इसरो ने भू-अवलोकन (Earth Observation) उपग्रह EOS-08 लॉन्च किया (ISRO Launches Earth Observation Satellite EOS-08) | Current Affairs | Vision IAS
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    संक्षिप्त समाचार

    Posted 30 Oct 2024

    12 min read

    इसरो ने भू-अवलोकन (Earth Observation) उपग्रह EOS-08 लॉन्च किया (ISRO Launches Earth Observation Satellite EOS-08)

    यह उपग्रह SSLV-D3/EOS-08 मिशन के तहत लॉन्च किया गया। इसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV)-D3 की मदद से लॉन्च किया गया है।

    • यह उपग्रह पृथ्वी से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर वृत्ताकार निम्न कक्षा में 37.4° के कोण (inclination) पर पृथ्वी का चक्कर लगाएगा। इस उपग्रह की मिशन लाइफ एक वर्ष है। 
    • इसके अलावा, SSLV-D3 प्रक्षेपण यान से SR-0 डेमोसैट भी लॉन्च किया गया। इसे स्पेस किड्ज इंडिया ने तैयार किया है।

    EOS-08 मिशन के उद्देश्य:

    • माइक्रोसैटेलाइट के डिजाइन और विकास का परीक्षण करना, 
    • माइक्रोसैटेलाइट बस के अनुरूप पेलोड इंस्ट्रूमेंट्स बनाना, 
    • भविष्य के उपग्रहों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियां शामिल करना।

    E0S-08 मिशन के पेलोड्स: 

    • इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (EOIR) पेलोड: यह मिड-वेव और लॉन्ग वेव इन्फ्रारेड बैंड में तस्वीरें लेगा। इनसे आपदाओं की निगरानी करने और ​​पर्यावरण पर नज़र रखने जैसे कार्यों में मदद मिलेगी। 
    • ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम- रिफ्लेक्टोमेट्री (GNSS-R) पेलोड: यह महासागर के ऊपर बहने वाली हवाओं, मृदा की नमी, हिमालय क्रायोस्फीयर, आदि को मापने के लिए रिमोट सेंसिंग का उपयोग करेगा।
    • SiC UV डोसीमीटर: यह गगनयान मिशन के क्रू मॉड्यूल व्यूपोर्ट के ऊपर अल्ट्रावायलेट (UV) विकिरण की निगरानी करेगा। यह अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए हाई-डोज अलार्म सेंसर के रूप में कार्य करेगा।

    पृथ्वी वेधशाला उपग्रह (Earth observatory satellites: EOS) के बारे में:

    • EOS या अर्थ रिमोट सेंसिंग उपग्रह, पृथ्वी के अवलोकन (EO) के लिए लॉन्च किए जाते हैं।
      • पृथ्वी अवलोकन (EO) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सतह और वायुमंडल के बारे में डेटा एकत्र किया जाता है। यह डेटा प्राकृतिक घटनाओं (जैसे- बादल, जंगल, पहाड़) और मानव-निर्मित संरचनाओं (जैसे- शहर, सड़कें, खेत), दोनों के बारे में हो सकता है। इसके माध्यम से हम पृथ्वी के भौतिक, रासायनिक और जैविक पहलुओं के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों के प्रभावों का भी अध्ययन कर सकते हैं।  
    • मुख्य उपयोग: इसका उपयोग अर्ली वार्निंग सिस्टम, विभिन्न गतिविधियों का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की आदि निगरानी में किया जाता है।
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    एक्सिओम मिशन 4 {AXIOM Mission 4 (AX-4)}

    भारत ने एक्सिओम मिशन 4 के लिए शुभांशु शुक्ला और प्रशांत बालाकृष्णन नायर का चयन किया है। ये दोनों भारतीय वायु सेना में ग्रुप कैप्टन हैं। 

    • इस मिशन के तहत ये दोनों संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रशिक्षण लेंगे। मिशन के दौरान इन दोनों को प्राप्त अनुभव भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए लाभकारी होगा। 

