जिला न्यायालयों में बुनियादी ढांचे की स्थिति (State of Infrastructure in District Courts)
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने “इम्पेरिकल स्टडी टू इवेलुएट द डिलीवरी ऑफ जस्टिस थ्रू इंप्रूव्ड इंफ्रास्ट्रक्चर” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
- इसमें मुख्य प्रशासकों, न्यायिक अधिकारियों, अधिवक्ताओं और सहायक कर्मचारियों के सामने आने वाली अवसंरचना संबंधी समस्याओं के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों पर एक नज़र
- बुनियादी अवसंरचना: लगभग 37.7% न्यायिक अधिकारियों/ न्यायाधीशों ने बताया कि उनके पास कार्य करने के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं है।
- मानव संसाधन: न्यायपालिका में न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधीशों की भारी कमी है। साथ ही, मौजूदा न्यायिक अधिकारी प्रभावी कार्यभार प्रबंधन और मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल विकास की कमी से जूझ रहे हैं।
- डिजिटल अवसंरचना: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) और तालुक विधिक सेवा समिति (TLSC) के कार्यालयों का कम्प्यूटरीकरण नहीं किया गया है।
- इसके अलावा, डिजिटलीकरण प्रक्रिया की तकनीकी जटिलताओं से निपटने में अधिवक्ताओं की असमर्थता, ई-कोर्ट मिशन के कारण सहायक कर्मचारियों पर बढ़ता बोझ जैसी समस्याएं भी मौजूद हैं।
- जिला न्यायालयों से संबंधित अन्य मुद्दे: जिला न्यायालय के सभी विभागों के बीच सहयोग और समन्वय का अभाव है। साथ ही, न्यायालयों में सहायक कर्मचारियों की अस्थायी या कैजुअल नियुक्ति के कारण न्यायिक प्रक्रियाओं में आवश्यक सहयोग में कमी आ रही है।
रिपोर्ट में की गई मुख्य सिफारिशें
- जिला एवं तालुका स्तर पर एक स्वतंत्र IT विभाग की स्थापना की जानी चाहिए। यह न्यायालयों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इस विभाग को नवीनतम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से लैस किया जाना चाहिए। साथ ही, इस विभाग में पर्याप्त प्रशिक्षित कर्मचारी होने चाहिए, जो जिला और तालुका स्तर के न्यायालयों में प्रबंधन और सेवाएं प्रदान कर सकें।
- दायर मामलों को अंत तक इलेक्ट्रॉनिक रूप में बनाए रखने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए, ताकि न्यायिक अधिकारियों की दक्षता में वृद्धि हो सके।
- अलग-अलग न्यायाधीशों की अध्यक्षता में पृथक सिविल और आपराधिक न्यायालयों का गठन किया जाना चाहिए।

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अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail Under SC/ST Act)
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक का सख्त प्रावधान तब तक नहीं लागू होगा, जब तक कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध साबित न हो जाए।
- अधिनियम की धारा 18 में उपबंध किया गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान इस अधिनियम के तहत अपराध से जुड़े मामलों पर लागू नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के किसी सदस्य का अपमान करना SC/ ST अधिनियम के तहत तब तक अपराध नहीं है, जब तक कि आरोपी का इरादा जातिगत पहचान के आधार पर अपमान करने का न हो।
- केवल अस्पृश्यता या जातिगत श्रेष्ठता जैसी जड़ जमा चुकी सामाजिक कुप्रथाओं के कारण जानबूझकर किया गया अपमान या दी गई धमकी, इस अधिनियम के तहत जातिगत अपमान या धमकी माना जाएगा/ मानी जाएगी।
अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) के बारे में
- यह हाई कोर्ट या सत्र न्यायालय द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी से पहले जमानत पर रिहा करने का निर्देश है, जिसे किसी गैर-जमानती अपराध में गिरफ्तारी की आशंका है।
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 में अग्रिम जमानत से संबंधित प्रावधान किया गया है।
- नए आपराधिक कानून लागू होने के बाद, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (2023) की धारा 482 में अग्रिम जमानत के लिए प्रासंगिक प्रावधान शामिल किए गए हैं।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के बारे में
