सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारतीय खेल प्राधिकरण और BCCI से आग्रह किया है कि वे खिलाड़ियों को तंबाकू या शराब के सरोगेट उत्पादों का विज्ञापन करने से रोकें।
अन्य संबंधित तथ्य
- इसके अलावा, मंत्रालय ने निम्नलिखित उपायों की सूची भी जारी की है:
- तंबाकू के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए खिलाड़ियों द्वारा एक औपचारिक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करना,
- BCCI द्वारा आयोजित या भागीदारी वाले स्टेडियमों या कार्यक्रमों में इन उत्पादों का प्रचार/ विज्ञापन नहीं करना,
- BCCI के दायरे में आने वाले खिलाड़ियों को तंबाकू और संबंधित उत्पादों के सरोगेट प्रचार/ विज्ञापन से दूर रहने के निर्देश जारी करना।
- मंत्रालय ने BCCI के खेल आयोजनों (जैसे- IPL) में अन्य मशहूर हस्तियों द्वारा ऐसे सरोगेट विज्ञापनों की अनुमति नहीं देने का भी अनुरोध किया है।
सरोगेट विज्ञापनों के बारे में
- सरोगेट विज्ञापन एक ऐसी विज्ञापन रणनीति है जिसमें किसी प्रतिबंधित उत्पाद (जैसे- तंबाकू या शराब) को सीधे विज्ञापित करने के बजाय, उसी कंपनी के किसी अन्य उत्पाद का विज्ञापन किया जाता है। यह एक तरह से प्रतिबंधित उत्पाद को बढ़ावा देने का एक छुपा हुआ तरीका है। सरोगेट विज्ञापन का कारण यह है कि ऐसे उत्पादों के विज्ञापन कानून द्वारा प्रतिबंधित या निषिद्ध होते हैं।
- इसमें गलत विवरण, झूठा आश्वासन, भ्रामक निहित प्रतिनिधित्व, जानबूझकर आवश्यक जानकारी को छिपाना आदि तरीके शामिल होते हैं। इससे अनुचित व्यापार व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
- लोकप्रिय खेल आयोजनों में ये विज्ञापन ब्रांड्स को रिकॉल वैल्यू हासिल करने में मदद करते हैं। इससे प्रतिबंधित उत्पादों की बिक्री बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए- IPL 2024 के दौरान प्रचारित कुल विज्ञापनों में पान मसाला उत्पादों से संबंधित विज्ञापनों की हिस्सेदारी 16% थी।
- ब्रांड ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए मशहूर हस्तियों, लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले स्थानों और दृश्यों को शामिल करने जैसे तरीके अपनाते हैं।
- उदाहरण के लिए- शराब कंपनियां म्यूजिक CDs का विज्ञापन करती हैं या पान मसाला कंपनियां सिल्वर कोटेड इलायची, सुपारी के प्रचार के जरिए सरोगेट विज्ञापन करती हैं।
सरोगेट विज्ञापनों से संबंधित कानूनी फ्रेमवर्क
- केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995; केबल टेलीविजन नियम, 1994; तथा सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (COTPA), 2003 के तहत शराब, तंबाकू एवं सिगरेट उत्पादों का विज्ञापनों के जरिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रचार को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने 'भ्रामक विज्ञापनों और भ्रामक विज्ञापनों के अनुमोदन की रोकथाम के लिए दिशा-निर्देश, 2022' जारी करके पहली बार सरोगेट विज्ञापनों को परिभाषित किया था।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में 'भ्रामक विज्ञापनों' को ऐसे विज्ञापन के रूप में परिभाषित किया गया है, जो उत्पादों का गलत तरीके से वर्णन करते हैं; या ऐसे उत्पाद या सेवा के उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं।
- भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) संहिता के तहत प्रतिबंधित वस्तुओं से जुड़े ब्रांड का किसी अप्रतिबंधित वस्तु के विज्ञापन के लिए उपयोग करने पर कोई रोक नहीं है, बशर्ते यह 'जेन्युइन ब्रांड एक्सटेंशन' होना चाहिए।
- जेन्युइन ब्रांड एक्सटेंशन की प्रामाणिकता का आकलन उत्पादन और बिक्री के आंकड़ों के साथ विज्ञापन अभियानों के बीच सहसंबंध स्थापित करके किया जा सकता है।

सरोगेट विज्ञापन के निहितार्थ
- उपभोक्ताओं के संबंध में:
- उपभोक्ता अधिकारों को कमजोर करना: सरोगेट विज्ञापन के परिणामस्वरूप अनुचित व्यापार व्यवहार होता है तथा उपभोक्ताओं के सूचना और पसंद के अधिकार का उल्लंघन होता है।
- जागरूकतापूर्ण निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर करना: विज्ञापन आकांक्षापूर्ण कंटेंट के जरिए सपनों को बेचने के लिए बनाए जाते हैं। यह कंटेंट उत्पाद से जुड़ा होता है। ये युवाओं और निर्धन वर्गों को सर्वाधिक गुमराह करते हैं।
- लोक स्वास्थ्य के संबंध में:
- लोक स्वास्थ्य के लिए खतरा: तंबाकू और शराब उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिए आकर्षक बनाने से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे विशेष रूप से युवाओं में इसकी लत लग सकती है।
- ICMR के एक अध्ययन में पाया गया कि ICC पुरुष क्रिकेट विश्व कप, 2023 में कुल विज्ञापनों में से 41.3% स्मोकलेस तंबाकू ब्रांड्स के सरोगेट विज्ञापन थे।
- कंपनियों के संबंध में:
