यूनेस्को ने 'स्पोर्ट एंड जेंडर इक्वलिटी गेम प्लान' डॉक्यूमेंट जारी किया (UNESCO Released ‘Sport and Gender Equality Game Plan’) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

30 Oct 2024
6 min

यह डॉक्यूमेंट पेरिस ओलंपिक खेल शुरू होने से ठीक पहले जारी किया गया है। इसके तहत खेलों में महिलाओं की बहुत कम भागीदारी को उजागर किया गया है। इसके अलावा, इस डॉक्यूमेंट में जेंडर-तटस्थ खेल नीतियां और कार्यक्रम बनाने के लिए मार्गदर्शन दिया गया है।

डॉक्यूमेंट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

  • यौन शोषण: 21% महिला एथलीट और 11% पुरुष एथलीट बचपन में खेलों में कम-से-कम एक बार किसी न किसी रूप में यौन शोषण का शिकार हुए हैं। 
  • खेलों में उच्च ड्रॉपआउट: 49% लड़कियां किशोरावस्था के दौरान खेल प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेना छोड़ देती हैं। यह आंकड़ा लड़कों की तुलना में 6 गुना अधिक है।
    • इसके लिए जिम्मेदार कारकों में महिला एथलीट रोल मॉडल्स की कमी; सुरक्षा को लेकर चिंताएं; आत्मविश्वास की कमी और निगेटिव बॉडी (लड़कियों के शारीरिक रूप से कम सक्षम होने की धारणा) इमेज आदि हैं। 
  • असमानता: पेशेवर खेलों में महिला खिलाड़ियों और पुरुष खिलाड़ियों को किए जाने वाले भुगतान में काफी अंतर होता है। इस बात का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विश्व के 50 सबसे अधिक आय अर्जित करने वाले एथलीटों (Paid athletes) की सूची में एक भी महिला एथलीट का नाम शामिल नहीं है।
  • महिला नेतृत्व का अभाव: 2023 में, विश्व के केवल 30% सबसे बड़े खेल संघों की अध्यक्ष महिलाएं थीं। 

गेम प्लान डॉक्यूमेंट द्वारा सुझाव दी गई चार कार्रवाइयां  

  • स्पोर्ट मीडिया कवरेज के माध्यम से लोगों का नजरिया बदलने और लैंगिक असमानताओं के मूलभूत कारणों से निपटने के लिए खेल की लोकप्रियता का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • खेल नेतृत्व, गवर्नेंस और निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।
  • जेंडर रेस्पॉन्सिव बजटिंग की मदद से तथा वित्त-पोषण में कमी को समाप्त करके क्षमता और सॉफ्ट एवं हार्ड इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की आवश्यकता है।
    • जेंडर रेस्पॉन्सिव बजटिंग वास्तव में सभी (महिलाओं और पुरुषों तथा लड़कियों एवं लड़कों) के लिए उपयोगी बजट बनाना है।
  • खेलों में लैंगिक हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करने हेतु प्रतिबद्धता प्रकट करनी चाहिए।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) 2024 जारी किया है। 

नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) के बारे में

  • इसे 2015 में लॉन्च किया गया था। 
  • यह देश भर के शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग के लिए एक पद्धति का फ्रेमवर्क तैयार करता है।
  • रैंकिंग के पांच पैरामीटर हैं: शिक्षण; लर्निंग और संसाधन; अनुसंधान एवं पेशेवर अभ्यास; स्नातक आउटकम; आउटरीच व इन्क्लूसिविटी, तथा परसेप्शन।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: INFLIBNET केंद्र (गांधीनगर) के सहयोग से राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NBA)।
  • 2024 की रैंकिंग में नई श्रेणियां: मुक्त विश्वविद्यालय, राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय और कौशल विश्वविद्यालय।
  • IIT-मद्रास छठी बार (2019 से) देश का सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थान घोषित किया गया है। इसके बाद भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) बेंगलुरु का स्थान है।

“इकोनॉमिक केस फॉर इन्वेस्टमेंट इन द वेलबीइंग ऑफ एडोलसेंस्ट्स इन इंडिया” नामक रिपोर्ट जारी की गई।

  • यह रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की है। यह उन उपायों के बारे में जानकारी प्रदान करती है, जिनके माध्यम से किशोरों पर निवेश करने से उच्च रिटर्न मिलेगा।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • भारत विश्व में सर्वाधिक किशोर आबादी वाला देश है। देश में 10 से 19 आयु वर्ग के किशोरों की आबादी लगभग 253 मिलियन है।  
  • 2000-2019 की अवधि में किशोर मृत्यु दर में 50% से अधिक की गिरावट आई है। साथ ही, किशोरियों में प्रजनन दर में 83% की गिरावट आई है। 
  • माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले युवाओं की संख्या 22% (2005) से दोगुनी होकर 50% (2020) हो गई है।
  • 2021-2022 की अवधि में सड़क दुर्घटनाओं में 18 वर्ष से कम आयु के किशोरों की मृत्यु में 22.7% की वृद्धि देखी गई है।
  • सुझाए गए उपायों को अपनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 10.1% तक की वृद्धि के रूप में बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

