सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री ने यूक्रेन के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर यूक्रेन का दौरा किया। वर्ष 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से यह किसी भारतीय प्रधान मंत्री की यूक्रेन की पहली यात्रा थी।
यात्रा के मुख्य बिंदु
- संभावना: दोनों देशों ने अपनी व्यापक साझेदारी को भविष्य में रणनीतिक साझेदारी में अपग्रेड करने पर सहमति व्यक्त की।
- भीष्म (BHISHM) क्यूब्स: भारत ने 'आरोग्य मैत्री' परियोजना के तहत यूक्रेन को "भारत हेल्थ इनिशिएटिव फॉर सहयोग हित एंड मैत्री (BHISHM)" क्यूब्स प्रदान किए।
- भीष्म क्यूब्स पोर्टेबल अस्पताल हैं, जिन्हें आपातकालीन स्थितियों में त्वरित चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- हस्ताक्षरित समझौते: कृषि और खाद्य उद्योग, चिकित्सा उत्पाद विनियमन, भारतीय मानवीय अनुदान सहायता और 2024-2028 के लिए सांस्कृतिक सहयोग कार्यक्रम पर समझौते किए गए।
प्रधान मंत्री की यूक्रेन यात्रा का महत्त्व:
- यूक्रेन के साथ संबंधों को सुधारना: भारत के प्रधान मंत्री की कीव यात्रा का उद्देश्य सोवियत संघ के बाद के युग में यूक्रेन के साथ शिथिल पड़ चुके संबंधों को पुनः मजबूती प्रदान करना है।
- भारत को वैश्विक मध्यस्थ के रूप में स्थापित करना: भारत स्वयं को एक शांति के प्रस्तावक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, ताकि वह वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख भूमिका निभा सके और दक्षिण एशियाई पड़ोस से परे अपने प्रभाव को बढ़ा सके।
- इसके अलावा, भारत की शांति-निर्माता की भूमिका केवल यूक्रेन संकट को सुलझाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि चीन जैसी अन्य उभरती शक्तियों की तुलना में अपनी वैश्विक विश्वसनीयता को बढ़ाने के बारे में भी है।
- विदेश नीति में भारत की तटस्थता में बदलाव: यह सभी देशों से समान दूरी (नॉन-एलाइनमेंट) बनाए रखने से लेकर सभी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लक्ष्य की ओर बदलाव को दर्शाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह कभी भी तटस्थ नहीं था, बल्कि रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति के पक्ष में था।
- पश्चिम और रूस के बीच संतुलन बनाने का नाजुक कार्य: भारत के मल्टी एलाइनमेंट दृष्टिकोण के साथ, यह चल रहे युद्ध के दौरान पश्चिम और रूस के बीच संतुलन बनाने के भारत के नाजुक कार्य को प्रदर्शित करता है।
- भारत का यूरोप की ओर बड़ा कदम: इससे पहले, यूरोप के साथ भारत के विदेश संबंध केवल यूरोप के चार बड़े देशों रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन तक ही सीमित रहे हैं। ऐसे में यूरोप की शांति के लिए भारत का प्रयास यूरोप की ओर एक बड़ा कदम है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की मध्यस्थता में भारत की भूमिका
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भारत के लिए यूक्रेन का महत्त्व
- रक्षा सहयोग: भारत के सैन्य हार्डवेयर, जो मुख्यतः रूसी और यूक्रेनी मूल के हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रखरखाव संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था: दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 3.386 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया।
- यूक्रेन से भारत को निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं कृषि वस्तुएं, धातुकर्म उत्पाद, प्लास्टिक और पॉलिमर हैं।
- युद्ध से पहले, यूक्रेन भारत के लिए सूरजमुखी के तेल के आयात का एक महत्वपूर्ण स्रोत था।
- फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, रसायन, खाद्य उत्पाद आदि यूक्रेन को भारत द्वारा की जाने वाली प्रमुख निर्यात वस्तुएं हैं।
- यूक्रेन से भारत को निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं कृषि वस्तुएं, धातुकर्म उत्पाद, प्लास्टिक और पॉलिमर हैं।
- युद्ध के बाद पुनर्बहाली एवं पुनर्निर्माण: दोनों देशों ने यूक्रेन के पुनर्बहाली एवं पुनर्निर्माण में भारतीय कंपनियों की भागीदारी की संभावना तलाशने पर सहमति व्यक्त की है। इससे भारत के तनावपूर्ण श्रम बाजार के लिए बड़े अवसर उपलब्ध होने की उम्मीद है।
- बहुपक्षवाद को बढ़ावा: यूक्रेन ने वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के साथ UNSC में सुधार और उसके विस्तार का समर्थन किया है।
भारत-यूक्रेन संबंधों में चुनौतियां
- रूस-भारत संबंध: रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध यूक्रेन का पूरी तरह से समर्थन करने की उसकी क्षमता को जटिल बनाते हैं, जिसमें एक नाजुक राजनयिक संतुलन की आवश्यकता है।
- व्यापार में गिरावट: 2022 से शुरू हुए युद्ध के कारण वस्तुओं के द्विपक्षीय व्यापार में महत्वपूर्ण कमी आई है। भारत के निर्यात में 22.8% की गिरावट आई है, जबकि यूक्रेन के निर्यात में 17.3% की कमी आई है।
- ऐतिहासिक दबाव: भारत के परमाणु परीक्षण और कश्मीर नीति की यूक्रेन द्वारा की गई आलोचना तथा पाकिस्तान को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति ने भी पूर्ण जुड़ाव में बाधा उत्पन्न की है।
निष्कर्ष
भारत को खुद को एक सक्रिय मध्यस्थ के रूप में स्थापित करना चाहिए, जो संघर्षरत पक्षों को वार्ता की मेज पर लाने के लिए संवाद और शांतिपूर्ण समाधान की लगातार वकालत करता हो। इसके अतिरिक्त, व्यापार संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए व्यवसाय करने की सुगमता में सुधार, विस्तारित बाजार पहुंच और मानक व प्रमाणन प्रक्रियाओं को समन्वित करना, दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और सहयोग के लिए महत्वपूर्ण होगा।