सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत ने वर्चुअल प्रारूप में तीसरे "वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS)" की मेजबानी की।
अन्य संबंधित तथ्य
- भारत ने 2023 के जनवरी और नवंबर में भी क्रमश: पहले व दूसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी। ये दोनों शिखर सम्मेलन वर्चुअल प्रारूप में ही आयोजित किए गए थे।
- वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन भारत के वसुधैव कुटुम्बकम या "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" के दर्शन का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार है।
तीसरे VOGSS के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- भागीदारी: इस शिखर सम्मेलन में 123 देश वर्चुअल रूप से शामिल हुए थे। सम्मेलन में चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया था।

- थीम: "सतत भविष्य के लिए एक सशक्त ग्लोबल साउथ (An Empowered Global South for a Sustainable Future)"
- सम्मेलन के दौरान भारत ने ग्लोबल साउथ के लिए एक व्यापक और मानव-केंद्रित "ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट" का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। यह विकासशील देशों के बढ़ते कर्ज की समस्या से निपटने पर केंद्रित है।
- भारत ग्लोबल साउथ के देशों में सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने और उनके साथ प्राकृतिक खेती के अनुभव साझा करने पर काम करेगा।
- भारत व्यापार संवर्धन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 2.5 मिलियन डॉलर के 'स्पेशल फंड' की शुरुआत करेगा। साथ ही, व्यापार नीति और व्यापार वार्ताओं हेतु क्षमता निर्माण के लिए एक मिलियन डॉलर का फंड आवंटित किया जाएगा।
ग्लोबल साउथ क्या है?
- ग्लोबल साउथ शब्द सामान्यतः विकासशील, अल्प विकसित या अविकसित देशों को व्यक्त करता है। ये देश मुख्य रूप से दक्षिणी गोलार्ध में अवस्थित हैं। इनमें अधिकतर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं।
- ग्लोबल साउथ की अवधारणा का सर्वप्रथम उल्लेख ब्रैंट रिपोर्ट, 1980 में किया गया था। इस रिपोर्ट में उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच उनकी प्रौद्योगिकी संबंधी प्रगति, सकल घरेलू उत्पाद तथा जीवन स्तर के आधार पर विभाजन का प्रस्ताव दिया गया था।
ग्लोबल साउथ द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियां
- वैश्विक मंचों पर कम प्रतिनिधित्व: उदाहरण के लिए- ग्लोबल साउथ के देशों (अफ्रीकी एवं लैटिन अमेरिका क्षेत्र) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से बाहर रखा गया है। यह उनके कम प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।
- उच्च सार्वजनिक ऋण: जैसे- यू.एन. ट्रेड एंड डेवलपमेंट (पूर्ववर्ती अंकटाड) की 'ए वर्ल्ड ऑफ डेट रिपोर्ट 2024' के अनुसार, विकासशील देशों का सार्वजनिक ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ रहा है।
- वैश्विक गवर्नेंस और वित्तीय संस्थाओं की प्रासंगिकता का कम होना: उदाहरण के लिए- WTO के अपीलीय विवाद निपटान तंत्र का निष्क्रिय होना; विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी ब्रेटन वुड्स संस्थाओं में ग्लोबल साउथ के देशों का कम प्रतिनिधित्व आदि।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक सुभेद्य: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की 'दक्षिण-पश्चिम प्रशांत में जलवायु की स्थिति 2023' रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत महासागर में स्थित द्वीपी देशों का वैश्विक उत्सर्जन में मात्र 0.02% का योगदान है। इसके बावजूद समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण प्रशांत द्वीप समूह के देश सबसे अधिक जोखिमपूर्ण स्थिति में हैं।
- मानदंड संबंधी मुद्दों पर ग्लोबल नॉर्थ का अलग दृष्टिकोण: उदाहरण के लिए- लोकतंत्र, मानवाधिकार, जलवायु गवर्नेंस के लिए एजेंडा आदि की व्याख्या को लेकर ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच आम सहमति का अभाव है।
- इसके अलावा, ग्लोबल नॉर्थ के भू-राजनीतिक संघर्ष वैश्विक स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। साथ ही, तेल की बढ़ती कीमतें, खाद्य पदार्थों के मूल्यों में अस्थिरता जैसी ग्लोबल साउथ की चिंताओं की अनदेखी की जाती है।
भारत के लिए ग्लोबल साउथ का महत्त्व
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: ग्लोबल साउथ भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और उसके आर्थिक परिवर्तन एवं विकास के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है।
- रणनीतिक विचार: ग्लोबल साउथ के साथ संबंध भारत की "मल्टीडायरेक्शनल एलाइनमेंट (बहुआयामी संरेखण)" रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- यह रणनीति चीन के प्रभाव को कम करने में भी मदद करती है।
- आर्थिक विकास: ग्लोबल साउथ के देशों में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। साथ ही, ये भारतीय उत्पादों के निर्यात के लिए एक विशाल बाजार प्रदान करते हैं।
भारत स्वयं को ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्ता के रूप में कैसे स्थापित कर रहा है?
