जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना {State Action Plan on Climate Change (SAPCC)}
दिल्ली सरकार ‘जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना’ (SAPCC) में व्यापक बदलाव करेगी।
- यह कार्य योजना मूल रूप से 2019 में अपनाई गई थी। मौसम की चरम स्थितियों (जैसे इस साल अभूतपूर्व हीट वेव्स और अत्यधिक वर्षा) के कारण दिल्ली की इस कार्य योजना में संशोधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
‘जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना’ (SAPCC) के बारे में:
- राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश जलवायु अनुकूलन और शमन उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य-विशिष्ट मुद्दों का समाधान करने के लिए संबंधित SAPCC तैयार करते हैं।
- SAPCCs संदर्भ-विशिष्ट होती हैं, जो प्रत्येक राज्य की अलग-अलग पारिस्थितिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों पर विचार करती हैं।
- SAPCC जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अनुरूप हैं।
- NAPCC को 2008 में जारी किया गया था। यह भारत के जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति की रूपरेखा तैयार करती है।
- NAPCC के अंतर्गत 8 राष्ट्रीय मिशन हैं।
- वित्त-पोषण: यह जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के तहत किया जाता है।
- स्थिति: 34 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक अपना SAPCC तैयार कर लिया है।
कार्यान्वयन में बाधाएं

- SAPCC के टॉप-डाउन दृष्टिकोण और पहले से मौजूद जलवायु परिवर्तन रणनीतियों/ योजनाओं के कारण नेतृत्व और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी देखी गई है।
- कार्यान्वयन के स्तर पर स्पष्टता की कमी है। कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सौंपे गए कार्य विशिष्ट और स्पष्ट नहीं हैं।
- आवश्यक संसाधनों की कमी है, क्योंकि राज्य ने यह मान लिया था कि वित्त-पोषण केंद्र सरकार/ अन्यत्र स्रोतों से प्राप्त होगा।
आगे की राह
- अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त संभावित रूप से अनुकूलन की अतिरिक्त लागतों को कवर कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के लिए केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करने हेतु प्रत्येक प्रमुख विभाग के तहत नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए। इससे संस्थागत बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
- विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए और योजना को नियमित रूप से अपडेट भी करना चाहिए।
- Tags :
- SAPCC
- Climate Change Plan
सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक (Gross Environment Product Index)
उत्तराखंड सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक (GEPI) शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक (GEPI) के बारे में:
- यह मानवीय उपायों की वजह से होने वाले पारिस्थितिकी विकास का मूल्यांकन करने का एक नया तरीका है।
- GEPI के चार पिलर्स हैं: वायु, मृदा, पेड़ और जल।
- मूल्यांकन का तरीका:
- GEP सूचकांक = (वायु-GEPI सूचकांक + जल-GEPI सूचकांक + मृदा-GEPI सूचकांक + वन-GEPI सूचकांक)
- GEPI का महत्त्व:
- यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों पर मानवीय गतिविधियों के दबाव और उनके प्रभाव का आकलन करने में मदद करता है।
- यह इस बात भी गणना करता है कि हम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में क्या प्रयास कर रहे हैं।
- यह अर्थव्यवस्था और समग्र कल्याण में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के योगदान की भी गणना करता है।
- Tags :
- Gross Environment Product Index (GEPI)
- Ecological Development
विश्व बैंक ने “शिक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव” रिपोर्ट जारी की (World Bank Released “The Impact of Climate Change on Education” Report)