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- Anticipatory Bail
- SC/ST Act
- Prevention of Atrocities Act, 1989
- Section 438 of the CrPC
परिसीमन आयोग (Delimitation Commission)
किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि परिसीमन आयोग के किसी भी आदेश के स्पष्ट रूप से मनमाने होने और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं होने पर संवैधानिक न्यायालयों को उन आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार है।
- इससे पहले गुजरात हाई कोर्ट ने परिसीमन कार्य को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 329(a) का संज्ञान लेते हुए कहा था कि यह अनुच्छेद चुनाव संबंधी मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप को रोकता है।
परिसीमन के बारे में

- यह लोक सभा और विधान सभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाएं तय करने की प्रक्रिया है।
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार परिसीमन का कार्य ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से किया जाता है, जिसे संसद कानून के माध्यम से निर्धारित करे।
- परिसीमन कार्य की जिम्मेदारी उच्च-अधिकार प्राप्त संस्था को सौंपी जाती है। इस संस्था को परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग कहा जाता है।
- परिसीमन आयोग का गठन परिसीमन आयोग अधिनियम के तहत भारत का राष्ट्रपति करते हैं।
- भारत में परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार (1952, 1963, 1973 और 2002) किया गया है।
- परिसीमन कार्य की जिम्मेदारी उच्च-अधिकार प्राप्त संस्था को सौंपी जाती है। इस संस्था को परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग कहा जाता है।
- Tags :
- Delimitation
- Delimitation Commission
- Article 329(a)
- Article 82
बॉयलर विधेयक, 2024 को राज्य सभा में पेश किया गया (Boilers Bill, 2024 Introduced in Rajya Sabha)
यह विधेयक कानून बनने के बाद बॉयलर अधिनियम, 1923 की जगह लेगा। बॉयलर अधिनियम, 1923 को बॉयलर के विनियमन से संबंधित सभी तकनीकी पहलुओं में पूरे भारत में एकरूपता लाने के लिए लागू किया गया था।
- इससे पहले, इस कानून में भारतीय बॉयलर (संशोधन) अधिनियम, 2007 के द्वारा संशोधन किया गया था। इस संशोधन के जरिए स्वतंत्र थर्ड पार्टी निरीक्षण प्राधिकारियों द्वारा निरीक्षण एवं प्रमाणन की शुरुआत की गई थी।
- जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023 के अनुरूप कुछ प्रावधानों में उल्लेखित कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए भी इस कानून की समीक्षा की गई है।
बॉयलर विधेयक, 2024 के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- इसमें बॉयलर और बॉयलर के उपकरणों की वेल्डिंग के लिए वेल्डर को प्रमाण-पत्र देने वाली सक्षम अथॉरिटी को परिभाषित किया गया है। यह अथॉरिटी विनियमों द्वारा निर्धारित तरीकों के आधार पर मान्यता प्राप्त संस्था होगी।
- मुख्य निरीक्षक से अनुमति लिए बिना बॉयलर के भीतर या बॉयलर में कोई संरचनात्मक बदलाव करने, जोड़ने या नवीनीकरण करने पर व्यक्ति को दंड दिया जाएगा।
- दंड के रूप में दो साल तक की जेल की सजा या एक लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
- केंद्र सरकार को इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से तीन वर्ष के भीतर बॉयलर अधिनियम, 2024 के प्रावधानों के कार्यान्वयन में किसी भी कठिनाई को दूर करने का अधिकार होगा।
- केंद्र सरकार केंद्रीय बॉयलर बोर्ड का गठन करेगी। इस बोर्ड को बॉयलर और बॉयलर में लगने वाले उपकरणों के डिजाइन, निर्माण, स्थापना एवं उपयोग को विनियमित करने का कार्य सौंपा जाएगा।
बॉयलर विधेयक, 2024 के उद्देश्य
औद्योगिक बॉयलर का महत्त्व:
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- Tags :
- Boilers Bill
- Indian Boilers (Amendment) Act, 2007
- Boilers Act, 1923