- कनेक्टिविटी एवं आर्थिक अंतर-संबंधों को बढ़ावा देना: भारत ग्लोबल साउथ के देशों में कई क्षेत्रकों में बड़े पैमाने पर अवसंरचना के विकास से लेकर समुदायों को सशक्त करने से संबंधित परियोजनाओं (जैसे- स्वास्थ्य, आवास, पर्यावरण, शिक्षा आदि) को शुरू करके अपनी पैठ मजबूत कर रहा है।
- साथ ही, साझेदार देशों की आर्थिक चुनौतियों को कम करने और संकटों पर काबू पाने में सहायता करने के लिए वित्तीय, बजटीय एवं मानवीय सहायता प्रदान करता है।
- क्षमता निर्माण और ग्लोबल साउथ के प्रथम सहायता प्रदाता के रूप में उभरना: उदाहरण के लिए, भारत-संयुक्त राष्ट्र क्षमता निर्माण पहल; कोविड-19 के दौरान वैक्सीन मैत्री पहल आदि।
- वैश्विक जलवायु एजेंडे का नेतृत्व करना: उदाहरण के लिए- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA); आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI); साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों (CBDR) का समर्थन करना आदि।
- ग्लोबल साउथ के लिए प्रासंगिक मुद्दों की वकालत करना: उदाहरण के लिए- अफ़्रीकी संघ को G20 में शामिल करना।
- अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार: जैसे- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करने की मांग।
- लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर वैकल्पिक तंत्र: उदाहरण के लिए- पंचशील, गुजराल सिद्धांत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांतों पर आधारित वैकल्पिक तंत्र।
ग्लोबल साउथ के लिए भारत की पहलें
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ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने में भारत के समक्ष मौजूद चुनौतियां
- अलग-अलग हित: ग्लोबल साउथ एक विविधतापूर्ण क्षेत्र है। इसमें देशों के अपने अलग-अलग आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हित हैं। इससे एक एकीकृत रुख अपनाना मुश्किल हो जाता है।
- चीन के साथ प्रतिस्पर्धा: भारत को विशेष रूप से विकास वित्त, परियोजनाओं के वितरण, अवसंरचना और व्यापार संबंधी विकास योजनाओं में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। इसके अलावा, उसके द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप का भी सामना करना पड़ रहा है। चीन की बेल्ट एंड रोड पहल, चेक बुक डिप्लोमेसी इसके कुछ उदाहरण हैं।
- कूटनीतिक चुनौती: ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस जैसी शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करना कूटनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- इसके अलावा, भारत का यह कदम इसकी विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है, क्योंकि वैश्विक पटल पर इसे पारंपरिक गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) सिद्धांतों से भारत के दूर होने के रूप में देखा जा सकता है।
- सीमित विस्तृत राष्ट्रीय शक्ति: भारत की सीमित राष्ट्रीय क्षमता और विनिर्माण उद्योग का निम्न स्तर; विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सीमित नवाचार तथा श्रम गुणवत्ता का निम्न स्तर, ग्लोबल साउथ की समस्याओं का समाधान करने में चुनौतियां पेश करते हैं।
- ऊर्जा संक्रमण से जुड़ी समस्या: भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण आलोचनाओं और अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में आने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए- पश्चिमी देशों ने भारत की तब आलोचना की जब उसने COP-26 में कोयले के उपयोग को "चरणबद्ध तरीके से समाप्त" करने की प्रतिबद्धता का विरोध किया था।
निष्कर्ष
जैसे-जैसे भारत एक संतुलनकारी शक्ति से एक अग्रणी शक्ति में परिवर्तित हो रहा है, इसे ग्लोबल साउथ के देशों को एकजुट करने के लिए अपने "वसुधैव कुटुंबकम" जैसे समृद्ध सांस्कृतिक लोकाचार का लाभ उठाना चाहिए। डिजिटल विभाजन को समाप्त करके; आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे का समर्थन करके और एक समावेशी व न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करके, भारत वैश्विक मंचों पर सामूहिक रूप से अपना पक्ष रखने की क्षमता को बढ़ा सकता है।