भारत के परमाणु सिद्धांत के 25 वर्ष (25 Years of India’s Nuclear Doctrine) | Current Affairs | Vision IAS
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    भारत के परमाणु सिद्धांत के 25 वर्ष (25 Years of India’s Nuclear Doctrine)

    Posted 30 Oct 2024

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    भारत अपने परमाणु सिद्धांत की घोषणा की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है।

    भारत के परमाणु सिद्धांत के बारे में

    परमाणु सिद्धांत में वे लक्ष्य और मिशन शामिल हैं जो परमाणु हथियारों की तैनाती और उपयोग का मार्गदर्शन करते हैं।

    भारत के परमाणु सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं

    • विश्वसनीय न्यूनतम निवारक क्षमता का सृजन और रखरखाव: भारत ने अपने परमाणु शस्त्रागार को एक निर्धारित सीमा के भीतर बनाए रखने की बात कही है। इस नीति का उद्देश्य शत्रु देशों के खिलाफ विश्वसनीय निवारक क्षमता बनाए रखना है।
    • "नो फर्स्ट यूज" (NFU) पालिसी: भारतीय क्षेत्र पर या किसी अन्य जगह तैनात भारतीय सेना पर परमाणु हमला होने की स्थिति में ही जवाबी कार्रवाई के रूप में भारत अपने परमाणु हथियारों का प्रयोग करेगा।
    • दोनों पक्षों का सुनिश्चित विनाश (MAD): जवाबी कार्रवाई के रूप में भारत का पहला ही हमला व्यापक होगा और विनाशकारी क्षति पहुंचाने वाला होगा।
      • "म्यूच्यूअल अस्योर्ड डिस्ट्रक्शन" वह अवधारणा है जिसके अनुसार दो महाशक्तियां एक-दूसरे को परमाणु हथियारों से नष्ट कर सकती हैं।
    • परमाणु हथियार नहीं रखने वाले देशों (NNWS) के विरुद्ध भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा।
    • परमाणु हथियार-मुक्त दुनिया के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता: भारत परमाणु हथियार-मुक्त विश्व का समर्थन करता है। हालांकि, यह प्रक्रिया वैश्विक, सत्यापन योग्य और भेदभाव-रहित परमाणु निरस्त्रीकरण के जरिए होनी चाहिए।
    • गवर्नेंस: परमाणु कमान प्राधिकरण (NCA) के तहत एक राजनीतिक परिषद और एक कार्यकारी परिषद के गठन का प्रावधान शामिल है।
      • राजनीतिक परिषद: इस परिषद के अध्यक्ष प्रधान मंत्री होते हैं। यह परमाणु हथियारों के उपयोग पर अंतिम निर्णय लेने वाला भारत का एकमात्र निकाय (असैन्य-राजनीतिक नेतृत्व) है।
      • कार्यकारी परिषद: इस परिषद की अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा की जाती है। यह परिषद NCA को निर्णय लेने के लिए इनपुट्स प्रदान करती है और राजनीतिक परिषद द्वारा दिए गए निर्देशों को लागू करती है।
    • सिद्धांत के अन्य पहलू
      • यदि भारत के खिलाफ रासायनिक या जैविक हथियारों (CBW) का प्रयोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में भारत जवाबी कार्रवाई के रूप में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है।
      • परमाणु और मिसाइलों से संबंधित सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के निर्यात पर सख्त पाबंदी रहेगी। भारत फिजाइल मटेरियल कटऑफ ट्रीटी (FMCT) वार्ता में भाग लेगा।
      • भारत परमाणु परीक्षणों पर लगे प्रतिबंधों का पालन करेगा।

    वैश्विक परमाणु विमर्श के संदर्भ में भारत की वर्तमान परमाणु स्थिति:

    • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT): यह संधि सभी प्रकार के परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है। परमाणु हथियार युक्त देशों द्वारा निश्चित अवधि के भीतर निरस्त्रीकरण की प्रतिबद्धता नहीं करने के चलते भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT), 1968: इसका उद्देश्य परमाणु अप्रसार, निरस्त्रीकरण तथा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग जैसे तीन स्तंभों के जरिए परमाणु हथियारों के प्रसार को सीमित करना है।
      • भारत ने इस संधि को पक्षपातपूर्ण बताते हुए इस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। भारत का मानना है कि इस संधि ने दुनिया को "परमाणु संपन्न" और "परमाणु रहित" देशों में विभाजित कर दिया है।
    • परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि (TPNW): यह कानूनी रूप से पहला बाध्यकारी समझौता है जो परमाणु हथियारों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है। भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत का मानना है कि यह संधि न तो पुराने अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में कोई योगदान देती है न ही नए मानक निर्धारित करती है।
    • वैश्विक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएं
      • भारत निम्नलिखित व्यवस्थाओं (समझौतों) का हिस्सा है: 
        • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR): भारत 2016 में MTCR का सदस्य बना। 
        • वासेनार व्यवस्था: भारत 2017 में इसका सदस्य बना। 
        • ऑस्ट्रेलिया समूह: भारत 2018 में इस समूह का सदस्य बना। 
      • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) 1974: भारत इसका सदस्य नहीं है। इस समूह का गठन भारत के 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद हुआ था। इसका उद्देश्य हथियार बनाने हेतु परमाणु सामग्री के निर्यात पर पाबंदी लगाना है।