किशोरों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएं 

  • स्वास्थ्य समस्याएं: इनमें किशोरियों द्वारा अनचाहा गर्भधारण, कुपोषण, मानसिक विकार (अवसाद और चिंता) आदि शामिल हैं। 
  • शिक्षा और रोजगार संबंधी समस्याएं: इनमें शिक्षा प्राप्ति रुक जाना, AI जैसी नई  प्रौद्योगिकियों के कारण बेरोजगारी बढ़ना आदि शामिल हैं। 
  • बाल विवाह: हालांकि, 2006-2024 तक की अवधि में 18 वर्ष की आयु से पहले लड़कियों के विवाह से जुड़े मामलों में आधे से अधिक की कमी आई है, इसके बावजूद विश्व की 3 में से 1 बाल वधु भारत में रहती है।
  • हिंसा और घायल होना: सड़क दुर्घटनाओं, आत्म-क्षति और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं।

आवश्यक उपाय 

  • वंचित क्षेत्रों में स्कूलों की स्थापना की जानी चाहिए; बेहतर शिक्षण पद्धति अपनानी चाहिए और बेहतर शैक्षिक प्रदर्शन के लिए योग्यता आधारित छात्रवृत्तियां दी जानी चाहिए। 
  • किशोरों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सामान्य मानसिक विकारों की रोकथाम एवं उपचार के उपाय करने चाहिए। साथ ही, किशोरों के साथ साइबर बुलिंग और हिंसा की रोकथाम के उपाय किए जाने चाहिए। 
  • किशोरियों को जीवन कौशल प्रदान करने चाहिए। उनकी वित्तीय मदद के लिए उन्हें भुगतानों का अंतरण (डायरेक्ट ट्रांसफर) करना चाहिए। साथ ही बाल विवाह को रोकने के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाना चाहिए। 
  • सड़क दुर्घटनाओं में किशोरों को घायल होने से रोकने के लिए ग्रैज्युएटेड लाइसेंस योजनाएं शुरू की जानी चाहिए। 
    • ग्रैज्युएटेड लाइसेंस स्कीम पूर्ण ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की क्रमिक प्रक्रिया है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपडेटेड मॉडल फोस्टर केयर दिशा-निर्देश (MFCG), 2024 जारी किए।

  • ये दिशा-निर्देश मॉडल फोस्टर केयर दिशा-निर्देश (MFCG), 2016 की अगली कड़ी हैं। नए दिशा-निर्देश किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) (JJ) अधिनियम, 2015 तथा JJ मॉडल नियम, 2016; दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 और मिशन वात्सल्य योजना के प्रावधानों पर आधारित हैं।
  • फोस्टर केयर के तहत किसी बच्चे का उसके जैविक परिवार की बजाय  किसी अन्य परिवार के घरेलू परिवेश में पालन-पोषण किया जाता है। 
    • पालन-पोषण देखभाल (फोस्टर केयर) प्रदान करने वाले परिवारों को बाल कल्याण समिति द्वारा चयनित और अनुमोदित किया जाता है।

अपडेटेड मॉडल फोस्टर केयर दिशा-निर्देश (MFCG), 2024 के मुख्य दिशा-निर्देशों पर एक नजर

  • फोस्टर केयर के लिए पात्र बच्चे: बाल देखभाल संस्थानों या समुदायों में रहने वाले 6 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे। इनमें हार्ड-टू-प्लेस बच्चे; विशेष आवश्यकता वाले बच्चे और अयोग्य अभिभावक वाले बच्चे शामिल हैं।
  • हार्ड-टू-प्लेस बच्चे: ये ऐसे बच्चे होते हैं, जिन्हें शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता, शारीरिक या मानसिक बीमारी के उच्च जोखिम, आयु, नस्लीय या नृजातीय कारकों जैसी वजहों से गोद लेने की संभावना नहीं होती है।
  • फोस्टर केयर करने के लिए पात्रता: ऐसा कोई भी व्यक्ति, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, और बच्चे के पालन-पोषण के लिए उसका कोई जैविक बेटा/ बेटी हो या न हो। ज्ञातव्य है कि MFCG, 2016 में केवल विवाहित दम्पति ही पात्र थे। 
    • सिंगल महिला लड़के या लड़की, दोनों में से किसी को भी गोद ले सकती है या उसकी फोस्टर केयर कर सकती है। इसके विपरीत, सिंगल पुरुष केवल लड़के को ही गोद ले सकता है या उसकी फोस्टर केयर कर सकता है। 
    • दम्पति का 2 वर्ष का स्थिर वैवाहिक संबंध होना चाहिए।
  • फोस्टर एडॉप्शन के तहत दत्तक ग्रहण: फोस्टर केयर करने वाले माता-पिता जिस बच्चे की पिछले दो साल से फोस्टर केयर कर रहे हैं, वे उसी बच्चे को गोद भी ले सकते हैं। MFCG, 2016 में उसी बच्चे को गोद लेने के लिए फोस्टर केयर की अवधि पांच साल थी।   