    एक्सिओम मिशन 4 (एक्स-4) के बारे में

    • यह नासा और एक अमेरिकी निजी कंपनी एक्सिओम स्पेस का चौथा निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है। 
    • इसके 14 दिनों तक के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से जुड़ने की उम्मीद है।
    • एक्सिओम स्पेस ने प्रक्षेपण सुविधा प्राप्त करने के लिए स्पेसएक्स से कॉन्ट्रैक्ट किया है।
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    डेंगू (Dengue)

    डेंगीऑल नामक स्वदेशी टेट्रावेलेंट डेंगू वैक्सीन के तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत की गई है। 

    • यह ट्रायल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और पैनेशिया बायोटेक द्वारा किया जाएगा।

    डेंगू के बारे में: 

    • इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहा जाता है।
    • यह एक वायरल संक्रमण है जो संक्रमित मादा एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। ज्ञातव्य है कि चिकनगुनिया, जीका रोग भी मादा एडीज मच्छर के काटने से ही फैलते हैं।
    • डेंगू का प्रसार मुख्यतः दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों (खासकर शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों) में है।
    • उचित इलाज की कमी के चलते यह वयस्कों में डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी गंभीर स्थितियों में बदल सकता है। 
    • वर्तमान में, भारत में डेंगू के खिलाफ कोई एंटीवायरल उपचार या लाइसेंस प्राप्त वैक्सीन नहीं है।
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    लद्दाख मार्स/ लूनर एनालॉग रिसर्च स्टेशन के लिए संभावित स्थल (Ladakh As Martian/Lunar Analogue)

    वैज्ञानिकों ने लद्दाख को मार्स या लूनर एनालॉग रिसर्च स्टेशन के लिए संभावित स्थल के रूप में चुना।

    • एनालॉग रिसर्च स्टेशन एक ऐसा स्थान होता है, जहां किसी अन्य ग्रह या ब्रह्मांड के किसी अन्य पिंड पर मौजूद चरम स्थितियों के समान भौतिक दशाएं होती हैं। 
    • वर्तमान में विश्व में 33 एनालॉग रिसर्च स्टेशन हैं, जिनमें से कोई भी भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं है।
      • इनमें BIOS-3 (रूस), HERA और बायोस्फीयर 2 (USA), मार्स वन (नीदरलैंड), D-MARS (इजराइल) आदि शामिल हैं।

    एनालॉग साइट्स की आवश्यकता क्यों है?

    • ये दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण नई प्रौद्योगिकियों, रोबोटिक उपकरणों, वाहनों, विद्युत उत्पादन, आदि का फील्ड टेस्ट करने के लिए ज़रूरी हैं।
    • ये अन्य ग्रहों या पिंडों पर मौजूद चरम स्थितियों के अनुरूप दशाओं (सिम्युलेशन) में मानव की उपस्थिति और व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभावों जैसे कि अकेलापन एवं कटाव, टीम का आपसी जुड़ाव, पाचन क्षमता आदि का अध्ययन करने के लिए आवश्यक होते हैं।
      • सिमुलेशन परीक्षण के तहत सभी प्रकार की आकस्मिकताओं से निपटने में हैबिटैट यूनिट की क्षमता को परखा जाता है। 

    लद्दाख मार्स या लूनर एनालॉग रिसर्च स्टेशन के लिए क्यों आदर्श साइट है?

    • लद्दाख क्षेत्र में मंगल और चंद्रमा के समान निम्नलिखित भू-आकृति विज्ञान संबंधी समानताएं हैं:
      • प्रचुर मात्रा में चट्टानी जमीन वाला शुष्क, ठंडा और बंजर मरुस्थल।
      • वनस्पति, टीलों और जल निकासी नेटवर्क से रहित विशाल समतल भूमि।
      • पृथक धरातलीय हिम और पर्माफ्रॉस्ट तथा रॉक ग्लेशियर।
    • मंगल ग्रह की सतह की भू-रासायनिक दशाओं से समानता: जैसे- ज्वालामुखी चट्टानें, खारी झीलें और जलतापीय प्रणालियां। 
    • एक्सोबायोलॉजिकल समानताएं: पर्माफ्रॉस्ट (अतीत में मौजूद रहे जल के साक्ष्य), पराबैंगनी और कॉस्मिक विकिरण का अधिक प्रभाव, कम वायुमंडलीय दबाव, हॉट स्प्रिंग्स (बोरॉन से समृद्ध) और मानवीय हस्तक्षेप से अलग-थलग क्षेत्र। 
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    • Martian/ Lunar Analogue