    भारत के परमाणु सिद्धांत की आवश्यकता को रेखांकित करने वाले कारक:

    नो फर्स्ट यूज की प्रभावकारिता: यह भारत के परमाणु सिद्धांत का सबसे अधिक विवादित तत्व बना हुआ है।

    पहलू

    नो फर्स्ट यूज के विपक्ष में तर्क 

    नो फर्स्ट यूज के पक्ष में तर्क

    प्रारंभिक हानि का जोखिम 

    किसी देश द्वारा परमाणु हमले की स्थिति में भारतीय आबादी, शहरों और अवसंरचना को उच्च प्रारंभिक हानि और क्षति का सामना करना पड़ सकता है।

    यह भारत की रणनीतिक संयम की नीति में योगदान देता है। साथ ही, इसने भारत को असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों और बहुपक्षीय परमाणु निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में शामिल होने का अवसर प्रदान किया है।

    बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (BMD)

    प्रथम परमाणु हमले से बचाव के लिए विस्तृत और महंगी BMD प्रणाली की आवश्यकता है।

    नो फर्स्ट यूज भारत को रक्षात्मक रुख और परमाणु युद्ध भड़काने से रोकने का रुख अपनाने में मदद करता है।

     

    परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी देशों के विरुद्ध रणनीति का प्रभाव

    यह नीति पाकिस्तान के खिलाफ प्रभावी नहीं है। गौरतलब है कि पाकिस्तान टैक्टिकल परमाणु हथियारों के जरिए कम क्षमता वाले परमाणु हथियारों का निर्माण कर रहा है। टैक्टिकल परमाणु हथियार भारतीय सेना के खिलाफ अपने ही क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले कम-क्षमता वाले हथियार हैं।

    यह नीति चीन के साथ तनाव को समाप्त करने के लिए विवेकपूर्ण और गैर-भड़काऊ अप्रोच अपनाने तथा क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देती है।

     

    मौजूदा परमाणु सिद्धांत को कैसे मजबूत किया जा सकता है?

    • एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रमों की तर्ज पर समर्पित रक्षा प्रौद्योगिकी कार्यक्रम आरंभ किए जा सकते हैं। इससे तकनीकी विकास के साथ-साथ क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
    • 'बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई' की प्रतिबद्धता में लचीलापन बढ़ाना: मौजूदा परमाणु सिद्धांत 'बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई' (Massive retaliation) की प्रतिबद्धता पर आधारित है जो राजनीतिक अभिकर्ताओं को परमाणु युद्ध को भड़काने में मदद करता है। इससे जवाबी कार्रवाई के विकल्प सीमित हो सकते हैं। 
      • इस समस्या से निपटने के लिए, परमाणु सिद्धांत में कुछ "अस्पष्ट" प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं। ये अस्पष्ट प्रावधान पूर्ण परमाणु युद्ध में शामिल हुए बगैर देश को मौजूदा टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स (TNW) जैसे खतरों का जवाब देने में सक्षम बना सकते हैं।
    • भू-राजनीतिक बदलावों के आलोक में विकसित होती विदेश नीति के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है।
      • लगातार बदल रही भू-रणनीतिक विश्व व्यवस्था में भारत को समय-समय पर अपनी परमाणु नीति की समीक्षा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए- संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस समय-समय पर अपनी परमाणु नीतियों की समीक्षा करते हैं।
      • चीन-पाकिस्तान के बीच मजबूत होते संबंध और रूस के साथ उनके बढ़ते संबंध, साथ ही दुनिया भर में भू-राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए भारत को अपने परमाणु सिद्धांत की समीक्षा करनी चाहिए।
    • भारत वैश्विक परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने वाले एक ग्लोबल लीडर के रूप में उभर सकता है। इसके लिए भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र की छवि बनानी होगी। इस दिशा में भारत द्वारा निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं:
      • भारत को संयुक्त राष्ट्र और निरस्त्रीकरण सम्मेलन जैसे अन्य मंचों पर आयोजित होने वाली बहुपक्षीय वार्ताओं में हिस्सा लेना चाहिए। भारत इन मंचों का इस्तेमाल अल्प-विकसित और विकासशील देशों की सुरक्षा और परमाणु अप्रसार के मुद्दों पर अपना पक्ष रखने के लिए कर सकता है।
      • भारत को विश्वास निर्माण उपायों के रूप में अपने पड़ोसी देशों के साथ परमाणु संबंधी मुद्दों पर खुली और पारदर्शी वार्ता करनी चाहिए। ऐसा करके भारत अधिक देशों को नो-फर्स्ट यूज की नीति अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। 
        • वर्तमान में, भारत के अलावा चीन एकमात्र अन्य परमाणु राष्ट्र है जो नो-फर्स्ट यूज (NFU) के सिद्धांत का पालन करने का दावा करता है।
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