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसके कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। इससे उनकी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है और बच्चों द्वारा स्कूल छोड़ने (Dropout) की दर बढ़ती जा रही है।
रिपोर्ट के मुख्य बिन्दुओं पर एक नज़र:
- जलवायु नीति एजेंडा में शिक्षा की उपेक्षा की गई है: 2020 में जलवायु संबंधी आधिकारिक विकास सहायता का 1.3% से भी कम हिस्सा शिक्षा क्षेत्रक को प्राप्त हुआ था। इसके अलावा, औसतन तीन NDCs यानी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान में से एक से भी कम में शिक्षा क्षेत्रक का उल्लेख किया गया है।
- स्कूलों का बंद होना: 2005-2024 के दौरान, चरम मौसम की कम-से-कम 75% घटनाओं के बाद स्कूल बंद कर दिए गए थे। इससे 50 लाख या अधिक बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई थी।
- दुनिया भर में 99% से अधिक बच्चे कम-से-कम एक प्रमुख जलवायु और पर्यावरणीय खतरे, आपदाओं आदि का सामना करते हैं।
- बढ़ते तापमान का लर्निंग आउटकम पर नकारात्मक प्रभाव: परीक्षा के दिनों में आउटडोर तापमान में केवल 1°C की वृद्धि से भी परीक्षा स्कोर में भारी गिरावट आ सकती है।
- उदाहरण के लिए- ब्राजील की ऐसी 10% नगरपालिकाओं में, जहां बहुत अधिक तापमान रहता है, बढ़ती गर्मी के कारण छात्रों का प्रतिवर्ष लगभग 1% लर्निंग नुकसान होता है।
- बढ़ते खाद्य संकट और आर्थिक तंगी के कारण स्कूलों में नामांकन कम होने का खतरा उत्पन्न हो गया है: जलवायु परिवर्तन के कारण 2080 तक 170 मिलियन लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। इससे कई छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी।
- लड़कियों की पढाई को विशेष नुकसान: जलवायु संबंधी घटनाएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कम-से-कम 4 मिलियन लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने से रोक सकती हैं।
शिक्षा प्रणाली को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने हेतु उपाय
|
- Tags :
- Climate Change
- Education
जलवायु वित्त कार्रवाई निधि {Climate Finance Action Fund (CFAF)}
अज़रबैजान ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन COP-29 के लिए पहलों के पैकेज में रूप में “जलवायु वित्त कार्रवाई निधि” शुरू की है।
जलवायु वित्त कार्रवाई निधि (CFAF) के बारे में
- मुख्यालय: बाकू (अज़रबैजान)।
- उद्देश्य:
- यह निधि विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं की सहायता करेगी;
- ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDCs) के अगले चरण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी और
- प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों से निपटेगी।
- CFAF को जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों तथा तेल, गैस और कोयले की कंपनियों से वित्त-पोषण प्राप्त होगा।
- CFAF द्वारा 1 बिलियन डॉलर की आरंभिक राशि जुटाने के बाद तथा इसमें योगदान देने वाले 10 देशों द्वारा शेयरधारक के रूप में प्रतिबद्धता जताने के बाद यह निधि लागू हो जाएगी।
- Tags :
- Climate Finance
- Climate Finance Action Fund (CFAF)
EU नेचर रिस्टोरेशन लॉ (EU Nature Restoration Law)
हाल ही में, EU नेचर रिस्टोरेशन लॉ लागू हो गया है।
इस कानून के बारे में
- प्रकृति की पुनर्बहाली के लिए यह यूरोपीय संघ का पहला महाद्वीप-व्यापी कानून है।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य 2030 तक यूरोपीय संघ के कम-से-कम 20% भूमि और समुद्री क्षेत्रों को रिकवर करना है। साथ ही, अंततः पुनर्स्थापन की आवश्यकता वाले सभी पारिस्थितिकी-तंत्रों को 2050 तक रिकवर करना है।
- कानून के तहत EU के सदस्य देशों को 1 सितंबर 2026 तक नेशनल रिस्टोरेशन प्लान तैयार करने की आवश्यकता होगी।
- कानून में ‘नेचुरा 2000 नेटवर्क’ क्षेत्रों के संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है।
- नेचुरा 2000 यूरोपीय संघ में संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है।
- कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य:
- 2030 तक 30% स्थलीय, तटीय, ताजा जल, शुष्क पीटलैंड्स और समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र को पुनर्बहाल करना।
- नदियों को 25,000 किलोमीटर तक मुक्त-प्रवाह वाली स्थिति में पुनर्बहाल करना।
- 2030 तक 3 बिलियन अतिरिक्त वृक्ष लगाना।
- Tags :
- Nature Restoration
एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन (Aquatic Deoxygenation)
विशेषज्ञों ने "एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन (AD) को एक नई ग्रहीय सीमा के रूप में मान्यता देने" का मत प्रकट किया है।
- एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन वास्तव में समुद्री और तटीय जल में ऑक्सीजन की मात्रा में समग्र गिरावट है। ऐसा तब होता है, जब ऑक्सीजन की खपत ऑक्सीजन की पुनः पूर्ति या आपूर्ति से अधिक हो जाती है।
एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन की स्थिति
- महासागर: 1960 के दशक से लेकर अब तक समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा में लगभग 2% की कमी आई है।
- तटीय जल में 500 से अधिक ऐसी जगहें चिन्हित की गई हैं, जहां ऑक्सीजन की मात्रा कम है।
- अन्य जल निकाय: 1980 के बाद से झीलों और जलाशयों में ऑक्सीजन की मात्रा में क्रमशः 5.5% तथा 18.6% की कमी आई है।
एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन को ग्रहीय सीमा (Planetary Boundary) के रूप में मानने के लिए जिम्मेदार कारण
- ग्रीन हाउस गैस (GHG) के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग: तापमान में वृद्धि से जल में ऑक्सीजन की घुलनशीलता कम हो जाती है।
- इसके अलावा, समुद्र की गर्म सतह वाली परतें ऑक्सीजन को समुद्र की गहराई में जाने से रोकती हैं। इससे गहरे समुद्र के जल में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है।
- सुपोषण (Eutrophication): किसी जल निकाय में मानवजनित स्रोतों (जैसे कृषि) से पोषक तत्वों के अत्यधिक जमाव से शैवालों का विकास होता है और उसमें ऑक्सीजन की खपत बढ़ जाती है।
पारिस्थितिकी-तंत्र पर प्रभाव
- समुद्र में डेड जोन्स की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है और महासागरीय हाइपोक्सिया प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है।
- हाइपोक्सिया प्रभाव में समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाती है।
- मात्स्यिकी के लिए पर्यावास संपीडन (Habitat compression) की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे बायोमास व प्रजातियों को नुकसान हो सकता है। पर्यावास संपीडन का अर्थ उपयुक्त अधिवास की गुणवत्ता और विस्तार में कमी आना है।
- एक्वेटिक डीऑक्सीजनेशन पृथ्वी की जलवायु के विनियमन और मॉड्यूलेशन को प्रभावित करता है। ऐसा माइक्रोबायोटिक प्रक्रियाओं द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन के कारण होता है।
- शिकार की कमी और महासागर के अम्लीकरण जैसे अन्य कारकों के चलते समुद्री खाद्य जाल में परिवर्तन हो रहा है।
ग्रहीय सीमाएं (Planetary boundaries) क्या हैं?
|
- Tags :
- Global Warming
- Aquatic Deoxygenation
- Dead Zones
रामसर सूची में 3 और भारतीय आर्द्रभूमियां शामिल की गई (India’s Three More Wetlands Added To Ramsar Sites List)
भारत की तीन और आर्द्रभूमियां रामसर साइट्स की सूची में शामिल की गईं।
- ये तीन नई आर्द्रभूमियां हैं:
आर्द्रभूमि | विशेषताएं |
नंजरायण पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु)
|
|
कज़ुवेली पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु) |
|
तवा जलाशय (मध्य प्रदेश) |
|
आर्द्रभूमियों के बारे में:
- ये जल के समृद्ध भू-क्षेत्र होते हैं।
- रामसर साइट में शामिल होने के लिए किसी आर्द्रभूमि को निर्धारित 9 मानदंडों में से कम-से-कम 1 को पूरा करना होता है। इन मानदडों में नियमित रूप से 20,000 या उससे अधिक जलीय पक्षियों को आश्रय प्रदान करना, या जैविक विविधता का संरक्षण करना, आदि शामिल हैं।
