सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट का शीर्षक 'सी-लेवल राइज़ (SLR) सेनेरिओज़ एंड इनंडेशन मैप्स फॉर सेलेक्टेड इंडियन कोस्टल सिटीज' है।
इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

- समुद्र जलस्तर में अधिकतम वृद्धि: पिछले तीन दशकों (1991-2020) में अधिकतम SLR मुंबई स्टेशन (4.44 सेमी) पर देखी गई है। इसके बाद हल्दिया (2.72 से.मी.), विशाखापत्तनम (2.38 से.मी.) आदि का स्थान है।
- 2040 तक समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण जलमग्नता: 2040 तक समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण मुंबई, यनम और तूथुकुड़ी में 10% से अधिक भूमि; पणजी और चेन्नई में 5%-10% भूमि; और कोच्चि, मंगलूरु, विशाखापत्तनम, हल्दिया, उडुपी, परादीप और पुरी में 1%-5% भूमि जलमग्न हो जाएगी।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि (SLR) के कारक
- महासागरीय तापीय प्रसार: महासागर ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) द्वारा संचित 90% से अधिक ऊष्मा को अवशोषित कर लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप महासागरों के तापमान में वृद्धि होती है और जल का प्रसार होता है।
- हिम का पिघलना: SLR के लिए ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में ग्लेशियरों, आइस कैप्स और हिम-चादरों का पिघलना भी एक अन्य कारण है।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि के प्रभाव
- तटीय कटाव में वृद्धि: जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर बढ़ता है, तटीय बाढ़ और तूफानी लहरें अधिक बार आती है एवं प्रचंड होती जाती हैं। इससे तटीय कटाव बढ़ जाता है।
- उदाहरण के लिए- राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR) की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 से 2018 के बीच भारत के समुद्र तट का लगभग 32 प्रतिशत हिस्सा समुद्री कटाव से प्रभावित हुआ है।
- तटीय जलमग्नता और बाढ़: समुद्र का जल स्तर बढ़ने से निचले तटीय क्षेत्रों और द्वीपों में निरंतर एवं गंभीर बाढ़ तथा जलमग्नता का खतरा बढ़ जाता है।
- ताजे जल का लवणीकरण: समुद्री जलस्तर में वृद्धि से ताजे जल के स्रोत, जैसे- भूमिगत जलभृत और नदीय डेल्टा के लवणीकरण का खतरा बढ़ जाता है।
- तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों का विस्थापन: समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण निचले तटीय इलाकों में रहने वाले समुदायों की भूमि बाढ़ में डूब सकती है।
- उदाहरण के लिए- आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र के अनुसार, पिछले दशक में दक्षिण एशिया में लगभग 3.6 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं।
- तटीय पर्यावास का नुकसान: समुद्र के जल स्तर में वृद्धि विशेष रूप से तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, जैसे- मैंग्रोव, लवणीय दलदल और प्रवाल भित्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- उदाहरण के लिए- इसके चलते मन्नार की खाड़ी की प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
- अवसंरचना को खतरा: उच्च जल स्तर और बार-बार आने वाली बाढ़ से अवसंरचनाओं के क्षतिग्रत होने का खतरा बढ़ जाता है। बाद में क्षतिग्रत अवसंरचनाओं की मरम्मत करना और उसे पुनः सुचारू बनाने में काफी व्यय होता है।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- भारत में तटीय कटाव का संरक्षण और नियंत्रण: केंद्रीय जल आयोग ने 2020 में दिशा-निर्देश जारी किए थे, ताकि समुद्र तट के विभिन्न हिस्सों के लिए उपयुक्त तटीय संरक्षण कार्यों हेतु प्रारंभिक डिजाइन पैरामीटर प्रदान किए जा सकें।
- तटीय सुभेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index: CVI): भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र ने भारतीय तटरेखा के लिए CVI का अनुमान लगाया है।
- इसमें सात तटीय मापदंडों अर्थात तटरेखा परिवर्तन दर (Shoreline change rate), समुद्री जल स्तर परिवर्तन दर (Sea-level change rate), तटीय तुंगता (Coastal elevation), तटीय ढलान (Coastal slope), तटीय भू-आकृति विज्ञान (Coastal geomorphology), लहर की ऊंचाई और ज्वार की सीमा का संयुक्त प्रभाव शामिल किया गया है।
- राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (NDRF): 15वें वित्त आयोग के तहत, तटीय कटाव से प्रभावित विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए NDRF के पुनर्बहाली और पुनर्निर्माण घटक हेतु 1000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं।
- तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019: इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अधिसूचित किया है, ताकि तटीय क्षेत्रों, समुद्री क्षेत्रों के संरक्षण और सुरक्षा तथा मछुआरों एवं अन्य स्थानीय समुदायों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंगिबल इनकम (MISHTI/ मिष्टी): इस योजना का उद्देश्य वित्त वर्ष 2023-24 से शुरू होकर अगले 5 वर्षों में 11 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में 540 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव वनों का पुनरुद्धार करना है।
- शेल्टरबेल्ट प्लान्टेशन: इसके तहत तटरेखा पर वृक्षों को सघन पंक्तियों में लगाया जाएगा। इससे तटीय समुद्री कटाव को रोकने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए- तटीय जिले रामनाथपुरम में शेल्टरबेल्ट प्लान्टेशन किया गया है।
समुद्री जल स्तर में वृद्धि के प्रति अनुकूलन रणनीतियां
- अवसंरचना की सुरक्षा के लिए बाढ़ अवरोधकों का निर्माण करना:
- पारिस्थितिक तंत्र आधारित तटीय संरक्षण: उदाहरण के लिए- तट के किनारे ऑयस्टर बेड प्राकृतिक ब्रेकवाटर के रूप में काम कर सकती हैं।
- मानव निर्मित संरचनाएं: उदाहरण के लिए- कंक्रीट, चिनाई या शीट पाइल्स से बनी समुद्री दीवार।
- समुद्री जल-स्तर में वृद्धि और तूफानी लहरों के लिए कंप्यूटर बेस्ड मॉडल बनाना: समुद्री जल-स्तर में वृद्धि और तूफानी लहरों की गतिशीलता का कंप्यूटर बेस्ड मॉडल बनाने से महत्वपूर्ण अवसंरचना की स्थापना एवं सुरक्षा के बारे में बेहतर जानकारी मिलेगी।
- तैरते शहर (Floating Cities): मालदीव और दक्षिण कोरिया में ऐसे शहरों का विकास शुरू किया गया है, जो बाढ़ रोधी होंगे।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन: इसका उद्देश्य तटीय समुदायों के जीवन और आजीविका की सुरक्षा को बढ़ावा देना, तटीय पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना एवं संधारणीय विकास को बढ़ावा देना है।
- जलवायु कार्य योजना पर जोर: वर्तमान समुद्री जल स्तर में वृद्धि का प्राथमिक कारक जलवायु परिवर्तन है। इससे निपटने के लिए कई शहरों और राज्यों के पास कोई योजना नहीं है।