    टेक्नोलॉजिकल डोपिंग (Technological Doping)

    हाल ही में, कुछ विशेषज्ञों ने टेक्नोलॉजिकल डोपिंग पर चिंता जताई है।

    टेक्नोलॉजिकल डोपिंग के बारे में:

    • टेक्नोलॉजिकल डोपिंग खेल उपकरणों का उपयोग करके अनुचित तरीके से प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने की पद्धति है।
      • उदाहरण के लिए- 2008 ओलंपिक में स्पीडो LZR रेसर स्विमसूट का उपयोग। यद्यपि बाद में इन स्विमसूट्स को प्रतिबंधित कर दिया गया था।  
    • विनियमन: विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा/ WADA) "प्रदर्शन-बढ़ाने वाली" या "खेल की भावना के खिलाफ” जाने वाली प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंध लगाती है।
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    • Technological Doping
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    एंटीमैटर (Antimatter)

    हाल ही में, वैज्ञानिकों ने एक कण त्वरक रिलेटिविस्टिक हैवी आयन कोलाइडर में सबसे भारी एंटीमैटर न्यूक्लियस का पता लगाया है।

    • इसे एंटीहाइपर हाइड्रोजन-4 नाम दिया गया है। यह एंटीप्रोटॉन, दो एंटीन्यूट्रोंस और एंटीहाइपरॉन से बना है। 

    एंटीमैटर 

    • पदार्थ के प्रत्येक मूल कण के लिए उसके समान द्रव्यमान वाला लेकिन विपरीत विद्युत आवेश वाला एक विरोधी या प्रति-कण (anti-particle) मौजूद होता है। इसे एंटीमैटर कहा जाता है। 
      • उदाहरण के लिए- धनात्मक रूप से आवेशित पॉज़िट्रॉन, ऋणात्मक रूप से आवेशित इलेक्ट्रॉन का एंटीमैटर है।
    • इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से संबंधित एंटीमैटर पार्टिकल्स को पॉज़िट्रॉन, एंटीप्रोटॉन और एंटीन्यूट्रॉन कहा जाता है।
    • मैटर और एंटीमैटर कण हमेशा युग्म के रूप में उत्पन्न होते हैं। हालांकि, जब एक कण और उसके विरोधी कण या प्रति-कण टकराते हैं, तो वे ऊर्जा की एक चमक या फ्लैश में "पूर्ण रूप से नष्ट" हो जाते हैं। इससे नए कण और प्रति-कण (एंटी-पार्टिकल) उत्पन्न होते हैं।
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    • Antihyper Hydrogen-4

    थोरियम मोल्टन साल्ट न्यूक्लियर पॉवर स्टेशन (Thorium Molten Salt Nuclear Plant)

    चीन 2025 में विश्व का पहला ‘थोरियम मोल्टन साल्ट न्यूक्लियर पॉवर स्टेशन’ गोबी मरुस्थल में स्थापित करेगा।

    • इस परमाणु ऊर्जा स्टेशन में ईंधन के रूप में यूरेनियम की जगह थोरियम का इस्तेमाल किया जाएगा।
      • इसमें शीतलक के लिए जल की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह ऊष्मा को स्थानांतरित करने और विद्युत उत्पादन के लिए तरल नमक या कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करता है।
      • जल-शीतलक मॉडल के विपरीत, यह डिजाइन ओवरहीटिंग के कारण रिएक्टर कोर के पिघलने की संभावना को काफी कम कर देता है। 

    ईंधन के रूप में थोरियम

    • थोरियम रेडियोधर्मी गुण वाला प्राकृतिक तत्व है। यह मिट्टी, चट्टानों, जल, पौधों और जानवरों में बहुत कम मात्रा में पाया जाता है।
    • थोरियम की भौतिक विशेषताओं के कारण, इसका परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए प्रत्यक्ष उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसके लिए पहले इसे परमाणु रिएक्टर में U-233 में बदला जाता है। 