- वर्तमान में, भारत में रामसर साइट्स की कुल संख्या 85 हो गई है। रामसर साइट्स की सर्वाधिक संख्या तमिलनाडु में हैं।
- Tags :
- Ramsar Sites
- Wetland
- Kazhuveli Bird Sanctuary
- Tawa Reservoir
- Nanjarayan Bird Sanctuary
Articles Sources
"द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स मैंग्रोव्स 2024" रिपोर्ट (“The State of The World’s Mangroves 2024” Report)
यह रिपोर्ट विश्व मैंग्रोव दिवस पर जारी की गई है। ध्यातव्य है कि प्रतिवर्ष 26 जुलाई को विश्व मैंग्रोव दिवस मनाया जाता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- विश्व के लगभग एक तिहाई मैंग्रोव वन दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाते हैं। इसके बाद पश्चिम और मध्य अफ्रीका का स्थान आता है।
- अकेले इंडोनेशिया में विश्व के 21% मैंग्रोव वन मौजूद हैं।
- मैंग्रोव पारितंत्र पर IUCN रेड लिस्ट के अनुसार, विश्व के आधे मैंग्रोव क्षेत्र या प्रोविंस वर्तमान में संकटग्रस्त हैं।
- IUCN के अनुसार लक्षद्वीप समूह और तमिलनाडु के तटीय मैंग्रोव क्रिटिकली एंडेंजर्ड श्रेणी में हैं।
- मैंग्रोव को नुकसान पहुंचाने वाले कारक
- जलवायु परिवर्तन सबसे बड़े खतरों में शामिल है। जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है और चक्रवाती तूफानों की प्रबलता बढ़ रही है। ये सभी मैंग्रोव वनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
- औद्योगिक उपयोग के लिए झींगा जलीय कृषि (Shrimp aquaculture) को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस वजह से आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं गुजरात के मैंग्रोव वनों को नुकसान पहुंच रहा है।
- मैंग्रोव वनों को काटकर उस क्षेत्र को ऑयल पाम के बागानों और चावल के खेतों में बदला जा रहा है। इन वजहों से 2000-2020 के बीच लगभग 43% मैंग्रोव वन नष्ट हो गए हैं।
नोट: मैंग्रोव के बारे में और अधिक जानने के लिए, मई, 2024 मासिक समसामयिकी का आर्टिकल 5.3 देखें।
- Tags :
- Mangroves
- World Mangrove Day
- MISHTI
- SAIME
मीथेनोट्रोफ्स (Methanotrophs)
आघारकर अनुसंधान संस्थान ने भारत में मेथिलोकुमिस ओराइजी नामक स्वदेशी मीथेनोट्रोफ़्स प्रजाति का पता लगाया है।
- इसे ‘मीथेन इटिंग क्यूकम्बर’ नाम दिया गया है।
मीथेनोट्रोफ़्स (मीथेन का उपभोग करने वाले बैक्टीरिया) के बारे में:
- ये बैक्टीरिया मीथेन को ऑक्सीकृत करते हैं और अपना बायोमास हासिल करते हैं।
- पर्यावास: आर्द्रभूमि, धान के खेत, तालाब और अन्य जल निकाय।
- बायोफिल्टरिंग: ये बैक्टीरिया अवायवीय दशाओं में उत्पादित मीथेन को ऑक्सीकृत कर सकते हैं।
- जब मिट्टी में ऑक्सीजन मौजूद होती है, तो वायुमंडलीय मीथेन भी ऑक्सीकृत हो जाती है।
- ये बैक्टीरिया मीथेन को प्राकृतिक तरीक़े से कम करने वाले एजेंट की तरह काम करते हैं।
- महत्त्व: मिट्टी और वायुमंडल में मीथेन की मात्रा को कम करके ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में सहायक।
- Tags :
- Methanotrophs
- Methane Emissions
- Biofiltering
Articles Sources
सेरोपेगिया शिवरायियाना (Ceropegia Shivrayiana)
कोल्हापुर के विशालगढ़ क्षेत्र में सेरोपेगिया जीनस का फूल देने वाला एक नया पादप खोजा गया है। इसे सेरोपेगिया शिवरायियाना नाम दिया गया है।
- इस पादप का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखा गया है।
सेरोपेगिया शिवरायियाना के बारे में
- यह भारत में पाया जाने वाला एक प्रकार का दुर्लभ पादप है। इस पादप में अनोखे और ट्यूबनुमा फूल खिलते हैं, जो पतंगों (Moths) को आकर्षित करते हैं।
- प्राप्ति स्थल: चट्टानी जगहों पर पाए जाते हैं। ये पादप कम पोषक तत्वों वाली मिट्टी में भी उग सकते हैं।
- पादप फैमिली: यह एस्क्लेपिएडेसी फैमिली का सदस्य है। इस फैमिली में कई औषधीय पादप शामिल हैं।
- समानता: यह पादप प्रजाति सेरोपेगिया लावी हुकर एफ. के समान है। हालांकि, नई प्रजाति में कुछ विशेष गुण मौजूद हैं- जैसे-आस-पास की संरचनाओं पर लता की तरह फैल जाना, और रोएंदार डंठल पैदा करना।