- लाभप्रदता बनाम प्रभावकारिता: सरोगेट विज्ञापन प्रतिबंधित उत्पादों की ब्रांड दृश्यता और बिक्री को बढ़ावा देते हैं। इससे अनुचित व्यापार प्रथाओं के और इन उत्पादों के अधिक उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
- 2019 के एक सर्वेक्षण में दावा किया गया था कि 70% से अधिक उपभोक्ता सरोगेट विज्ञापनों से प्रभावित हुए थे।
- डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, BCCI और राज्य संघों के खेल टूर्नामेंट्स के दौरान सरोगेट विज्ञापनों से इनके राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए- ब्रांड, 10 सेकंड के विज्ञापन स्पॉट के लिए 60 लाख रुपये का भुगतान करते हैं।
- लाभप्रदता बनाम प्रभावकारिता: सरोगेट विज्ञापन प्रतिबंधित उत्पादों की ब्रांड दृश्यता और बिक्री को बढ़ावा देते हैं। इससे अनुचित व्यापार प्रथाओं के और इन उत्पादों के अधिक उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
- नैतिक निहितार्थ:
- पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी: इससे ब्रांड्स को विज्ञापनों के जरिए निषिद्ध उत्पादों के प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कानूनी खामियों का फायदा उठाने में मदद मिलती है।
- सामाजिक प्रभाव और नज थ्योरी: 'आउट ऑफ साइट-आउट ऑफ माइंड' मार्केटिंग रणनीति का उपयोग उपभोक्ताओं को तम्बाकू या शराब उत्पादों का सेवन करने के लिए प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए - सेलिब्रिटी द्वारा किए गए विज्ञापन।
- नज थ्योरी (Nudge theory): नज थ्योरी एक व्यावहारिक अर्थशास्त्र संबंधी अवधारणा है। इसका उद्देश्य विकल्पों को प्रस्तुत करने के तरीके में सूक्ष्म परिवर्तन के माध्यम से लोगों के निर्णयों और व्यवहारों को प्रभावित करना है।
सरोगेट विज्ञापनों के विनियमन में मौजूद समस्याएं
- कानूनों में मौजूद खामियां: कानूनों में मौजूद अस्पष्ट परिभाषाओं व शर्तों के कारण कानून अक्सर सरोगेट विज्ञापनों के प्रचार को रोकने में विफल हो जाते हैं।
- कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन और कार्रवाई योग्य जवाबदेही की कमी मौजूद है। इससे ब्रांड्स को कानूनों के उल्लंघन का अवसर मिल जाता है।
- अनैतिक व्यवहार: कंपनियों द्वारा बाजार में हिस्सेदारी हासिल करने के लिए अनैतिक व्यवहार अपनाए जाते हैं या वे अपने उत्पादों की कीमतों में कमी कर देती हैं। इससे लोग ऐसे उत्पादों का अधिक उपयोग करने लगते हैं।
- कठोर दंड का अभाव: दंड के रूप में आमतौर पर सुधारों के साथ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए कहा जाता है और प्राय: आनुपातिक दंड का अभाव होता है।
- नौकरियों और राजस्व का नुकसान: सिन गुड्स (जैसे- शराब और तंबाकू) के उत्पादन पर उच्च कर/ उपकर लगाया जाता है, जिससे राज्य के राजस्व में इनका महत्वपूर्ण रूप से योगदान होता है। साथ ही, इससे रोजगार सृजन भी होता है।

आगे की राह
- सरकारी हितधारकों और भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) के बीच हितधारक परामर्श बैठक में उठाए जा सकने वाले निम्नलिखित कदमों पर प्रकाश डाला गया है:
- ब्रांड एक्सटेंशन और विज्ञापित किए जा रहे प्रतिबंधित उत्पाद या सेवा के बीच स्पष्ट अंतर सुनिश्चित करना चाहिए;
- विज्ञापन में प्रतिबंधित उत्पाद का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संदर्भ नहीं होना चाहिए;
- विज्ञापन की प्रस्तुति में प्रतिबंधित उत्पाद से सादृश्यता नहीं होनी चाहिए;
- विज्ञापन में अन्य उत्पादों का विज्ञापन करते समय प्रतिबंधित उत्पादों के प्रचार के लिए विशिष्ट स्थितियों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए आदि।
- मौजूदा विनियमनों को मजबूत करना और खामियों को दूर करना चाहिए:
- COTPA और ASCI के तहत स्पष्टीकरण: सरोगेट विज्ञापन पर प्रतिबंध को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए और इसे सभी मीडिया, आयोजनों और खेल प्रयोजनों तक पहुंचना चाहिए।
- डिजिटल मीडिया विनियमन: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को विनियमनों के दायरे में लाया जा सकता है। हालांकि, शुरुआती तौर पर खेलों से संबंधित सट्टेबाजी, स्वास्थ्य-केंद्रित सप्लीमेंट्स और जिम से संबंधित उत्पादों पर फोकस किया जा सकता है।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: दंड की मात्रा बढ़ानी चाहिए और जुर्माना लगाकर मीडिया निगमों को उत्तरदायी बनाना चाहिए तथा जिम्मेदार विज्ञापन प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिए।
- विनियामक अंतर्दृष्टि: समय-समय पर ऑडिट, रियल टाइम सतर्कता और प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना चाहिए।
- सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियानों के माध्यम से लोक जागरूकता एवं शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।
निष्कर्ष
विशेष रूप से नए युग की तकनीक के इस दौर में विज्ञापनों का उपभोक्ताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए उनके दावों की वैधता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।