    थोरियम आधारित रिएक्टर्स का महत्त्व

    • विश्व में यूरेनियम की तुलना में थोरियम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भारत में, केरल और ओडिशा में मोनाजाइट के समृद्ध भंडार है। गौरतलब है कि मोनाजाइट में लगभग 8-10% थोरियम होता है।
      • मोनाजाइट आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और झारखंड में भी पाया जाता है। 
    • थोरियम का इस्तेमाल रासायनिक रूप से इसकी निम्नलिखित विशेषताओं के कारण सुरक्षित है: 
      • उच्च गलनांक बिंदु; 
      • बेहतर तापीय चालकता;
      • बेहतर ईंधन प्रदर्शन विशेषताएं; 
      • रासायनिक रूप से अक्रिय और स्थिरता। 
    • यह पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित और कम विषाक्त है। साथ ही, अल्पकालिक (बहुत कम अस्तित्व अवधि) रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न करता है।

    भारत के परमाणु कार्यक्रम में थोरियम की भूमिका 

    • भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण में थोरियम का इस्तेमाल करके बड़े  पैमाने पर विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
      • पहले चरण में दाबयुक्त भारी जल रिएक्टर्स (PWHRs) में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग शामिल है। वहीं दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर्स (FBRs) में प्लूटोनियम का उपयोग शामिल है।
    • भारत ने मोनाजाइट से थोरियम उत्पादन की प्रक्रिया अच्छी तरह से स्थापित कर ली है। 
      • उन्नत भारी जल रिएक्टर, जो वर्तमान में BARC में विकास के चरण में है, थोरियम ईंधन चक्र के लिए प्रौद्योगिकी प्रदर्शक के रूप में काम करेगा।
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    प्लांट जीनोम एडिटिंग टूल ‘ISDRA2TNPB’ (Plant Genome Editing Tool ‘ISDRA2TNPB’)

    हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मिनिएचर प्लांट जीनोम एडिटिंग टूल 'ISDra2TnpB' विकसित किया।

    • 'ISDra2TnpB' को पादपों में जीनोम एडिटिंग के लिए अगली पीढ़ी का टूल माना जा रहा है। यह टूल CRISPR-Cas9 और CRISPR-Cas12 से भी बेहतर परिणाम दे सकता है।
    • CRISPR उच्च सटीकता वाली जीनोम एडिटिंग तकनीक है। हालांकि, आमतौर पर इस तकनीक में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटीन Cas9 और Cas12 (1,000-1,350 अमीनो एसिड्स से युक्त) के आकार के कारण इसकी कुछ सीमाएं हैं।
      • इन प्रोटीन का बड़ा आकार कोशिकाओं के भीतर CRISPR घटक को प्रभावी रूप से पहुंचाने खासकर वायरल वैक्टर के जरिए पहुंचाने में चुनौतियां पेश करता है।
    • TnpB प्रोटीन को Cas12 न्युक्लिअसिज़ का इवोल्यूशनरी एनसेस्टर माना जाता है। TnpB प्रोटीन के अंदर केवल लगभग 350-500 अमीनो एसिड्स होते हैं। 

    जीनोम एडिटिंग टूल ISDra2TnpB के बारे में

    • इसे डाइनोकोकस रेडियोड्यूरन्स नामक बैक्टीरिया से प्राप्त किया जाता है। यह बैक्टीरिया अत्यधिक विषम पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी जीवित रह सकता है।
    • यह ट्रांसपोजोन या जंपिंग जीन की फैमिली से संबंधित है। ट्रांसपोजोन या जंपिंग जीन RNA की मदद से विशिष्ट DNA अनुक्रमों को लक्षित करते हुए जीनोम के भीतर गतिशील रह सकता है।