- खतरा: जहां ये पाए जाते हैं, उन जगहों का अतिक्रमण।
- Tags :
- Biodiversity
- Ceropegia Shivrayiana
- Exotic Species
नीलकुरिंजी (Neelakurinji)
IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) ने नीलकुरिंजी को संकटग्रस्त प्रजातियों की आधिकारिक लाल सूची में शामिल किया है। इसे लाल सूची में वल्नरेबल श्रेणी में सम्मिलित किया गया है।
नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलैंथेस कुंतियाना)
- इसके बारे में: यह एक झाड़ी है। इस पर हर 12 साल में एक बार फूल खिलते है। इसकी प्रकृति सेमलपेरस (Semelparous) है, यानी यह पादप अपने जीवन काल में सिर्फ एक बार प्रजनन करता है।
- अवस्थिति: यह पादप पश्चिमी घाट के शोला घास के मैदान (नीलगिरि पहाड़ियां, पलानी पहाड़ियां और मन्नार की एराविकुलम पहाड़ियां) तथा पूर्वी घाट में शेवराय पहाड़ियों में पाया जाता है।
- नीलगिरि पहाड़ियों का नाम भी कुरिन्जी के नीले रंग से उत्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नीला पर्वत’ है।
- प्रमुख खतरे: चाय और नरम लकड़ी के वृक्ष बागानों तथा शहरों का विस्तार नीलकुरिंजी के पर्यावास को सीमित कर रहा है। इसके अलावा यूकेलिप्टस, ब्लैक वेटल जैसी विदेशी प्रजातियां भी नीलकुरिंजी को नुकसान पहुंचा रही है ।
- Tags :
- IUCN
- Western Ghats
- Neelakurinji
एशियाई आपदा तैयारी केंद्र {Asian Disaster Preparedness Centre (ADPC)}
भारत 2024-25 के लिए ADPC की अध्यक्षता करेगा। भारत से पहले इसकी अध्यक्षता पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कर रहा था।
ADPC के बारे में
- यह स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका कार्य एशिया और प्रशांत क्षेत्र में आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं जलवायु लचीलेपन के निर्माण में सहयोग करना तथा लागू करना है।
- भारत और इसके 8 पड़ोसी देशों ने मिलकर ADPC की स्थापना की थी।
- इसकी स्थापना 1986 में बैंकॉक, थाईलैंड में एक क्षेत्रीय आपदा तैयारी केंद्र (DMC) के रूप में की गई थी।
- Tags :
- Disaster Management
- Disaster Resilience
Articles Sources
एकीकृत अग्नि प्रबंधन (IFM) स्वैच्छिक दिशा-निर्देश अपडेट {Integrated Fire Management (IFM) Voluntary Guidelines Updates}
दो दशकों के बाद, FAO ने जंगल की आग के जोखिमों के प्रबंधन के लिए अपने एकीकृत अग्नि प्रबंधन (IFM) स्वैच्छिक दिशा-निर्देशों को अपडेट किया है।
- ये नए दिशा-निर्देश ग्लोबल फायर मैनेजमेंट हब (GFMH) ने तैयार किए हैं। इस हब को 2023 में FAO और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने लॉन्च किया था।
एकीकृत अग्नि प्रबंधन (IFM) के प्रमुख सिद्धांत

- आर्थिक: एक दक्ष IFM कार्यक्रम लागू करके आग के उपयोग से (जैसे झूम कृषि में) समुदायों को प्राप्त होने वाले लाभ को अधिकतम करना और जंगल की आग से होने वाले नुकसान को कम करना।
- पर्यावरण: आग लगने की घटनाओं को रोकने या उससे बचाव संबंधी योजना निर्माण एवं प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन, वनस्पति और जंगल की आग के पैटर्न के बीच के संबंधों पर विचार करना।
- समानता: महिलाओं सहित सभी समुदायों व हितधारकों को शामिल करके आग के प्रभावों पर विचार करना। ऐसा इस कारण, क्योंकि जंगल की आग महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित कर सकती है। वनों के निकट रहने वाले समुदायों की महिलाओं पर वनोपज इकट्ठा करने व कृषि कार्य करने की जिम्मेदारी होती है।
- मानव स्वास्थ्य: जंगल की आग के खतरे का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए आग लगने का शीघ्र पता लगाने और लोगों को सचेत करने के लिये चेतावनी प्रणालियों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, आग लगने की गंभीरता और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की रेटिंग (ग्रेडिंग) के साथ विश्वसनीय मौसम पूर्वानुमानों को अपनाने की जरूरत है।
एकीकृत अग्नि प्रबंधन (IFM) की मुख्य रणनीतिक कार्रवाई
