में सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक दावेदार देशों में राष्ट्रवाद की बढ़ती भावना है। उदाहरण के लिए- चीन और वियतनाम, दोनों देशों ने दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने दावों को मजबूत करने के लिए राष्ट्रवादी बयानबाजी का सहारा किया है।
      • इसके अलावा, फिलीपींस और अमेरिकी रक्षा समझौता के बाद इस संघर्ष में भागीदार के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रवेश भी चीन की चिंताओं को बढ़ा रहा है। 
    • सामरिक हित: दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर से हिंद महासागर तक पहुंचने का सबसे लघु मार्ग है और यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। यह समुद्री मार्ग पूर्वी एशिया को भारत, पश्चिमी एशिया, यूरोप और अफ्रीका से जोड़ता है।

    दक्षिण चीन सागर विवाद से वैश्विक व्यापार को खतरा कैसे है?

    • चीन की आक्रामकता: हाल ही में, चीनी सेना ने इस समुद्री मार्ग में काफी आक्रामक गतिविधियां प्रदर्शित की हैं।  इसका एक उदाहरण, फिलिपीनी जहाजों के साथ चीन के जहाजों की टक्कर है। चीन की इस तरह की आक्रामक गतिविधियों से इस क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष छिड़ने की आशंका बढ़ गई है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ने बार-बार चेतावनी दी है कि यदि फिलीपींस पर हमला होता है, तो वह दक्षिण चीन सागर सहित अन्य क्षेत्रों में उसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है।
    • ताइवान का मुद्दा: चीन द्वारा लोकतांत्रिक द्वीप (ताइवान) को अपने नियंत्रण में लाने के लिए सैन्य बल का उपयोग करने की धमकी से दक्षिण चीन सागर में तनाव और बढ़ सकता है। 
    • चीन-ताइवान संघर्ष के दौरान मलक्का जलडमरूमध्य की संभावित नाकाबंदी: यदि चीन और ताइवान के बीच संघर्ष होता है, तो मलक्का जलडमरूमध्य की नाकेबंदी से वैश्विक व्यापार गंभीर रूप से बाधित हो सकता है। यह समुद्री मार्ग पर जहाजों की आवाजाही और सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा सकता है।
    • शिपिंग लागत में वृद्धि: दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव से विश्व में तीसरे वैश्विक समुद्री संकट का मोर्चा खुल सकता है। अन्य दो वैश्विक समुद्री संकट हैं; लाल सागर संकट एवं होर्मुज जलडमरूमध्य संकट। इससे जहाजों के समुद्री मार्ग का बदलाव, वस्तुओं की आवाजाही में देरी, मूल्य में वृद्धि, आपूर्ति में कमी और प्रमुख एशियाई बंदरगाहों के राजस्व में हानि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

    भारत और दक्षिण चीन सागर

    • भारत की भागीदारी: चीन के विरोध करने के बावजूद, भारत ने लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत दक्षिण चीन सागर  में अपने प्रभाव का विस्तार किया है। भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों पर केंद्रित है।
    • भारत के लिए सामरिक महत्त्व:
      • जलमार्ग: दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर को मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से पूर्वी चीन सागर से जोड़ता है। यह वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है।
      • व्यापार: भारत का अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। इनमें से लगभग 50 फीसद व्यापार मलक्का जलडमरूमध्य से होता है। इस तरह यह क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
      • ऊर्जा भंडार होना: दक्षिण चीन सागर में अनुमानित ऊर्जा भंडार भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ये भंडार भारत की बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करके ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
        • वियतनाम के तट के पास तेल अन्वेषण ब्लॉक 128 जैसे समुद्री एसेट्स का दोनों देश संयुक्त रूप से अन्वेषण कर रहे हैं।
    • दक्षिण चीन सागर के प्रति भारत का दृष्टिकोण: भारत का मानना है कि समुद्री क्षेत्र जैसे ग्लोबल कॉमन्स यानी साझे संसाधनों का उपयोग सभी के लिए स्वतंत्र, खुला और "समावेशी" होना चाहिए।
    • भारत की रणनीति:
      • आसियान देशों के साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाना।
      • संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और सैन्य प्रशिक्षण आयोजित करना तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में हथियारों की बिक्री करना (जैसे-फिलीपींस को ब्रह्मोस की बिक्री) आदि। 
      • दक्षिण चीन सागर में अपतटीय ऊर्जा विकास परियोजनाओं में शामिल होना।
    • नीतिगत पहलें: एक्ट ईस्ट, नेबरहुड फर्स्ट तथा "क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास" नीतियों के साथ-साथ क्वाड में शामिल होकर रणनीतिक समन्वय सुनिश्चित करना।

    आगे की राह 

    • राजनयिक सहभागिता: विवादित पक्षों को सौहार्दपूर्ण और लाभकारी चर्चाओं में भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। जरूरत पड़ने पर निष्पक्ष मध्यस्थों को भी शामिल करना चाहिए।
    • विश्वास-बहाली के उपाय: दक्षिण चीन सागर विवाद के क्षेत्रीय पक्षकारों के बीच पारदर्शिता, संवाद और आपसी विश्वास को बढ़ाने के लिए नियमों एवं प्रक्रियाओं को लागू करना जरूरी है। ये उपाय सहयोग पर आधारित माहौल के निर्माण को बढ़ावा देने और गलतफहमियों को दूर करने के लिए आवश्यक हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन: संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) और संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करना एवं इनका पालन करना भी जरूरी है। इससे सभी पक्ष अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढांचे के तहत कार्य कर सकेंगे और विवादों को न्यायसंगत ढंग से सुलझा सकेंगे।
    • क्षेत्रीय सहयोग: क्षेत्रीय संगठनों और फ्रेमवर्क को मजबूत करना चाहिए, ताकि सहयोग और शांतिपूर्ण तरीके से विवाद-समाधान को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • Tags :
    • South China Sea
    • Court of Arbitration
    • Nine-dash-line
    • China -Taiwan conflict
    Download Current Article
    Subscribe for Premium Features