    इस टूल का महत्त्व 

    • TnpB वास्तव में जीनोम के उन विशिष्ट क्षेत्रों को भी लक्षित कर सकता है, जिसे Cas9 नहीं कर सकता। 
    • यह जीनोम इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के दायरे को व्यापक बनाते हुए, फ्यूजन प्रोटीन्स के निर्माण की सुविधा प्रदान करता है।
      • एक फ्यूजन प्रोटीन (काइमेरिक प्रोटीन) दो या दो से अधिक जीनों को जोड़कर बनाया जाता है। ये जींस मूल रूप से अलग-अलग प्रोटीन के लिए कूटबद्ध होते हैं। 
    • यह टूल दोनों प्रकार के फूल वाले पौधों यानी मोनोकोट (जैसे चावल, जिसमें एक बीज पत्ती होती है) और डाइकोट (जैसे अरेबिडोप्सिस) पर प्रभावी था। 

    नोट: कृपया 'CRISPR' जीन एडिटिंग तकनीक के बारे में अधिक जानने के लिए 9 और 10 जून की न्यूज टुडे देखें। 

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    • Genome Editing
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    WHO ने एम पॉक्स को PHEIC घोषित किया (WHO Declared MPOX PHEIC)

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स के प्रकोप को “अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खतरे वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC)” घोषित किया।

    • WHO ने यह फैसला इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (IHR) आपातकालीन समिति की सलाह पर लिया है।
    • यह निर्णय डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) और अफ्रीका के बाहर एमपॉक्स के बढ़ते प्रकोप (Outbreak) को देखने के बाद लिया गया है। गौरतलब है कि एमपॉक्स को पिछले दो वर्षों में दूसरी बार वैश्विक PHEIC घोषित किया गया है। 

    एमपॉक्स के बारे में: 

    • यह एक वायरस जनित रोग है जो मंकीपॉक्स वायरस के कारण होता है। यह वायरस ऑर्थोपॉक्सवायरस जीनस से संबंधित है।
    • इस रोग को मनुष्यों में पहली बार 1970 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में देखा गया था। 
    • यह रोग संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से फैलता है। इसमें रोगी फ्लू जैसे लक्षणों से पीड़ित हो जाता है तथा उसकी त्वचा पर मवाद भरे घाव उत्पन्न हो जाते हैं।
    • इस रोग के अधिकांश मामले मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में दर्ज किए जाते हैं। यह मुख्य रूप से समलैंगिक, बाईसेक्सुअल लोगों (अन्य लोगों को भी) आदि को प्रभावित करता है।
    • चेचक के लिए विकसित टीके और उपचार को विशेष परिस्थितियों में कुछ देशों में एमपॉक्स के इलाज हेतु स्वीकृत किया जा सकता है।  

    PHEIC के बारे में:

    • इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (2005) के अनुसार, निम्नलिखित के आधार पर किसी रोग को PHEIC घोषित किया जाता है;  
      • यदि किसी रोग का प्रकोप असामान्य या अप्रत्याशित है;
      • इस रोग के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ़ैलने की संभावना है; और 
      • उस रोग के विरुद्ध तत्काल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई करना अनिवार्य है।
        • इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (2005) एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समझौता है। इसमें WHO के सभी सदस्य देशों सहित दुनिया भर के 196 देश शामिल हैं। 
    • PHEIC विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन के तहत जारी किया जाने वाला सबसे उच्च स्तर का अलर्ट है। 
      • 2009 के बाद से, WHO ने निम्नलिखित सात रोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है: 
        • H1N1 इन्फ्लूएंजा वैश्विक महामारी, पोलियो का प्रकोप, इबोला का प्रकोप (पश्चिम अफ्रीका), जीका महामारी, इबोला का प्रकोप (कांगो), कोविड-19 और एमपॉक्स।
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    सेरो-सर्वेक्षण (SeroSurvey)

    भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा भारत की उच्च जोखिम वाली आबादी के बीच एमपॉक्स के संपर्क का निर्धारण करने के लिए पिछले साल से सेरो-सर्वेक्षण का आयोजन किया जा रहा है।