- एकीकृत अग्नि प्रबंधन: जंगल की आग के लगने से पहले, उसके दौरान और बाद में कार्रवाई करना। साथ ही, आग को बुझाते समय और उपकरणों का उपयोग करते समय यह सावधानी बरतना कि संबंधित क्षेत्र में किसी आक्रामक प्रजाति का प्रवेश न हो।
- नियोजित आग: यह जंगल की आग की रोकथाम का एक घटक है। इसमें वनाग्नि पर निर्भर पारिस्थितिक-तंत्र में तय मापदंडों के तहत निम्न स्तर पर आगजनी की अनुमति दी जाती है।
- अग्नि जागरूकता कार्यक्रम: ऐसे कार्यक्रम तैयार करना चाहिए जो कृषि, वानिकी और पारंपरिक उद्देश्यों के लिए आग के उपयोग सहित सांस्कृतिक तथा सामाजिक मानदंडों का भी सम्मान करें।
- ज्ञान का आदान-प्रदान: नीतियों, विनियमों और कार्य-पद्धतियों में सुधार के लिए वैज्ञानिकों, देशज लोगों तथा स्थानीय विशेषज्ञों के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए।
- Tags :
- FAO
- Integrated Fire Management
- Global Fire Management Hub (GFMH)
ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP) के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (SOP) लॉन्च की गई {SOP For Green Tug Transition Program (GTTP) Launched}
केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री ने ‘ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP)’ के लिए SOP का आधिकारिक तौर पर शुभारंभ किया। यह ऐतिहासिक पहल पारंपरिक ईंधन आधारित हार्बर टग से हरित, अधिक टिकाऊ विकल्पों की ओर परिवर्तन को बढ़ावा देगी।
- टग एक विशेष श्रेणी की नाव होती है, जो बड़े जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश करने या प्रस्थान करने में मदद करती है।
GTTP के बारे में
- GTTP की घोषणा 2023 में की गई थी। यह ‘पंच कर्म संकल्प’ के तहत एक प्रमुख पहल है। GTTP को भारत के बड़े बंदरगाहों में संचालित पारंपरिक ईंधन आधारित हार्बर टग के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और उन्हें स्वच्छ एवं अधिक टिकाऊ वैकल्पिक ईंधन से संचालित ग्रीन टग से बदलने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- ‘पंच कर्म संकल्प’ में 5 प्रमुख घोषणाएं शामिल हैं। इन घोषणाओं में ग्रीन शिपिंग को बढ़ावा देने के लिए 30% वित्तीय सहायता; नदी और समुद्री परिभ्रमण की सुविधा व निगरानी के लिए सिंगल विंडो पोर्टल आदि शामिल हैं।
ग्रीन शिपिंग की आवश्यकता क्यों है?
- शिपिंग यानी पोत परिवहन क्षेत्रक की विश्व के CO2 उत्सर्जन में लगभग 3% हिस्सेदारी है।
- भारत के मामले में समुद्री परिवहन (सैन्य अभियानों को छोड़कर) से होने वाले ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का समग्र परिवहन क्षेत्रक से होने वाले GHG उत्सर्जन में 1% का योगदान है।
शिपिंग के विकार्बनीकरण में चुनौतियां
- जीवाश्म ईंधन पर अधिक निर्भरता: अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग क्षेत्रक की ऊर्जा की लगभग 99% मांग जीवाश्म ईंधन से पूरी होती है।
- ट्रांजिशन की लागत: उदाहरण के लिए- LNG ईंधन के उपयोग हेतु मौजूदा अवसंरचना में व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी। ऐसा इस कारण, क्योंकि इसके लिए क्रायोजेनिक तापमान पर ईंधन के भंडारण की आवश्यकता होती है।
- अन्य: अपर्याप्त बंदरगाह सुविधाओं के कारण गैर-किफायती जलीय मार्ग को अपनाना पड़ता है और ईंधन की अधिक खपत होती है; अंतर्राष्ट्रीय जल में विनियमों को लागू करने में कठिनाई आदि।

- Tags :
- Green Tug Transition Program
- Panch Karma Sankalp
Articles Sources
पोलर कपल्ड एनालिसिस एंड प्रेडिक्शन फॉर सर्विसेज {Polar Coupled Analysis and Prediction for Services (PCAPS)}
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने आर्कटिक और अंटार्कटिका में मौसम पूर्वानुमान में सुधार के लिए PCAPS परियोजना शुरू की है।
PCAPS के बारे में
- उद्देश्य: आर्कटिक और अंटार्कटिका के मौसम, जल, बर्फ एवं जलवायु के बारे में जानकारी को बढ़ाना तथा जानकारी की गुणवत्ता में सुधार करना।