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कक्षा 6 से 8 तक के विद्यार्थियों के लिए बैगलेस डे यानी “बगैर बस्ते के स्कूल आने” को लागू करने के लिए दिशा-निर्देशों की घोषणा की है।

  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में उपबंध किया गया है कि कक्षा 6-8 के सभी विद्यार्थी कोई भी 10 दिन बगैर बस्ते के स्कूल आएंगे और इस अवधि में बढ़ई, माली, कुम्हार, कलाकार जैसे स्थानीय व्यावसायिक कारीगरों के साथ इंटर्नशिप करेंगे।

दिशा-निर्देशों के बारे में

  • उद्देश्य: सामने से देखकर लर्निंग की क्षमता का निर्माण करना; समुदाय के साथ जुड़ाव और एक-दूसरे पर निर्भरता की समझ विकसित करना; स्वयं काम करने की प्रैक्टिस के माध्यम से श्रम की गरिमा को बढ़ावा देना आदि।
  • शामिल गतिविधियां: सब्जी मंडियों का दौरा और सर्वेक्षण; चैरिटी यात्रा; पालतू जानवरों की देखभाल पर सर्वेक्षण और रिपोर्ट लेखन; डूडलिंग (सोचते हुए चित्र बनाना) आदि।

जिला स्तरीय समिति ने ओडिशा के क्योंझर में रहने वाली जुआंग जनजाति को पर्यावास अधिकार प्रदान किए। 

  • जुआंग जनजाति विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) के अंतर्गत शामिल है। इसके अलावा, पर्यावास अधिकार प्राप्त करने वाली अन्य जनजातियों में जाजपुर (ओडिशा) की जौंग; देवगढ़ (ओडिशा) की पौडी भुइयां; मध्य प्रदेश की भारिया PVTG तथा छत्तीसगढ़ की कमार PVTG और बैगा PVTG आदि शामिल हैं।

पर्यावास अधिकार

  • पर्यावास अधिकार को अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत उपबंधित किया गया था। इस कानून को वन अधिकार अधिनियम (FRA) के रूप में भी जाना जाता है।
  • वन अधिकार अधिनियम के तहत 'पर्यावास' को 'आदिम जनजातीय समूहों और पूर्व-कृषि समुदायों तथा अन्य वनवासी अनुसूचित जनजातियों के आरक्षित तथा संरक्षित वनों में प्रथागत पर्यावास एवं ऐसे अन्य पर्यावासों वाले क्षेत्र' के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • पर्यावास अधिकार क्रमशः समुदाय के सदस्यों, पारंपरिक आदिवासी नेताओं, जनजातीय महिला नेताओं, जिला और वन प्रशासन आदि के साथ परामर्श के बाद दिए जाते हैं। 
  • PVTGs के लिए महत्त्व: पर्यावास अधिकार PVTGs के निवास के पारंपरिक क्षेत्र, उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, बौद्धिक ज्ञान, पारंपरिक ज्ञान और उनकी प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।  

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) के बारे में

  • सरकार ने ढेबर आयोग (1960-61) की सिफारिशों के आधार पर 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में रहने वाले 75 PVTGs को मान्यता प्रदान की है।
    • ओडिशा में 13 PVTGs हैं, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक है
  • PVTGs की पहचान के निम्नलिखित मानदंड हैं: 
    • कृषि-पूर्व (Pre-agricultural) युग का प्रौद्योगिकी स्तर;
    • साक्षरता का निम्न स्तर;
    • आर्थिक पिछड़ापन; तथा 
    • घटती हुई या स्थिर आबादी।

जुआंग जनजाति, ओडिशा

  • मूलवासी: जुआंग पहाड़ी (थानिया) और मैदानी (भागुडिया) के रूप में विभाजित है। यह समुदाय क्योंझर की पहाड़ियों, अनुगुल के पल्लाहारा और ढेंकनाल के मैदान में निवास करता है।  
  • इतिहास: मूल रूप से यह समुदाय पटुआ के नाम से जाना जाता है। पटुआ नाम दरअसल स्कर्ट जैसी पत्तों की पारंपरिक पोशाक पहनने के कारण प्रचलन में आया है। 
  • व्यवसाय: यह जनजाति मूल रूप से स्थानांतरित खेती या तोइला चासा के कार्य में संलग्न है। हालांकि, इनमें से कुछ अब स्थायी कृषि करने लगे हैं। 
    • यह जनजाति सजावटी कंघियां और तम्बाकू के डिब्बे बनाने के कार्य में दक्ष है।



 

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