    सेरो-सर्वेक्षण के बारे में

    • इसके तहत एक निश्चित अवधि में एक निर्धारित आबादी से रक्त (या लार जैसे प्रॉक्सी नमूने) का संग्रह और उसकी टेस्टिंग की जाती है।
    • उद्देश्य: संक्रामक रोगज़नक़ के खिलाफ IgG एंटीबॉडी की व्यापकता का अनुमान लगाना। IgG एंटीबॉडी की मौजूदगी आमतौर पर पूर्व में किसी रोगज़नक़ से संक्रमित होने को इंगित करती है।   
    • महत्त्व: इसका इस्तेमाल संक्रमण की व्यापकता और प्रतिरक्षा की कमी का अनुमान लगाने; संक्रामक रोग मॉडलिंग हेतु प्रमुख मापदंडों आदि के लिए किया जा सकता है।
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    हेफ्लिक लिमिट (Hayflick Limit)

    हाल ही में, लियोनार्ड हेफ्लिक का निधन हो गया। 

    • उन्होंने 'हेफ्लिक लिमिट' की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जिसने बुढ़ापे की समझ को मौलिक रूप से बदल दिया। 

    हेफ्लिक लिमिट के बारे में 

    • यह वह संख्या है, जितनी बार कोशिका आबादी विभाजित हो सकती है। यह तब तक विभाजित होती रहती है, जब तक कि वह कोशिका चक्र अवरोध (Cell cycle arrest) तक नहीं पहुंच जाती। 
    • यह क्रिया गुणसूत्रीय टेलोमेर की लम्बाई पर निर्भर करती है। यह लम्बाई मानक कोशिकाओं में प्रत्येक कोशिका विभाजन के साथ घटती जाती है।  
      • टेलोमेर गुणसूत्र के अंत में पुनरावृत्तीय (Repetitive) DNA अनुक्रमों का क्षेत्र है। 
    • मनुष्यों के लिए “हेफ्लिक लिमिट” लगभग 125 वर्ष है। 
    • इसके अलावा, कोई भी आहार, व्यायाम या रोगों के खिलाफ आनुवंशिक सुधार मानव के जीवनकाल को नहीं बढ़ा सकता। 
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    बायोसर्फैक्टेंट्स (Biosurfactants)

    शोधकर्ता के अनुसार, कृषि-औद्योगिक अपशिष्ट से ग्रीन सब्सट्रेट का उपयोग करके बायोसर्फैक्टेंट का उत्पादन किया जा सकता है। 

    सर्फेकेंट्स के बारे में:

    • सर्फेक्टेंट (सर्फेस-एक्टिव एजेंट) एक ऐसा पदार्थ है, जो किसी तरल पदार्थ में मिलाने पर उसके सतही तनाव (पृष्ठीय तनाव) को कम कर देता है। इससे तरल पदार्थ के फैलने और भिगोने के गुणों में वृद्धि हो जाती है, उदाहरण- डिटर्जेंट। 

    बायोसर्फैक्टेंट्स के बारे में:

    • ये सक्रिय यौगिक हैं जो माइक्रोबियल कोशिका की सतह पर उत्पन्न या स्रावित होते हैं। ये सतह और इंटरफेसियल (अंतरा-पृष्ठीय) तनाव को कम करते हैं। 
    • ये बैक्टीरिया, यीस्ट और फिलामेंटस कवक द्वारा निर्मित किए जाते हैं। 
    • सिंथेटिक सर्फेक्टेंट की तुलना में माइक्रोबियल सर्फेक्टेंट के फायदे: 
      • ये कम विषाक्त और जैव-निम्नीकृत होते हैं।
      • ये अत्यधिक pH और लवणता पर सक्रिय रूप से काम करते है।

    बायो सर्फेक्टेंट के उपयोग:

    • पर्यावरणीय बायोरेमेडिएशन: तेल रिसाव को साफ करने, भारी धातु संदूषकों को हटाने और अपशिष्ट जल के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। 
    • कृषि: मृदा की गुणवत्ता में सुधार, पौधों की बीमारियों का प्रबंधन और मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की सांद्रता बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। 
    • फार्मास्युटिकल उद्योग: रोगाणुरोधी, चिपकने से रोकने, एंटीवायरल और कैंसर रोधी फार्मास्यूटिकल्स में उपयोग किया जाता है।

     

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