- यह प्रेक्षण प्रणाली और अर्थ सिस्टम मॉडल विकसित करने तथा बेहतर पूर्वानुमान सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद करेगा।
- PCAPS, विश्व मौसम विज्ञान संगठन के विश्व मौसम अनुसंधान कार्यक्रम (WWRP) का हिस्सा है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के WWRP के बारे में
- इसके निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं:
- ‘साइंस फॉर सर्विस’ वैल्यू सायकल अप्रोच के माध्यम से पृथ्वी प्रणाली पर शोध को आगे बढ़ाना;
- चरम मौसम के प्रभावों में निरंतर बदलावों को ध्यान में रखते हुए चेतावनी प्रक्रिया में सुधार करना।
- Tags :
- Polar Coupled Analysis and Prediction For Services
- World Meteorological Organization
- World Weather Research Programme
वायुमंडलीय नदियां (Atmospheric rivers)
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडलीय नदियों की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि हो रही है। यह वृद्धि अत्यधिक वर्षा की घटनाओं का कारण बन रही है और मौसम के पैटर्न को खराब कर रही है।
वायुमंडलीय नदियां (Atmospheric rivers)
- वायुमंडलीय नदियों को ‘फ्लाइंग रिवर्स’ भी कहा जाता है। ये वायुमंडल में अपेक्षाकृत लंबे व संकीर्ण क्षेत्र होते हैं, जो अधिकांश जल वाष्प को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बाहर ले जाते हैं।
- एक औसत वायुमंडलीय नदी लगभग 2,000 कि.मी. लंबी, 500 कि.मी. चौड़ी और लगभग 3 कि.मी. गहरी होती है।
- वायुमंडलीय नदियां बहिरुष्णकटिबंधीय चक्रवात (Extratropical Cyclones) प्रणाली का हिस्सा हैं। ये चक्रवात उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर ताप और आर्द्रता का परिवहन करते हैं।
- वायुमंडलीय नदियां आमतौर पर बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के शीत वाताग्र के आगे निचले वायुमंडल में प्रबल वेग से चलने वाली जेट स्ट्रीम के क्षेत्र में मौजूद होती हैं।
- इन्हें पृथ्वी पर ताजे जल के सबसे बड़े परिवहन तंत्र के रूप में माना जाता है। ये उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों तक 90% आर्द्रता के स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार हैं।
- हालांकि, कई वायुमंडलीय नदियां कमजोर तंत्र हैं, जबकि कुछ बड़ी और मजबूत वायुमंडलीय नदियां अत्यधिक वर्षा एवं बाढ़ का कारण बन सकती हैं, जिनसे भूस्खलन और विनाशकारी क्षति हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन और वायुमंडलीय नदियां
- तापमान में वृद्धि के साथ, वायुमंडल की आर्द्रता धारण क्षमता में वृद्धि हो जाती है। इसके कारण वर्षा की तीव्रता भी बढ़ जाती है।
- सन 2100 तक, वायुमंडलीय नदियों के वैश्विक स्तर पर और अधिक गहन होने का अनुमान है। साथ ही, ये बहुत अधिक चौड़ी व लंबी भी होंगी।
- गहन वायुमंडलीय नदियां वर्षा-निर्भर क्षेत्रों से वर्षा को कम या लगभग समाप्त करके वहां सूखे जैसी स्थिति भी पैदा कर सकती हैं।
भारत पर वायुमंडलीय नदियों का प्रभाव
|
- Tags :
- Atmospheric Rivers
- flying rivers
Articles Sources
हिंद महासागर की तीन संरचनाओं के नाम भारत के प्रस्ताव पर अशोक, चंद्रगुप्त और कल्पतरु रखा गया (Indian Ocean Structures Named Ashok, Chandragupt and Kalpataru)
हिंद महासागर में एक सीमाउंट और दो रिज के नाम क्रमश: अशोक सीमाउंट, चंद्रगुप्त रिज और कल्पतरु रिज रखा गया है। इन नामों को इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक आर्गेनाइजेशन (IHO) और यूनेस्को के अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC) ने मंजूरी दे दी है।
- ये संरचनाएं हिंद महासागर में दक्षिण-पश्चिम भारतीय रिज के समीप स्थित हैं।
- इनकी खोज राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) ने की थी।
समुद्र के भीतर की संरचनाओं का नामकरण

- प्रादेशिक समुद्र के बाहर:
- व्यक्ति और एजेंसियां समुद्र के भीतर की अनाम संरचनाओं के लिए नाम प्रस्तावित कर सकते हैं। यह प्रस्ताव IHO के 2013 के दिशा-निर्देशों ‘स्टैंडर्डाइजेशन ऑफ अंडरसी फीचर नेम’ का पालन करते हुए किया जा सकता है।
