सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 156 फिक्स्ड-डोज़ कॉम्बिनेशन (FDC) दवाओं के विनिर्माण, बिक्री या वितरण पर प्रतिबंध लगाया है।
अन्य संबंधित तथ्य
- स्वास्थ्य मंत्रालय ने FDCs पर यह प्रतिबंध औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत प्रदत्त शक्तियों के आधार पर लगाया है।
- इससे पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2023 में 14 फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन दवाइयों पर प्रतिबंध लगाया था।
- प्रतिबंधित FDCs से मानव स्वास्थ्य को खतरा है, जबकि इन दवाओं के सुरक्षित विकल्प उपलब्ध हैं।
- केंद्र सरकार और औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (DTAB) द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की है कि प्रतिबंधित FDCs में शामिल सामग्री का कोई चिकित्सीय औचित्य नहीं है।
- प्रतिबंधित FDCs में एंटीबायोटिक्स, दर्द निवारक (Painkillers) और मल्टीविटामिन शामिल हैं। जैसे- एसिक्लोफेनाक और पेरासिटामोल।
फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDCs) दवाइयां क्या होती हैं?
- परिभाषा: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के अनुसार, दो या दो से अधिक सक्रिय औषध सामग्रियों (APIs) को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर बनाई गई एकल खुराक वाली दवा को फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन कहा जाता है। कभी-कभी इन्हें 'कॉकटेल ड्रग्स' भी कहा जाता है।
- API वास्तव में किसी विनिर्मित दवा (जैसे टेबलेट, कैप्सूल, क्रीम, इंजेक्टेबल) का जैविक रूप से सक्रिय घटक होता है, जो बीमारी के इलाज में वांछित प्रभाव उत्पन्न करता है।
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अनुसार, FDCs को नई दवाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और इसके लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) से अनुमोदन लेना होता है।
- अधिकांश FDCs का उपयोग खांसी, जुकाम और बुखार की दवा; एंटीमाइक्रोबियल्स/ रोगाणुरोधी; विटामिन और मिनरल्स आदि के लिए किया जाता है।
FDCs के उपयोग के पक्ष में तर्क | FDCs से संबंधित मुद्दे |
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भारत में FDCs के विनियमन से संबंधित समस्याएं/ मुद्दे
- दवाओं को रिफॉर्म्युलेट करना: दवाओं से जुड़ी मूल्य नियंत्रण व्यवस्था से बचने के लिए कुछ कंपनियां अलग-अलग दवाओं को फिर से मिलाकर एक FDC (फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन) बना देती हैं।
- गुणवत्ता से समझौता: नए FDCs को 4 साल बाद राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों (SLAs) से लाइसेंस प्राप्त करके अन्य विनिर्माता बना सकते हैं, और इस दौरान फार्माकोलॉजिकल अध्ययन से जुड़ी लापरवाहियों की सही से जांच नहीं की जाती। इससे दवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है।
- अनुमोदन प्रक्रिया: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 59वीं रिपोर्ट में बताया कि कुछ राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (SLAs) केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की पूर्व मंजूरी के बिना FDCs के लिए विनिर्माण लाइसेंस जारी कर रहे हैं।
- अन्य मुद्दे:
- भारत में दवाओं के रिएक्शन के प्रभाव की रिपोर्ट करने वाली प्रणाली काफी खराब है।
- डेटा का अभाव: भारत के पास वर्तमान में बाजार में उपलब्ध FDCs, उनकी बिक्री का टर्नओवर और उपयोग के पैटर्न का सटीक डेटाबेस नहीं है।
FDCs के विनियमन के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम
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FDCs के विनियमन में सुधार के लिए दिए गए सुझाव
- आवधिक सर्वेक्षण की आवश्यकता: दवा विनिर्माताओं और थोक एवं खुदरा दुकानों का समय-समय पर सर्वेक्षण किया जा सकता है, ताकि इस क्षेत्रक में मौजूदा समस्याओं का पता लगाया जा सके।
- राष्ट्रीय औषधि प्राधिकरण (NDA): इस निकाय की स्थापना संसद के एक अधिनियम द्वारा दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए की जानी चाहिए। जैसे- हाथी समिति और 1994 की औषधि नीति में परिकल्पित किया गया है।
- कठोर दंडात्मक कार्रवाई: माशेलकर समिति ने सुझाव दिया है कि दवा से संबंधित भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जो दूसरों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करेगी। यह समिति "नकली दवाओं की समस्या सहित औषधि विनियामक मुद्दों की व्यापक जांच" हेतु गठित की गई थी।
- इस समिति द्वारा नकली दवा के विनिर्माण या बिक्री के लिए दंड को आजीवन कारावास से मृत्यु दंड में बदलने की सिफारिश की गई है।
- बहु-चरणीय दृष्टिकोण: भारत में FDC के अतार्किक उपयोग को नियंत्रित करने के लिए, सभी हितधारकों (उपभोक्ताओं, चिकित्सकों, विनियामक प्राधिकरण, उद्योग और अकादमिक जगत) को शामिल करते हुए बहु-चरणीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।