- किसी संरचना का नामकरण करने से पहले उसकी विशेषता, विस्तार और अवस्थिति की पहचान की जानी चाहिए।
- IHO की ‘सब-कमेटी ऑन अंडरसी फीचर नेम्स (SCUFN)’ प्रस्तावों की समीक्षा करती है।
- प्रादेशिक समुद्र के भीतर: अपने प्रादेशिक समुद्र में संरचनाओं का नाम प्रस्तावित करने वाले राष्ट्रीय प्राधिकारियों को IHO के 2013 के दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है।
IHO और IOC के बारे में
- इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गेनाइजेशन (IHO) के बारे में
- इसे 1921 में स्थापित किया गया था।
- यह एक अंतर-सरकारी निकाय है। भारत भी इसका सदस्य है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- हाइड्रोग्राफी और नॉटिकल चार्टिंग के संबंध में इसे सक्षम अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकरण के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (IOC) के बारे में
- इसे 1961 में स्थापित किया गया था।
- यह समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
- GEBCO: जनरल बैथिमेट्रिक चार्ट ऑफ द ओशन्स (GEBCO) बैथिमेट्रिक डेटा एकत्र करने और महासागरों का मानचित्रण के लिए IHO व IOC की संयुक्त परियोजना है।
- GEBCO और SCUFN नामों, सामान्य संरचना प्रकारों आदि का एक डिजिटल गजेटियर बनाए रखते हैं और उन्हें उपलब्ध कराते हैं।
- Tags :
- Indian Ocean Structures
- Ashok Seamount
- Chandragupt Ridge
- Kalpataru Ridge
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की मेंटल परत से चट्टान का सैंपल प्राप्त किया (Deepest Rock Sample From Earth’s Mantle Obtained)
वैज्ञानिकों ने अमेरिकी पोत जोइड्स रेज़ोल्यूशन का उपयोग किया। उन्होंने अटलांटिस मैसिफ से लगभग 1.2 किलोमीटर गहराई में ड्रिलिंग की है। इससे पहले वैज्ञानिक 201 मीटर गहराई तक ड्रिलिंग करने में सफल रहे थे।

- मेंटल परत सिलिकेट चट्टानों से निर्मित है। यह परत पृथ्वी के आयतन की 80% है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना में यह मध्य परत है। यह सबसे ऊपरी परत “भूपर्पटी (क्रस्ट) और सबसे निचली परत ‘कोर’ के बीच स्थित है (इन्फोग्राफिक देखिए)।
- मेंटल परत की चट्टानों तक पहुंचना आमतौर पर कठिन होता है। हालांकि, महासागरीय नितल में कुछ जगहों पर इन चट्टानों तक पहुंचा जा सकता है, विशेषकर जहां पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें धीरे-धीरे अलग होती हैं। एक ऐसी ही जगह अटलांटिस मैसिफ है।
- अटलांटिस मैसिफ मध्य-अटलांटिक रिज के पास जल के नीचे समुद्री टीला (underwater mountain) है।
मैंटल ड्रिलिंग के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- प्रोजेक्ट: यह ड्रिलिंग अंतर्राष्ट्रीय महासागर खोज कार्यक्रम के तहत की गई थी। भारत इसका एक फंडिंग भागीदार है।
- ड्रिलिंग स्थान: यह ड्रिलिंग अटलांटिस मैसिफ के दक्षिणी किनारे पर, लॉस्ट सिटी हाइड्रोथर्मल वेंट फील्ड के पास की गई थी।
- प्राप्त सैंपल: नए रॉक सैंपल में लगभग 70% से अधिक हिस्सा चट्टान है।
- ड्रिलिंग का महत्त्व: प्राप्त रॉक सैंपल से हमें निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्राप्त होगी:
- ऊपरी मेंटल की संरचना,
- अलग-अलग तापमानों पर इन चट्टानों और समुद्री जल के बीच रासायनिक अभिक्रियाएं आदि।
- वैज्ञानिकों के अनुसार इन रासायनिक अभिक्रियाओं ने अरबों साल पहले पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति में भूमिका निभाई होगी।
- इस प्रकार, यह उपलब्धि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में भी जानकारी प्रदान करेगी।
- इसके अलावा, पिछली बार की ड्रिलिंग इतनी गहरी नहीं थी। इस वजह से अधिक तापमान में रहने वाले बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवों की खोज नहीं की जा सकी थी। अब अधिक गहराई तक ड्रिलिंग से उन बैक्टीरिया के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है जो शायद बहुत नीचे रहते हों।
- Tags :
- Deepest Rock Sample
- International Ocean Discovery Program